संगरूर में सिमरनजीत सिंह मान की विजय के संविधानिक निश्कर्ष

नीलम महाजन सिंह

पंजाब के संगरूर संसदीय क्षेत्र के हालिया उपचुनावों में अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष, सिमरनजीत सिंह मान, आई.पी.एस. की जीत सभी राजनीतिक दलों के लिए आंखें खोलने वाला परिणाम होना चाहिए। यह अकाली दल और आम आदमी पार्टी में अविश्वास को व्यक्त करता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब के पूर्व मुख्य मंत्री के कांग्रेस से जाने के बाद कांग्रेस अपनी राजनीतिक पहचान बने के लिए संघर्ष कर रही है। सिमरनजीत सिंह मान शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष हैं। मान तीन बार के सांसद हैं; एक बार तरण-तारन से 1989-1991 के बीच और दो बार संगरूर में 1999-2004 के बीच। 77 वर्षीय मान, बिशप कॉटन स्कूल, शिमला से पढ़े हुए ‘कॉटोनियन’ हैं। एक युवा दूरदर्शन समाचार वरिष्ठ संवाददाता के रूप में, मुझे सरदार सिमरनजीत सिंह मान से मिलने का अवसर मिला, जब वे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लूस्टार आपदा के बाद एक ‘कृपाण’ के साथ संसद में प्रवेश करने से रोके गए थे। वह एक फायरब्रांड नेता थे। सी.एम. भगवंत मान के गढ़ संगरूर में सिमरनजीत सिंह मान ने ‘आप’ को कैसे हराया? हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनाव में, वे आलमगढ़ सीट पर दूसरे स्थान पर रहे। उनकी पार्टी, जिसने राज्य के चुनावों में सेंध लगाने की उम्मीद की थी, एक भी सीट नहीं जीत पाई। सिमरनजीत सिंह मान ने संगरूर उपचुनाव में 5,800 से अधिक मतों से जीत हासिल की है। यह ‘सिक्खी’ के लिए भावनाओं का प्रतीक है। अकाली दल के अंतर्गत सी.म. बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना की बहन कमलदीप कौर के पक्ष में, उनके मुखर अभियान के बावजूद असफ़लता प्राप्त हुई र। कई मतदाता कथित तौर पर ‘आप’ के स्थानीय विधायकों की दुर्गमता से नाखुश हैं। संगरूर की सभी नौ विधानसभा सीटें ‘आप’ के खाते में गईं थीं। पार्टी के कार्यकर्ता गैर जिम्मेदार स्थानीय नेतृत्व से नाराज़ हैं। एक राजनीतिक पर्यवेक्षक, डॉ. जी.एस. सिक्खों कहते हैं, “सात राज्यसभा उम्मीदवारों का चयन मतदाताओं की ईच्छा अनुसार नहीं है। क्योंकि उनमें से किसी ने मालवा का प्रतिनिधित्व नहीं किया, जिस बेल्ट में ‘आप’ ने 69 में से 66 सीटों पर जीत हासिल की थी”। 29 मई 2022 को लोकप्रिय पंजाबी गायक, सिद्धू मूसेवाला की हत्या पर जनमानस में बहुत गुस्सा व शोक था। आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा मूसेवाला की सुरक्षा वापस लेने के कुछ दिनों बाद, उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मूसेवाला के प्रशंसकों ने खुले तौर पर भगवंत मान सरकार को दोषी ठहराया। सोशल मीडिया पर जिन लोगों से सुरक्षा हटाई गई, उनकी सूची जारी की गई। पड़ोसी मनसा के एक गाँव के रहने वाले मूसेवाला की इस क्षेत्र में जबरदस्त फैन फॉलोइंग थी। बेअदबी की छाया और ‘किसान आंदोलन’ सिमरनजीत सिंह मान के पक्ष-कारक थे। 2015 में सिमरनजीत ‘सरबत खालसा’ की बैठक में बड़ी संख्या में लोगों को शामिल करने में सफल रहे। ‘आप’ को किसान आंदोलन के दौरान एक धक्का तब लगा जब दिवंगत दीप सिद्धू जैसे प्रभावशाली लोगों ने सिमरनजीत सिंह मान के साथ गठबंधन किया। सोशल मीडिया पर आंदोलन को विभाजनकारी बताने की कोशिश ने सिमरनजीत जैसे नेताओं को बल मिला, जो हमेशा केंद्र सरकार की तथाकथित “ज्यादतियों” को उजागर करते रहते रहे। इस बार उन्होंने इसे “धर्मनिरपेक्ष ताकतों, कांग्रेस, ‘आप’ और भाजपा” के बीच एक प्रतियोगिता के समान बना दिया था। ‘आप’ ने मैदान में; गुरमेल सिंह, क्षेत्र के घराचोन गांव के एक अल्पज्ञात सरपंच को उतारा। हालांकि भगवंत मान के करीबी होने के बावजूद उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान उनके धुरी कार्यालय को संभाला था। सिमरनजीत सिंह मान के विशाल व्यक्तित्व के सामने गुरमेल ‘बौना’ दिखाई दिये। हालांकि सी.एम. भगवंत मान ने संगरूर में कुछ दिन बिताए लेकिन तब तक मतदाताओं का विश्वास जीतने में बहुत देर कर चुके थे। यकीनन यह पहली बार था जब संगरूर ने पांच पार्टियों को अपने वोट के लिए लुभाते देखा था। संदेश स्पष्ट था कि ‘आप’ को बाहर रखा जाना चाहिए। कांग्रेस ने दलवीर गोल्डी को मैदान में उतारा जिन्होंने विधानसभा चुनाव में धूरी से भगवंत मान के खिलाफ चुनाव लड़ा था। भाजपा ने उद्योगपति और कांग्रेस के पूर्व विधायक, केवल ढिल्लों को मैदान में उतारा; अकाली दल ने पूर्व सी.एम. बेअंत सिंह हत्याकांड में मौत की सजा पाए बलवंत सिंह राजोआना की बहन कमलदीप कौर को टिकट दी। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा उम्मीदवार जो पहले बरनाला (संगरूर जिले में) से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे, उन्हें अकाली दल से ज़्यादा वोट मिले। पंजाब के लोग भी केंद्र द्वारा उपेक्षित महसूस कर रहे हैं क्योंकि बड़ी संख्या में पीड़ित किसानों के पक्ष में कोई बड़ा कार्यक्रम घोषित नहीं किया गया था। जबकि भारत के गृह मंत्री अमित शाह पंजाब गए फिर भी बीजेपी संगरूर में जीत का रास्ता नहीं खोज पाई। व्यक्तिगत रूप से मैंने हमेशा सरदार सिमरनजीत सिंह मान के ‘सिख धर्म’ के समर्पण के प्रयासों की सराहना की है, फिर भी ‘खालिस्तान के गठन’ के समर्थन का उनका आह्वान ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विपरीत है; जो एकीकृत भारतीय क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 1984 का असफल ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ चार दशक बीत जाने के बावजूद; ‘हर सिख के मदरबोर्ड दिमाग’ में अभी भी अंकित है।

सिमरनजीत सिंह मान ने हरमंदिर साहब से जुड़ी उनकी आध्यात्मिक यात्रा और सभी दलों के खिलाफ उनके मुखर अभियान के कारण, संगरूर चुनाव जीता। उनकी वरिष्ठता के कारण पंजाब के लोग उन्हें एक और मौका देना चाहते थे। एक राजनीतिक पर्यवेक्षक के रूप में मुझे सिमरनजीत सिंह मान को सलाह देनी चाहिए, कि उन्होंने एक बात कही है, वह ‘सिक्खों’ में आज भी पंजाब की आबादी पर गहराई से अंकित है। सिमरनजीत सिंह मान को ‘खालिस्तान’ में ज्यादा तल्लीन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने भारत के संविधान की शपथ लेनी है। वह कट्टर खालिस्तान समर्थक, संत जरनैल सिंह भिंडरावाले की स्तुति करते रहे हैं। पंजाब में व्यापक राजनीतिक आधार बनाने के इस अवसर का उपयोग करने और पंजाब के लोगों के कल्याण के लिए संसद में अपनी चिंताओं को उठाने के लिए उन्हें राजनीतिक रूप से स्मार्ट होना चाहिए। सिमरनजीत द्वारा सभी को एक और मौका देने का आग्रह करने के कारण, उनकी भावनात्मक अपील का असर संगरूर के मतदाताओं पर पड़ा है। ‘आप’ के आत्मविश्वास पर प्रहार करते हुए संसद में पहले के नाटकीय मेलोड्रामैटिक दृश्यों को सिमरनजीत सिंह मान न दोहराएं ! पंजाब के युवाओं, नशीले पदार्थों और मादक द्रव्यों के सेवन, भारत की पाकिस्तान के साथ सीमाओं की सुरक्षा के मुद्दों की ज़मीनी स्तर पर पहुंचकर, अपने नेतृत्व में पंजाब के लोगों के विश्वास को मज़बूत करें। संगरूर में सिमरनजीत सिंह मान की जीत वर्षों के राजनीतिक वनवास से एक ‘फीनिक्स के उदय’ की तरह है। इसलिए सिमरनजीत सिंह मान को संवैधानिक ढांचे के भीतर ही इसका सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए।