परीक्षार्थियों का मानसिक शोषण कब तक करता रहेगा आयोग?

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

भारत उस दौर से गुज़र रहा हैं जहाँ आयोग परीक्षार्थियों पर मानसिक शोषण का बुलडोजर चला रहा है। कोई भी परीक्षार्थी अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहता है और ऐसे में एक साथ कई परीक्षाओं का फॉर्म डालता हैं। ऐसे में जब आयोग की लापरवाही से एक ही डेट में अनगिनत परीक्षा पड़ जाए तो वह छात्रों के भविष्य पर बुलडोजर चलने के समान ही है।

हाल ही में बिहार लोक सेवा आयोग ने 67वीं पुनः प्रारंभिक परीक्षा का तारीख़ तय कर दिया है और परीक्षा 20 और 22 सितंबर को होगी। पूरे PCS परीक्षा के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा कि आयोग का अध्यक्ष अपनी मनमानी दिखा कर नोटिफिकेशन के विरोध में जा कर दो दिनों में परीक्षा लेगा और साथ मे परसेंटाइल व्यवस्था का जबरदस्ती का बोझ डाल दिया जाएगा।

सबसे बड़ी समस्या है यह कि परीक्षा के लिए जारी तारीख़ दो अन्य परीक्षा के साथ डाल दिया गया है। जिस समय यू. जी. सी. नेट की परीक्षा एन. टी. ए. द्वारा तथा यू. पी. एस. सी.आयोग आईएएस मेन्स का एग्जाम ले रहा है, ठीक उसी समय बी. पी. एस. सी. ने 67वीं प्रारंभिक परीक्षा की घोषणा कर दी। छात्रों के लगातार विरोध के बावजूद भी अध्यक्ष अतुल प्रसाद ने छात्रों की एक भी बात नहीं सुनी और लोकतांत्रिक देश मे तुग़लकी फरमान ज़ारी कर दिया।

बी. पी. एस. सी. के अध्यक्ष अतुल प्रसाद समाधान बताते हुए कहते हैं कि जो छात्र आईएएस का मेन्स दे रहा होगा, उसके लिए बी. पी. एस. सी. प्रीलिम्स परीक्षा पास करना आसान है, जबकि दोनो परीक्षाओं के सिलेबस में काफी अंतर होता है। वह इतने पर भी नहीं रुकते आगे कहते हैं कि आई.ए.एस. मेन्स की परीक्षा देने वाले छात्र बीच में विमान से बिहार आ कर परीक्षा में सम्मिलित हो जायेंगे। एक आयोग के अध्यक्ष को यह सब बात की जानकारी न हो इस बात का विश्वास नहीं होता। एक आयोग का अध्यक्ष अनपढ़ की तरह व्यवहार कैसे कर सकता है, यह समझ से पड़े है।

आयोग परीक्षा परिणाम के बारे में कोई स्पष्ट नियम नहीं बता रहा है। परसेंटाइल व्यवस्था को लागू तो कर दिया गया लेकिन आयोग का कहना है दोनो शिफ्ट से आधे-आधे छात्रों को पास किया जाएगा। यह समाधान हास्यप्रद है क्योंकि आयोग यह बताने में असमर्थ है कि आरक्षण को कैसे लागू करेगा? जरूरी नहीं कि हर वर्ग के लोग भी दोनों दिन बराबर – बराबर आये ही । या फिर मान लें कि दोनों दिन छात्रों की उपस्थिति में काफी अंतर रहा तो फिर उसका समाधान क्या होगा? क्योंकि ऐसे में कट ऑफ में काफी गैप आएगा।

आज के दौर के परीक्षाओ के सबसे बड़ी समस्या है कि आयोग दो या चार दिन पहले एडमिट कार्ड जारी करता है। एन. टी. ए. को देखे तो छात्रों को यह भी पता नहीं होता है कि उसका एग्जाम कब होगा? बस उसे 3- 4 दिन पहले पता चलता है कि उसका एग्जाम कब और कहाँ है ? एन. टी. ए. द्वारा लिया जा रहे लगभग सभी एग्जाम में यही हरकतें बार -बार दोहराई गई हैं। यही हाल रेलवे के एग्जाम के साथ भी हो रहा है। छात्रों को खून के आँसू रोने पर विवश कर दिया गया है। इससे छात्रों के मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह एक प्रकार का मानसिक शोषण है जिसका समाधन न ही आयोग निकाल रहा है और न ही सरकार को कोई मतलब रह गया है। आयोग और सरकार को छात्रों के मानसिक स्थिति से कोई मतलब नहीं रह गया है ।

देश के लगभग सभी आयोगों में पेपर लीक की समस्या ने छात्रों को रोने पर मजबूर कर दिया है। छात्रों का एग्जाम सेंटर काफी दूर दिया जाना और एडमिट कार्ड 3- 4 रोज पहले जारी करना छात्रों को उनके हालात पर छोड़ देने के समान है। स्थिति तो यह हो गई है कि छात्र जब सेंटर पर पहुंचते है तो एग्जाम रद्द हो गया होता है जैसे कि हाल ही में रेलवे का एक परीक्षा 1 दिन पहले रद्द हुआ था। कभी – कभी छात्र परीक्षा दे कर घर पहुंचे भी नहीं रहते है कि पेपर लीक होने के कारण परीक्षा रद्द हो जाता है जैसे कि बी. पी. एस. सी. का प्रीलिम्स रद्द हुआ था। इन सभी घटनाओं की पुनरावृति छात्रों के मानसिकता को तोड़ कर रख देती है।

छात्रों के जिंदगी के साथ ऐसे खेला जा रहा है मानो वे कोई खिलौना हों। आयोग के इस खेल में सरकारें चुप्पी साध कर तमाशाबीन बनी बैठी है। अब तो कुछ छात्रों का यह भी आरोप है कि यह सब धांधली सरकार के मिलीभगत से ही हो रहा है ताकि अपने लोगों या रिश्वत के बल पर कुछ चंद लोगों को नौकरी देते रहें और वर्षों से मेहनत कर रहे छात्रों को इस रेस से बाहर निकाल दें। कहा गया था कि ऑनलाइन एग्जाम में धांधली की समस्या नहीं होगी लेकिन उसके बाद भी बड़े पैमाने पर धांधली हो ही रही है।

सरकार को भी तत्परता दिखाते हुए जल्द -से -जल्द इन समस्याओं का समाधान निकालना होगा ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति न हो और नियत समय पर और तय मापदंड के साथ परीक्षाओं का आयोजन हो ताकि निकट भविष्य में परीक्षार्थियों को इस तरह के मानसिक दबाव का सामना न करना पड़े और वे सभी पूरे निश्चिंतता के साथ तय समय पर परीक्षा देने के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहें। केंद्र सरकार और बिहार सरकार को जल्द-से-जल्द इन मामलों में संज्ञान लेना चाहिए। करोड़ों परीक्षार्थियों के भविष्य से खेल रहे आयोगों में सुधार की सख्त ज़रूरत है। सरकार इन आयोगों पर हंटर नहीं चलाएगी तो बच्चों का मानसिक शोषण होता रहेगा और उनका भविष्य अंधकार में जाता रहेगा।