दबाव में हैं सुशासन बाबू ?

अमित कुमार अम्बष्ट ” आमिली “

सुशासन बाबू यानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाला बदलने और महागठबंधन की नई सरकार के गठन के बाद सत्ता पक्ष से विपक्षी बनी भाजपा ने जिन मुद्दों पर सबसे अधिक शोर मचाया है , वो हैं , जंगलराज की वापसी , तेजस्वी यादव का 10 लाख नौकरी देने का वादा और भ्रष्टाचार।

जब पत्रकारों ने लगातार तेजस्वी यादव से 10 लाख नौकरी देने के वादा पर सवाल करना शुरू किया तो उन्हें एक साक्षात्कार में यह कहना पड़ा कि मैने वायदा किया था कि मुख्यमंत्री बनने के बाद 10 लाख नौकरी दूँगा , अभी तो मैं उप-मुख्यमंत्री हूँ। तेजस्वी यादव ने ऐसा कहकर पत्रकार से तो पल्ला झाड़ लिया , लेकिन उन्हें पता है , जनता सब देखती है , जनता सब समझती है , शायद इसलिए कहीं न कहीं इसका दबाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर इतना बनाया गया कि सुशासन बाबू ने एक जन सभा को संबोधित करते हुए कह दिया कि वो 10 लाख क्या 20 लाख नौकरी देंगे । जबकि नीतीश कुमार स्वयं और आम जनता भी समझती है कि यह इतनी आसानी से संभव नहीं है । इसके बाद जिस दिन नीतीश कुमार सरकार को विश्वास मत प्राप्त करना था , ठीक उसी दिन सीबीआई की मैराथन छापामारी लालू यादव के घर सहित कई स्थानों पर हुई , आरोप लगा कि तेजस्वी यादव का एक माॅल है , उसपर भी छापामारी हुई है , हालांकि बाद में तेजस्वी यादव ने प्रेस कान्फ्रेस आयोजित कर यह स्पष्ट किया की माॅल उनका नहीं है, लेकिन साथ ही साथ तेजस्वी यादव इस प्रेस कांफ्रेंस में अपनी सारी मर्यादा लांघ गए , इसके पहले तक तेजस्वी यादव भले ही भाजपा पर हमेशा से प्रहार करते रहें हो , लेकिन उन्होंने अपने शब्दों का संयम कभी नहीं खोया था , तेजस्वी यादव के वक्तव्य को देखकर हमेशा से महसूस होता था कि तेजस्वी यादव भले राजद विरासत के युवराज हैं लेकिन उनकी भाषा और व्यवहार सुलझी हुई है , लेकिन विश्वास मत प्राप्त करने के बाद जिस अंदाज में वो दिखे , जंगलराज की याद आ गयी , इस प्रेस कान्फ्रेस में उन्होंने सीबीआई को धमकाने की कोशिश की , उन्होंने कहा कि सीबीआई वाले कभी रिटायर्ड नहीं होंगे ? , उनका परिवार, बाल- बच्चे नहीं हैं क्या ? वास्तव में वो परोक्ष रूप से कह रहे थे कि अगर सीबीआई ने उनपर कोई आरोप लगाया तो वो उनके घर परिवार तक भी पहुँच सकते हैं । तेजस्वी यादव इतने पर भी नहीं रूके उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता एवं देश के गृह राज्य मंत्री नित्यानन्द राय , जिन्हें भाजपा का बिहार में मुख्यमंत्री का चेहरा बताया जा रहा है , उन्हे धमकाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बनने का जिनका सपना टूटा है उनको ध्यान रहे , ई बिहार है , ज्यादा ऐने-ओने ( इधर – उधर ) न करें , नहीं तो ठंडा कर दिया जाएगा , यहाँ दिल्ली वाले बचाने नहीं आएंगे । इस तरह की बाते अगर किसी राज्य का उप-मुख्यमंत्री करे तो एक तरह से यह अपने कार्यकर्ताओं और विपक्षी दल को यह स्पष्ट संदेश देना हुआ कि अगर कोई राजनीतिक विरोध करने की कोशिश की गई तो उप-मुख्यमंत्री जी कानून अपने हाथ में लेने से भी नहीं चूकेंगे। इस बात की संजीदगी का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि तेजस्वी यादव के प्रेस कांफ्रेंस के बाद देश के गृह राज्य मंत्री नित्यानन्द राय जी ने एक टीवी चैनल पर प्रेस कांफ्रेंस कर के तेजस्वी यादव को कहा कि हम तो पहले से ठंडा आदमी हैं , तेजस्वी यादव को मुझे ठंडा करने की जरूरत नहीं है और जनता ही राजद और तेजस्वी यादव को ठंडा कर देगी । इस पूरे प्रकरण ने तेजस्वी यादव की छवि बिहार के किसी दबंग नेता जैसी उभर के आयी , शब्दों की भाव भंगिमा से यह स्पष्ट प्रतीत हुआ कि तेजस्वी यादव जल्द ही अपनी विरासत के रास्ते चलने वाले हैं। लेकिन इस पूरे प्रकरण के बावजूद नीतीश कुमार ने इसपर एक शब्द नहीं कहा , भाषा की मर्यादा की दुहाई देने वाले नीतीश कुमार ने दबाव में मौन रहना ही उचित समझा ।

सीबीआई की छापामारी के बाद आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने अपने बयान से एक नये विवाद को जन्म दिया , उन्होंने बिहार सरकार से मांग करते हुए कहा था कि बिहार में सीबीआई की डायरेक्ट एंट्री पर रोक लगाई जाए. अगर सीबीआई को छापेमारी, जांच करनी हो तो पहले बिहार सरकार से अनुमति ले , बिहार सरकार की तरफ से जो कंसेंट दिया हुआ है कि सीबीआई बिहार में बिना राज्य सरकार के अनुमति के जांच शुरू कर सकती है , उस कंसेंट को वापस ले , मैं आरजेडी का सीनियर पॉलिटिकल वर्कर हूं. महागठबंधन के अन्य दल भी यह चाहते हैं , इतना कहना था कि कांग्रेस आनन- फानन में इस बयान पर अपनी हामी भर दी , लेकिन पत्रकारों ने यही सवाल जब नीतीश कुमार से पूछा तो वो असमंजस की स्थिति में दिखे और सवाल टाल गए , दवाब में उन्होंने न हाँ कहा , न ही न कहा , भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी के साथ वापस आ जाने वाले नीतीश कुमार एक बार जब वापस राजद के साथ गए है , भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनकी चुप्पी उनके दबाव में होने की तरफ स्पष्ट संकेत देती है ।

बिहार के विधि मंत्री कार्तिकेय सिंह , जिनसे विपक्ष और मीडिया के हंगामा के बाद , कानून मंत्रालय वापस लेकर गन्ना उधोग मंत्रालय दिया गया है , कार्तिकेय सिंह राजीव रंजन नाम के एक व्यक्ति जिसकी पटना के बिहटा इलाके से 2014 में किडनैपिंग हुई थी , इस अपहरण मामले के आरोपी हैं और यह भी आरोप है कि दिनांक 16 अगस्त को उन्हें कोर्ट में सर्रेन्डर होना था लेकिन कार्तिकेय सिंह न तो कोर्ट के सामने सरेंडर हुए , न ही जमानत के लिए कोई अर्जी दी है, इसके बदले वे मंत्री पद की शपथ लेने न सिर्फ विधानसभा पहुचे अपितु नयी सरकार में विधि मंत्री बनाए गए। उस वक्त जब मीडिया ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस बाबत सवाल किया तो उन्होंने मीडिया के सवालों को यह कहते हुए टाल दिया कि उन्हें इस विषय में कोई जानकारी नहीं है , अब जब नीतीश कुमार को सारी जानकारी हो गयी होगी, इसके बावजूद अपहरण के एक आरोपी को मंत्री पद देना कहा तक जायज है , इसमें कोई दोराय नहीं कि किसी भी सरकार में कानून मंत्रालय एक अहम मंत्रालय होता है , लेकिन अगर राज्य के विकास की दृष्टि से देखे तो सभी मंत्रालय महत्वपूर्ण है , इतना ही नहीं सरकार के किसी भी मंत्री का रूतबा आमजन में तकरीबन एक जैसा ही होता है ,ऐसे में नीतीश कुमार यह कैसे सोच सकते हैं कि एक अपहरण जैसे संगीन जुर्म का आरोपी मुकदमें की जाँच को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा । ऐसा निर्णय तो वही मुख्यमंत्री ले सकता है जो सरकार बचाने के दबाव में हो या ऐसी ही मानसिकता का हो , लेकिन नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि से हम सब वाकिफ हैं और यकीन से कह सकते हैं कि नीतीश जी अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को आगे लाने वालों में से नहीं हैं। इसलिए नीतीश कुमार निश्चित रूप से राजद के दबाव में हैं और अगर उन्हें अपनी सरकार बचाए रखनी है तो इस दवाब को झेलने के अलावा उनके पास कोई विकल्प भी अब नहीं है ।