आधुनिक समाज में बढ़ती पाशविकता चिंताजनक

नरेंद्र तिवारी

मानव समाज अपने आधुनिक होने पर गर्व करता है। यह गर्व मानव समाज को अपनी पाशविक प्रवृतियों पर मिली विजय का गर्व है। यह गर्व भावहीन मनुष्य के भावयुक्त बनने का है। यह गर्व पशुवत जीवन से मानवीय मूल्यों को स्थापित करने का है। हिंसक और बर्बरता के स्थान पर प्रेम और निर्माण का गर्व है। मानव केवल एक शारारिक रचना मात्र ही नहीं है, यह मानवीय मूल्यों और भावों का समावेश है। विचारों का समुच्चय है। इसी मानवीय विचार ने समाज को पाषाणयुगीन असभ्य, विचारहीन अवस्था से सभ्य और विचारयुक्त अवस्था तक पहुचाया है। इसी विचार ने मानवीय जीवन की उत्कृष्टता की इबारत लिखी है। इसलिए आधुनिक समाज मे मानवीय मूल्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसे कौनसे कारण हैं जो मनुष्यों को पुनः पाशविकता की और ले जा रहे है। वह कौनसे कारण है कि मनुष्यो में पाशविकता की प्रवृतियां बढ रही है। मानवता का अवमूल्यन हो रहा है। आधुनिक समाज में ऐसे अनेकों उदाहरण आए दिन घटित हो रहे है, जो मनुष्यों में व्याप्त पाशविक प्रवृतियों के बढ़ने के संकेत देते है। भारत जैसे देश मे जहां पशु-पक्षी पेड़-पौधों को भी आदर भाव से देखा जाता है। विगत बरसों में घटित घटनाक्रम व्यथित करने वाले है। इन घटनाकर्मो मे अधिकांश में धर्म, जाति, भाषा और श्रेत्रीयता की आड़ में हिंसक वारदातों को अंजाम दिया गया है। ताजा घटना भारत के मणिपुर राज्य की है। इस राज्य से हिंसा के जो चित्र सामने आ रहे है, उसे देखकर लगा कि आधुनिकता की खाल में छुपा मनुष्य मौका मिलते ही अपनी पाशविक प्रवृतियों का नंगा नाच करने से नहीं चूकता है। मणिपुर में जारी जाति और धार्मिक हिंसा ने मानवीयता की गरिमा को तार-तार कर दिया। यहां सामूहिक रूप से पाशविक हुए समुदाय ने दो महिलाओं को नग्न अवस्था में न सिर्फ घुमाया इनके गुप्तांगों से छेड़छाड़ करते हुए बलात्कार की घटना को भी अंजाम दिया। मणिपुर के मुख्यमंत्री ने ऐसी अनेकों घटना होने की बात स्वीकार की है। जाति, धर्म की आड़ लेकर पाशविकता के इस प्रदर्शन ने मानवीय मूल्यों को भारी आघात पहुचाया है। मणिपुर से दिल दहला देने वाले वीडियो आ रहे है। गली-मोहल्लों की सड़को और नालियों में पढ़ी मनुष्यो की सड़ी-गली लाशें मणिपुर में पाशविकता के प्रदर्शन की ऐसी कहानी है, मणिपुर में अमानवीय और बर्बरता ने देश का सिर शर्म से झुका दिया है। इन घटनाकर्मो ने मानवीय मूल्यों को गहरी चोट पहुचाई है। यह मनुष्यों द्वारा की जा रही बर्बरता का काला अध्याय है। इसी बर्बरता और पाशविकता को छोड़कर मनुष्य मानवीय मूल्यों के स्थापना की कोशिशों में लगा था। वें सभी कोशिशें धाराशाही हो गई। हम भारत के लोग अफगानिस्तान में पनप रही तालिबानी मानसिकता के विरोध में अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहें थै, तब यहीं बताने की कोशिश कर रहे थै की हम अधिक आधुनिक और प्रजातांत्रिक है। हमारे देश मे कानून का शासन है। जिस शासन में मानव की गरिमा और उसके सम्मान की रक्षा की जाती है।

हमारे भारत में अनेकता में एकता है। अलग-अलग जाति, धर्म, वर्ण, भाषा के लोग एक साथ मिलजुल कर रहते है। दुनियाँ को मानवीय मूल्यों की शिक्षा देने वाले देश के एक प्रान्त में यह तालिबानी मानसिकता से भी क्रूर विचार ने कैसे और क्यों जन्म ले लिया। यह सोचने समझने का प्रश्न है। मणिपुर ही नहीं देश में आए दिनों धर्म, जाति, वर्ण की आड़ में यह पाशविक प्रवृतियां अपना हिंसक, बर्बर और अमानवीय चेहरा प्रदर्शित करते रहती है। एक पाशविक चेहरा राजस्थान से जून 2022 में वीडियो के रूप में वायरल हुआ था। जब धर्मं के अंधे दो अपराधियों ने उदयपुर शहर में एक टेलर की गर्दन को धड़ से अलग कर दिया था। अपने बयान में इन हत्यारों ने इसे ईशनिंदा और धर्मनिन्दा करने के प्रतिक्रिया स्वरूप की गई घटना बताया था। इस घटना के समय भी सारा सभ्य समाज आक्रोशित हुआ था। धर्म की आड़ में हिंसा की घटना को अंजाम देने वाले अपराधी धर्म की असली परिभाषा और असल अर्थ से अपरिचित ही दिखाई दिए। आधुनिक युग मे कानून का शासन है। कानून को हाथ मे लेने का किसी को कोई अधिकार नहीं है।

मानवीयता को शर्मासार करती घटना मध्यप्रदेश के सीधी में भी घटित हुई जहां जाति और सत्ता के नशे में मदमस्त युवक ने आदिवासी युवक के मस्तक पर पेशाब कर दी। यह घटना भी मानवीय गरिमा को कलंकित करने वाली थी। इस घटना के बाद मध्यप्रदेश में घटना के विरोध में व्यापक प्रदर्शन हुए। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने तुरन्त पीड़ित युवक के पैर धोए, भोजन कराया और परिवार को आर्थिक सहायता दिए जाने आश्वाशन भी दिया। ऐसी अनेको घटनाएं मौजूद है। जिसमे मानवीय गरिमा को नष्ट किये जाने के प्रयास हुए है। धरती पर इंसान को ईश्वर की सर्वोत्तम कृति माना गया है। प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ इंसान में भावनाएं है, जज्बात है। धरती के दूसरे प्राणियों में भावनाएं नही होती भावनाविहीन लोगो को पशु कहा जाता है। मनुष्य अपनी सुंदर भावनाओ से ही जगत को सुंदर बनाता है। संवेदनशीलता आवश्यक मानवीय गुण है। एक दूसरे के दर्द को महसूस करने की भावना संवेदनशीलता है। भावनात्मक प्रवृत्ति ही मनुष्य के अंदर तर्क करने की शक्ति पैदा करती है। इसी तर्क शक्ति से इंसान में विवेक पैदा होता है। वह अच्छे बुरे की पहचान करता है। इसी विवेक के चलते इंसान बेहतर नागरिक बनने की कोशिश करता है। अनेकों घटनाकर्मो में देखा गया है कि भीड़ की शक्ल में मानवीयता के खिलाफ अपराध किये जा रहे है। सभ्य समाज मे सभ्य नागरिक का होना बहुत आवश्यक है।

ईमानदार और चरित्रवान नागरिकों से ही बेहतर राष्ट्र बनता है। भारतीय समाज एक बेहद संवेदनशील समाज हैं। जो अपने अंदर वसुधैव कुटुम्बकम की सनातनी विचारधारा समाहित किये हुए है। यह दार्शनिक विचारधारा सार्वभौमिक भाईचारे और प्राणियों के परस्पर संबंध के विचार को पोषित करती है। यह विचारधारा सारी वसुधा को एक परिवार के रुप मे देखती है। दुनियाँ में भारत का सम्मान वसुधैव कुटुम्बकम की इसी महान विचारधारा के कारण ही है। यह विचार सन्देश देता है। दुनियाँ के लोगो से प्रेम करो। जाति, धर्म, वर्ण के नाम से जब घृणा फैलाई जाती है तब हम इस विचारधारा से दूर हो जाते है। जिस दर्शन में सृष्टि को परिवार माना गया है, उस धरा से जातिगत हिंसा में अबला नारी के साथ अपराध की घटना कारित करना बेहद अमानवीय कृत्य है। सामूहिक रूप से हिंसा और अमानवीय कृत्यो को अंजाम देना नागरिक समाज मे मानवीय मूल्यों के प्रति गिरावट का भाव है। आपसी प्रेम, परस्पर सम्मान की भावना, मानव गरिमा की रक्षा करना एक बेहतर नागरिक के मौलिक दायित्व भी है। भारत को बेहतर नागरिकों की बहुत जरूरत है। ऐसे नागरिक जो भारत के मूल दर्शन वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का प्रतिनिधित्व कर सकें। यही भावना भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का मूलाधार बनेगी। वैश्विक समुदाय भारत को नैतृत्व के रूप में इसलिए नही देखता की भारत ने तकनीकी विकास के कीर्तिमान स्थापित किये हो, इसलिए भी नही देखता की भारत दुनियाँ का सबसे बड़ी जनसख्यां वाला राष्ट्र है। भारत की तरफ देखने का कारण वसुधैव कुटुम्बकम का महान विचार है। जो सारे जगत को एक परिवार के रूप में देखता है। महावीर स्वामी का वह मानव कल्याणक सिद्धान्त है जो ‘जियो ओर जीने दो’ के नारे के साथ सबकी बेहतरी और भलाई की कामना करता है। भारत की पहिचान दुनियाँ में महात्मा गांधी के सत्याग्रह के विचार से है जो प्रतिशोध नही चाहता है। सत्याग्रह कमजोरों का हथियार नहीं है। यह एक ऐसी शक्ति है जो ताकतवर लोगो के पास होती है। समाज के सक्रिय धार्मिक, सामाजिक संगठनों, सरकारों को चाहिए कि वह समाज मे बढ़ती पाशविकता को जड़ से समाप्त करने के लिए सनातनी विचार वसुधैव कुटुम्बकम, महावीर स्वामी के जियो ओर जीने दो, एवं महात्मा गांधी के सत्याग्रह का व्यापक प्रचार करें। दुनियाँ हिंसा से नहीं अहिंसा, शांति, दया, मानवता के महान विचारों से ही संचालित होती है।