दुनिया में मधुमेह से सबसे अधिक पीड़ित बच्चे भारत में हैं

बच्चों में मधुमेह की रोकथाम और निदान के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनें

गोपेंद्र नाथ भट्ट

नई दिल्ली।गुजरात की दो डॉक्टर बहनों डॉ. स्मिता जोशी और डॉ शुक्ला रावल ने डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों की मदद का बीड़ा उठाया है ।वे पीड़ित बच्चों की मदद एवं अपने मिशन को पूरा करने के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्री मनसुख भाई मंडाविया सहित भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के कई मन्त्रियों,वरिष्ठ अधिकारियों और देश-विदेश के चिकित्सकों तथा समाजसेवी संस्थाओं आदि से निरन्तर सम्पर्क कर भारत में बच्चों के मधुमेह का निदान करने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाने (टाइप वन ज्युवेनाईल डायबिटीज़) का वातावरण और जन जागरण अभियान चला रही हैं।

इस सिलसिले में दोनों देश-दुनिया के विभिन्न भागों में जा रही हैं। इसी क्रम में पिछलें दिनों वे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की यात्रा पर रही। हाल ही उन्होंने गुजरात के राजकोट में ढाई हजार परिवारों के एक विशेष शिविर में जन जागरूकता का कार्य किया।

इसके पहलें वे कश्मीर से कन्या कुमारी और बाद में अमरीका में सेन फ़्रांसिस्को से अटलांटा तक 7500 किमी सेल्फ ड्राइव का कीर्तिमान बना डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चों के लिए जन जागरूकता अभियान चला चुकी है।इस अभियान में उनके साथ पुत्र डॉ.राजा जोशी और डॉ.मन पंचोली भी पूरे मनोयोग के साथ जुटे हुए हैं।

डॉ. स्मिता जोशी और डॉ शुक्ला रावल बताती है कि विश्व में सबसे पहले मधुमेह रोग के निदान हेतु सौ वर्ष पहलें 2022 में कनाडा के एक अस्पताल में लियोनार्ड थॉम्पसन नामक बच्चे को इन्सुलिन की खुराक दी गई थी।
वर्तमान में पूरे विश्व में इन्सुलिन की खोज का शताब्दी वर्ष चल रहा है।

दोनों डॉक्टर बहनें चाहती है कि इस शताब्दी वर्ष में बच्चों में मधुमेह की रोकथाम और निदान (टाइप वन ज्युवेनाईल डायबिटीज़) के लिए तत्काल एक राष्ट्रीय नीति बनाई जाने की जरुरत है,क्योंकि एक अनुमान के अनुसार दुनिया में मधुमेह से सबसे अधिक पीड़ित करीब ढाई लाख बच्चे भारत में ही हैं।हालाँकि बीबीसी ने यह संख्या पन्द्रह लाख के आसपास बताई हैं।भारत के बाद मधुमेह से पीड़ित सबसे अधिक बच्चे अमरीका में है।

भारत में चल रहें स्वास्थ्य कार्यक्रमों में डाइबिटिज के ईलाज से लाभान्वित होने वाले व्यक्तियों की उम्र तीस वर्ष से अधिक निर्धारित है,जिसके कारण डाइबिटिज पीड़ित बच्चे किसी भी योजना के अन्तर्गत लाभान्वित होने के पात्र नहीं हैं।

100 वर्षों के बाद भी, भारत में बच्चों के टाइप 1 मधुमेह के बारे में जागरूकता का अत्यधिक अभाव है। ज्यादातर लोग मानते हैं कि मधुमेह 50-60 साल की उम्र के बाद ही होता है और यह अमीर लोगों का राज रोग है लेकिन हकीकत में यह एक गलत धारणा है। भारत में जागरूकता के अभाव में अंधापन, गुर्दे की विफलता, हृदय गति रुकना आदि कारणों से बच्चों की समय से पहले मृत्यु की दर बहुत अधिक है।

दोनों डाक्टर बहनें मधुमेह से पीड़ित बच्चों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने के पुनीत कार्य में सभी से सहयोग की अपील कर रही हैं और उनका सुझाव है कि सितम्बर में आने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्म दिवस पर इस नीति की घोषणा किया जाना पूरी दुनिया के सामने भारत का मानवता के लिए एक बड़ा सन्देश साबित हो सकता है।