आसान नहीं है गुजरात में आप का सत्ता तक पहुंचना

किशोर कुमार मालवीय

आम आदमी पार्टी ने इसुदन गढ़वी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करगुजरात विधानसभा च चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।गढ़वी राजनीति में नए जरुर हैं लेकिन लोकप्रियता में पीछे नहीं हैं। एक न्यूज चैनल के एंकर गढ़वी जनता से जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं। इसलिए केजरीवाल ने उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया है। पिछले साल बुरी तरह पिटने के बाद इस बार आम आदमी पार्टी कुछ ज्यादा तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। इस बार वह पहले से ज्यादा आक्रामक है। भाजपा के खालाफ माहोल औप कांग्रेस की कमजोर स्थिति ने आप को पहले से बेहतर बना दिया है। लेकिन इन सबके बावजूद आम आदमी पार्टी का गुजरात की सत्ता पर काबीज होना मुश्किल है। आम आदमी पार्टी ने चुनाव को त्रिकोणात्मक संघर्ष जरूर बना दिया है। गुजरात की 182 सीटों वाली विधानसभा के चुनाव के लिए मतदान 1 और 5 दिसम्बर को होंगे।

भारतीय जनता पार्टी 24 साल से गुजरात की गद्दी पर विराजमान है। इस दौरान राज्य ने कई उतार चढ़ाव देखे। भयंकर दंगे हुए, भूकम्प ने हजारो जाने लीं फिर भी गुजरात हर बार सम्भल कर पहले से ज्यादा मजबूत हुआ। इसकी सबसे बड़ी वजह है गुजरातियों का उद्दमी होना। लेकिन पिधले कुछ समय से गुजरात के लोग भाजपा से नाराज होने लगे हैं। हालांकि आज भी उनकी पहली पसंद भाजपा ही है लेकिन अगर सही विकल्प मिले तो वे किसी नए विकल्प पर विचार कर सकती है। इसी का फायदा उठाने के मकसद से आम आदमी पार्टी ने गुजरात में इस बार बूरा जोर लगा दिया है। लेकिन हकीकत ये है कि आम आदमी पार्टी राज्य में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा कर एक तरह से भाजपा को फायदा ही पहुंचा रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य होने की वजह से गुजरातियों का एक खास लगाव है उनसे। हर मंच से गुजराती अस्मिता की बात करने वाले मोदी को इस राज्य में जो प्यार और स्नेह मिलता है वब किसी अन्य नेता को नहीं मिलता। इस मामले में भाजपा का पलड़ा हमेशा भारी रहता है। स्थानीय सरकार से कई मुद्दों पर जरूर उनकी नाराजगी रहती है लेकिन इस नाराजगी को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कितना भुना पाएगी ये देखना होगा। आम आदमी पार्टी की दिक्कत ये है कि वह जिन मुद्दों पर दिल्ली मे चुनाव लड़ती है वही मुद्दे गुजरात में भी उठाती है। जबकि गुजरात की समस्याएं बिल्कुल अलग है।

ये सबको पता है कि गुजरात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रयोगशाला है। इसके बावजूद आप नेता अरविंद केजरीवाल उन मुद्दों में फंस जाते हैं जिसका सीधा सम्बन्ध हिनदुत्व से है। बिल्कीस बानो केस पर केजरीवाल की खामोशी ये संकेत देती है कि उल्हें गुजरात में मुस्लिम वोट से कोई मतलब नहीं है इसलिए वे हिन्दुओं को नाराज करने से परहेज करते हैं। नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर लगाने की माग हिन्दुओं को खुश करने की रणनीति का ही हिस्सा है। मतलब केजरावाल धीरे धीरे उसी जाल में फंस लरे हैं जिसे भाजपा ने ही बिछाया है। केजरीवाल ये भूल रहे हैं कि जब हिन्दुत्व का असली कलाकार (भाजपा) मौजूद है तब डुप्लीकेट को लोग क्यों वोट देगे। जहां तक पानी-बिजली फ्री करने का वायदा है तो गुजरातियों को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।उन्हें आप की नहीं अपने आदमी की सरकार चाहिए। और वे मोदी-शाह की भाजपा को ही अपनी मानते हैं। बावजूद इसके कि उन्हें स्थानीय भाजपा सरकार से कई शिकायतें हैं। मुख्यमंत्रीभुपेन्द्र रजनीकांत पटेल के खिलाफ माहौल भी है पर उसकी भरपाई मोदी-शाह कर देंगे, ऐसा भाजपा को भी उम्मीद है और राज्य की स्थानीय सरकार को भी। यही वजह है कि मोरबी हादसे के बाद भी आम आदमी पार्टी सहित सभी विपक्षी पार्टियां इस दुर्घटना को चुनावी मुद्दा बनाने मे विफल रहे। तमाम हो हल्ला के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि गुजराती वोटर्स वोट डालते समय मोरबी कांड को दिमाग में रख कर फैसला करेंगे। दुर्घटना के बाद प्रधानमंत्री ने मोरबी का दौरा कर, मृतकों के परिजनो और घायलों से मुलाकात कर डैमेज कंट्रोल कर दिया।

यह नहीं भूलना चाहिए कि 2017 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिले वोट प्रतिशत केवल 0.01 रहा। ऐसे में सत्ता तक पहुंचने का दावा करना एक स्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं।दिल्ली में प्रदूषण की भयावह स्थिति और आप नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के जवाब भी आप नेताओं को गुजरात में देने पड़ रहे हैं। इन सबके अलावा आप वहां पूरी तरह से बाहरी माने जा रहे हैं। सोचना तो कांग्रेस को है जिसे इस त्रिकोणात्मक लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान की आशंका है।