एमपी लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए कठिन चुनौती

नरेंद्र तिवारी

एमपी विधानसभा चुनाव में एक तरफा पराजय के बाद कांग्रेस ने अपने सांगठनिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन किए है। प्रदेश के नवगठित कांग्रेस संगठन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती आगामी लोकसभा चुनाव में आने वाली है। जब श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद मोदी लहर पर सवार देश और प्रदेश की जनता के मध्य कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं का मन बनाना होगा, इससे पूर्व प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों के लिए जनता से जुड़े चेहरों का चयन करना प्रदेश कांग्रेस के लिए किसी चैलेंज से कम नहीं होगा। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एमपी की 29 लोकसभा सीटों में कांग्रेस महज एक सीट पर विजय हो पाई थी। वह सीट भी एमपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ की थी। प्रदेश में लगातार दो लोकसभा से कमजोर प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस क्या आगामी लोकसभा चुनाव में अब तक का सबसे कमजोर प्रदर्शन करने जा रही है.? या फिर कांग्रेस के नवगठित प्रदेश संगठन के पास कांग्रेस का सम्मान बचाने या बढ़ाने की कोई रणनीति है? इन सवालों के मध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन की नैय्या हिचकोले खाती दिखाई दे रही है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के आकस्मिक परिवर्तन से जहां पुराने नेताओं की नाराजगी साफ दिखाई दे रही है, वहीं कांग्रेस का लचर संगठन जमीनी स्तर पर अपना प्रभाव छोड़ने में नाकाम दिखाई दे रहा है।

अमूमन देश के सभी प्रदेशों में कांग्रेस का एक सा हाल है, किंतु मध्यप्रदेश में जो कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनावों में सत्ता तक पहुंच चुकी थी। जिसे ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत ने सत्ता से बेदखल कर दिया था, वर्ष 2023 तक आते–आते सत्ता से दूर ही नहीं कोसो दूर हो गई। कांग्रेस के विधानसभा प्रदर्शन से नाराज हाईकमान ने कमलनाथ के स्थान पर राऊ विधानसभा के पूर्व विधायक युवा और तेजतर्रार नेता जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी, विपक्ष के नेता के तौर पर गंधवानी से युवा विधायक उमंग सिंगार को जवाबदेही दी गई। उप नेता विपक्ष का जिम्मा अटेर से विधायक हेमंत कटारे को दिया गया। कांग्रेस प्रदेश संगठन में हुए इस परिवर्तन के पीछे हाईकमान की मंशा प्रदेश में कांग्रेस संगठन को मजबूत करने की तो रही होगी। इस परिवर्तन के पीछे हाईकमान की सोच लोकसभा चुनाव में कांग्रेस संगठन को मजबूत करना और इकाई से बढ़कर दहाई की सख्या में एमपी लोकसभा में सीटों में विजय प्राप्त करना भी रही होगी। अब सवाल यह उठता है की क्या कांग्रेस अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार करने की स्थिति में है ? क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छिंदवाड़ा को भी खो देगी ? भाजपा जब अबकी बार 400 पार का नारा बुलंद कर रही है, तब ऐसा लगता है की इस बार एमपी में भाजपा क्लीन स्वीप करने जा रही है, मतलब मध्यप्रदेश की 29 सीटों पर विजय श्री हासिल करने की योजना पर काम कर रही है। छिंदवाड़ा की सीट पर भाजपा बड़े चेहरे को उतारकर इस सीट पर भी कब्जा करने की योजना पर काम कर रही है। यह स्वाभाविक भी है एक राजनीतिक दल होने के नाते शत प्रतिशत विजय होने की मंशा पर काम भी करना चाहिए। अब सवाल यह है की भाजपा अपने कुशल संगठन और बेहतर प्रबंधन के कारण राज्य–दर–राज्य विजय पताका फहरा रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 29 में से 28 लोकसभा सीटों पर विजय रहने वाली भाजपा और कांग्रेस की रणनीति में वह कौनसा बुनियादी अंतर है की कांग्रेस की जन स्वीकार्यता लगातार कम हो रही है। इसके विपरित भाजपा का जनाधार बढ़ता जा रहा है।

दरअसल जो मजबूत संगठन, जनता से जुड़ाव के कार्यक्रम भाजपा के पास है। वह कांग्रेस के पास नहीं, जनता के द्वारा विरोध का जो जिम्मा कांग्रेस को दिया है। कांग्रेस उस पर खरी उतरती दिखाई नहीं देती। भाजपा की विचारधारा को जनता तक पहुंचाने में जिस प्रकार आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, जनजातीय मोर्चा सहित जो भाजपा के अनुषांगिक संगठनों से भाजपा को मदद मिलती है। वैसे जमीनी संगठन कांग्रेस के पास नहीं है। नियमित और लगातार चलती गतिविधियां जनाधार निर्माण में सहायक होते है। जनता के बीच जाकर किए गए छोटे–छोटे आयोजन जनता के मन का निर्माण करते है। इस लिहाज से कांग्रेस का प्रादेशिक संगठन जिला एवं ब्लाक संगठनों को सक्रिय और दुरुस्त करने में अब तक असफल रहा है। अब जबकि लोकसभा चुनाव सर पर है, कांग्रेस में सक्रियता लाना युवा प्रदेश नेतृत्व के लिए कठिन चुनौती होगी। 2024 लोकसभा को लेकर कांग्रेस को आदिवासी सीटों पर अधिक फोकस करना होगा। जहां विधानसभा में कांग्रेस को सफलता मिली है। कांग्रेस संगठन इन आदिवासी बाहुल्य सीटों पर निर्विवाद, युवा चेहरों को मैदान में उतारकर भाजपा के क्लीन स्वीप को रोकने में कामयाब हो सकती है। इसके लिए एमपी में लोकसभा चुनाव के पूर्व जिंदा विपक्ष की भूमिका निभाना होगी। जनता से जुड़े विषयों पर मुखर होना होगा। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन पार्टी वर्करों में निराशा का भाव पैदा करेगा। प्रजातंत्र में कमजोर विपक्ष सता पक्ष को तानाशाही बनाता है। इस लिहाज से भी कांग्रेस को अपने प्रदर्शन में सुधार करना होगा। ऐसा नहीं है की जनता का मूड नहीं बदला जा सकता है, ऐसा भी नहीं है की प्रदेश में चारों और खुशहाली है। महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से प्रदेश की जनता परेशान है। सरकारी कार्यालयों में जारी लालफीताशाही के चलते आम आदमी को अपने साधारण कामों के लिए चक्कर काटने होते है। प्रदेश सरकार द्वारा संचालित अनेकों योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहा है। विषय बहुत है, जिन पर काम कर कांग्रेस प्रदेश में अपनी स्थित में सुधार कर सकती है। प्रदर्शन को सुधारा जा सकता है। एक समय था, जब भाजपा की देश में मात्र दो सीटें थी। वर्ष 1984 के आम चुनाव में भाजपा के पास मेहसाणा गुजरात और आंध्रप्रदेश की हनामकोंडा की दो सीटें थी। निरंतर लड़ाकू तेवर इख्तियार कर, जनता के विषयों और बहुसंख्यक समाज का विश्वास अर्जित कर 2014 में भाजपा ने 282 सीटो पर विजय पताका फहराई और भाजपा के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 336 सीटों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई। 2019 आते–आते भाजपा अपने बल पर 303 सीटों पर पहुंच गई। यह सफलता जनता से जुड़े अहम विषयों को सड़क से सांसद तक उठाने से ही मिल पाई है। मध्यप्रदेश कांग्रेस में खत्म होती संघर्ष की क्षमता उसकी कमजोरी का मुख्य कारण है। भाजपा के मजबूत संगठन से निपटने के लिए कांग्रेस को बेहतर रणनीति और संघर्ष की क्षमताओं को बढ़ाना होगा।