अपनी मुहिम में सफल रहे नीतीश

कमलेश सिंह

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने दिल्ली दौरे पर सियासी रूप से सफल रहे । अपने दौरे के दौरान नीतीश को, कांग्रेस पार्टी से भरपूर समर्थन मिलता दिखा।महागठबंधन में शामिल होने के बाद नीतीश कुमार बीते वर्ष भी दिल्ली आए थे। तब उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और लेफ्ट सहित सभी विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की थी. उनकी कोशिश विपक्षी एकता को नई धार देने की थी। लेकिन मामला परवान नही चढ़ा।

थकी हारी कांग्रेस में मजबूरन आगे बात बढाई

लगभग 6 महीने तक कांगेस ने इस ओर कोई पॉजीटिव संकेत नही दिया था। लिहाजा नीतीश कुमार असहज बताए जा रहे थे। लेकिन खुद मुसीबत में है। राहुल गांधी ने भले ही भारत जोड़ो यात्रा से अपनी कुछ छवि बनाई हो, लेकिन हाल ही में विदेश में दिए गये बयान और कांग्रेस की लगातार हार ने उन्हे अब दूसरी पार्टियों के पिछलग्गू बनने पर मजबूर कर दिया। हार कर कांग्रेस ने नीतीश को बुलावा भेजवाया

कांग्रेस प्रेसिडेंट मल्लिकाजुर्न खड़गे के बुलावे पर नीतीश , एक बार फिर दिल्ली दौरे पर आये, और इस बार कांग्रेस ने उनको भरपूर तवज्जो दिया। नीतीश ने राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की, मुलाकात को नीतीश और राहुल ने ऐतिहासिक बताया। जिसके बाद से ही सियासी माहौल काफी गर्म हो गया है। अब जेडीयू दावा कर रही है कि 2024 में विपक्ष एक मजबूत ,साझा कैंडिडेट उतार रही है।

नीतीश करेंगे अन्य दलों से बात

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस जेडीयू आरजेडी इस बात पर राजी हो गए हैं कि अलग-अलग राज्यों में वहां के राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से विपक्षी दलों को एक साथ एक मंच लाया जाय। इसके लिए सभी तरह के मतभेदों को भुलाकर बीजेपी के खिलाफ साझा उम्मीदवार देने पर सहमति बनी है।. सूत्र बताते हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ी भूमिका दी गयी है। भले ही नीतीश कुमार को औपचारिक तौर पर यूपीए का संयोजक अभी नहीं बनाया गया हो, लेकिन उनकी भूमिका कुछ इसी तरह की होगी. बुधवार की मुलाकात में यह तय हुआ है कि नीतीश कुमार क्षेत्रीय दलों से बात करेंगे. इनमें अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, के चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी और अरविंद केजरीवाल समेत अलग-अलग राज्यों के क्षेत्रीय क्षत्रप हैं।
गौरतलब है कि नीतीश कुमार और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चाहते थे कि कांग्रेस विपक्षी दलों को एक साथ लाने की पहल करें। इस रणनीति के तहत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार बुधवार देर शाम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने उनके आवास पर गए और फिर गुरुवार को सीपीएम और सीपीआई नेताओं से मिले। लेकिन बड़ी मुश्किल यह है जिन राज्यों में कांग्रेस का दूसरे विपक्षी दलों से मुकाबला है ,उन राज्यो के नेताओं को एक साथ कैसे लाया जाये।

पुरानी पटकथा पर बन रही है नई कहानी

दरअसल, 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई थी. इस घटना से वाजपेयी ये तो समझ गए थे कि बिना गठबंधन के अकेले कांग्रेस से मुकाबला नहीं किया जा सकता है. बीजेपी की कट्टर हिंदुत्ववाली छवि के चलते कोई भी दल उसके साथ नहीं आना चाहता था। इस लिहाज से बीजेपी राजनीतिक रूप से अछूत मानी जाती थी. 1998 में बीजेपी को समता दल के अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस का साथ मिला। कुछ इसी तरह अब हो रहा है।कांग्रेस को अब नीतीश का भरोसा ही रह गया है।।जार्ज की भूमिका निभाने नीतीश आगे बढ़ चले हैं।

जॉर्ज फर्नांडिस ने NDA का विस्तार किया

वाजपेयी ने खुद आगे ना आकर उन्हें NDA का संयोजक नियुक्त कर दिया. जॉर्ज फर्नांडिस ने देशभर के क्षेत्रीय दलों को NDA से जोड़ने की पहल की. इसका नतीजा अगले ही साल यानी 1999 में हुए आमचुनाव में देखने को मिला. 1999 में 24 दलों के साथ एनडीए की ना सिर्फ सरकार बनी, बल्कि पूरे 5 साल चली भी. जॉर्ज फर्नांडिस के बाद शरद यादव भी लंबे समय तक इस भूमिका में रहे. इसी दौर में बिहार में भी एनडीए को कामयाबी मिली और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया.

रिपीट हो रहे 1998 वाले समीकरण

देश की राजनीति में एक बार फिर से 1998 वाले समीकरण दोहराते हुए नजर आ रहे हैं. 2014 के बाद से कांग्रेस की हालत बेहद खराब हो चुकी है. राहुल गांधी ने काफी मेहनत की, लेकिन वह पार्टी का गिरता जनाधार नहीं संभाल पाए. सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए पिछले 9 साल से बाहर है. डूबते जहाज पर कोई भी सवारी नहीं करना चाहता, लिहाजा तीसरे मोर्चे के गठन के संकेत मिल रहे थे.

कितना कामयाब होंगे नीतीश कुमार?

अब यदि नीतीश कुमार को यूपीए का संयोजक बनाया जाता है. तो गैर बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दल भी साथ आ सकते हैं. हालांकि अब देखना होगा कि क्या नीतीश कुमार अपने राजनीतिक गुरू जॉर्ज फर्नांडिज की तरह कितना सफल हो पाते हैं? क्या वह ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, केसीआर और एमके स्टालिन जैसे नेताओं को अपने साथ जोड़ सकते हैं?