मोरबी घटना का गुनहगार कौन?

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

सत्ता के गलियारों में एक बार फिर मानवता चकनाचूर हो रही है। पक्ष और विपक्ष की लड़ाइयों के बीच 143 लोगों की जाने कराह रही है और देश के लोग सोशल मीडिया पर अपने -अपने पार्टी को बचाने के लिए नंगा नाच कर रहे हैं। विपक्ष इसलिए उतावला है क्योंकि इस हादसे के साथ गुजरात मॉडल की पोल खुल गई है, हालांकि गुजरात मॉडल तो अब पूरा देश देख चुका है और उसका परिणाम आपके सामने है।

जब भी कोई बड़ी घटना होती है तो सरकार सीधे दौर पर कटघड़े में खड़ी होती है, इसमें कोई नई बात नहीं है, वो चाहे भोपाल त्रासदी के समय सरकार की भूमिका हो या फिर वर्तमान में गुजरात मे मौत के तांडव के समय की सरकार । सरकार किसी की भी रही हो अपनी बचाव कर ही लेती है, जैसे अभी लीपापोती किया जा रहा है। बस अब अपना बचाव वो 143 जानें नहीं कर सकती , जिनको नियमों को ताक पर रख के राजस्व के फायदों के लिए टिकट दे कर पुल तक पहुंचने दिया गया।

गुजरात के मोरबी में रविवार शाम बड़ा हादसा हो गया। यहां के मच्छु नदी में बना केबल ब्रिज अचानक टूट जाने से कई लोग नदी में गिर गए। इस हादसे में लगभग 143 लोगों की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त पुल पर 400 से ज्यादा लोग मौजूद थे। ये लोग रविवार की छुट्टी होने पर ब्रिज पर घूमने पहुंचे थे।

पर्यटन के लिए ऐतिहासिक रूप से काफी प्रसिद्ध यह शहर अपने आप में काफी खूबसूरत दिखता है, जिसे देखने के लिए हमेशा हुजूम उमड़ पड़ता है।मोरबी को लंदन की दर्ज पर बसाया गया था। मोरबी का हैंगिंग ब्रिज और खूबसूरत रिवरफ्रंट लंदन की याद दिलाता है। राजकोट से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित मोरबी शहर की इमारतें और गलियां 19वीं सदी के यूरोप की याद दिलाती है। मोरबी के पूर्व शासक सर वाघजी ने औपनिवेशिक प्रभावों से प्रेरित होकर इस खास शहर को बसाया था। यहां हो रहे टेक डवलमेंट की बदौलत ही कई घड़ी बनाने वाली कंपनियों को भी मोरबी ने आकर्षित किया था। साथ ही यहां नदी के किनारे हुआ विकास भी मोरबी को खास बनाता है।

एक हकीकत यह भी है कि वहां पर न ही गुजरात के मुख्यमंत्री और न ही भारत के प्रधानमंत्री जा के खुद ये सब करेंगे क्योंकि उसके लिए सिस्टम बनाया जाता है, जिसका अलग-अलग काम होता है। लेकिन सवाल सरकार से इसलिए होगी क्योंकि राजस्व अन्ततोगत्वा उसी के झोली में जाएगी और राजस्व के लिए पर्यटन के नाम पर लोगों को मौत के मुंह मे नहीं ढकेला जा सकता है।

लोग भी अजीब अजीब है। एक सज्जन ने लिखा कि लोग नियम नही मान कर गए थे तो मरेंगे ही न। अरे भाई सिनेमाघरों में कहां सीट फूल होने के बाद, वे टिकट काट देते है? वहां हॉउसफुल का बोर्ड लग जाता है तो फिर पर्यटन स्थल पर क्यों टिकट काटे गए? जांच तो इसकी होनी चाहिए और IPC 302 इन्ही पर लगना चाहिए कि चन्द रुपये के लिए 143 लोगों को निगल गए? आखिरकार इस घटना के पीछे जिम्मेदार लोगों ने जरा सी भी संवेदनशीलता दिखाई होती तो इतने बड़े हादसे को रोका जा सकता था। जब पुल की क्षमता उतनी नहीं थी कि उस पर इतने लोग एक साथ जा सकें या फिर वह इतना भार वहन कर सके तो किसकी इजाजत से इतने लोग वहां पर एक साथ पहुंच गए।

जब घटना हुई तो सरकार कटघड़े में आएगी ही । पुल के लिए घड़ी के कंपनी को ठेका दिया गया तो जांच इसकी भी होनी चाहिए और सरकार इन सबसे पल्ला नहीं झाड़ सकती है। फिलहाल जिन लोगों की जान गई है उसको न्याय मिले ऐसी कोशिश हो। क्योंकि पक्ष और विपक्ष के आग की लपटें उनके लाशों को जला सकती है, उनकी उम्मीदों को नहीं, उनके साथ हुए अन्याय को नहीं।