क्या इन्हीं ‘अज्ञानियों ‘ के प्रवचन से भारत बनेगा विश्वगुरु ?

Will India become a world leader through the preaching of these 'ignorant' people?

निर्मल रानी

हमारा देश ‘स्वभावतः’ ‘ज्ञानियों ‘ का देश है। मान लीजिये अगर आप को किसी भी तरह का रोग है और आपने किसी से अपनी बीमारी साँझा की तो सामने वाला तुरंत कई तरह के उपचार या टोटके आपको बता डालेगा। जब आम लोगों के ज्ञान की यह स्थिति है तो आप समझ सकते हैं कि उन लोगों के ज्ञान का क्या आलम होगा जिनका पेशा ही ‘ज्ञान वर्षा’ करना है। हमारे देश में जितने ज्ञानी ,गुरु,उपदेशक,प्रवचनकर्ता आपको मिल जाएँगे उतने किसी भी देश में नहीं मिलेंगे। यह प्रचलित कहावत कि ‘औरत का पीर कभी भूखा नहीं मरता’, दरअसल हमारे ही देश में चरितार्थ होती दिखाई देती है। आप किसी भी सत्संग प्रवचन में जाएँ आपको सबसे अधिक संख्या महिलाओं की ही मिलेगी। भले ही उपदेशक या प्रवचनकर्ता अपने प्रवचनों में महिलाओं के प्रति अभद्र टिपण्णी करते,उनके प्रति नकारात्मक सोच रखते ही क्यों न दिखाई दें। यहाँ उस विषय पर चर्चा की कोई ज़रुरत नहीं कि किस तरह देश के तमाम पाखंडी व व्यभिचारी कथित संतों,गुरुओं,उपदेशकों या प्रवचन कर्ताओं की गिद्ध दृष्टि अपनी शिष्याओं या अपने शिष्यों के परिवार की बहू बेटियों पर रहती है। यहां केवल उनके उस ‘दिव्यज्ञान ‘ की चर्चा करनी है जो समय समय पर वे हमें सार्वजनिक रूप से ‘सत्संग’ के नाम पर देते तो रहते हैं परन्तु दरअसल ऐसे ज्ञान पूरी तरह से झूठ,निराधार,अवैज्ञानिक तथा लोगों को गुमराह करने वाले होते हैं।

कुछ वर्ष पूर्व गुजरात के स्वामीनारायण भुज मंदिर के स्वामी कृष्णस्वरूप दास जोकि स्वामीनारायण भुज मंदिर के उपदेशक हैं,ने ऐसा ही एक अभद्र व भ्रामक उपदेश दिया था। स्वामी जी ने माहवारी (पीरियड्स ) के दौरान खाना बनाने वाली महिलाओं को लेकर टिप्पणी करते हुये कहा था कि जो महिला माहवारी के दौरान भोजन बनाती है वह औरत अगले जन्म में निश्चित रूप से कुतिया की योनि में पैदा होगी। इसी प्रकार उस महिला के हाथों तैयार भोजन यदि किसी व्यक्ति ने एक बार भी खा लिया तो वह अगले जन्म में बैल की योनि में पैदा होगा। उन्होंने पुरुषों को सम्बोधित करते हुये कहा था कि अगर आप माहवारी का सामना कर रही किसी भी महिला के हाथ का तैय्यार किया हुआ खाना खाते हैं तो उसके दोषी आप भी हैं। स्वामी जी के अनुसार शास्त्रों में स्पष्ट रूप से उपरोक्त बातें लिखी हुई हैं। अतः विवाह पूर्व प्रत्येक पुरुष को यह मालूम होना चाहिए कि उन्हें कैसा खाना खाना है और कैसा नहीं। स्वामीनारायण मंदिर भुज स्थित श्री सहजानंद गर्ल्स स्कूल नामक उस संस्था को भी संचालित करता है जिसमें कई वर्ष पूर्व कथित रूप से साठ से अधिक लड़कियों के अंडरवियर उतरने तथा यह देखने का आरोप लगा था कि कहीं किसी लड़की को माहवारी तो नहीं आ रही है? उस समय इस बात पर काफ़ी विवाद भी हुआ था।

कितनी तार्किक हो सकती हैं माहवारी के दौरान खाना न बनाने और कुतिया व बन्दर की योनि में पैदा होने वाली यह बातें?

इसी तरह तमाम संतों,गुरुओं,उपदेशकों या प्रवचन कर्ताओं द्वारा प्याज़ और लहसुन न खाये जाने को लेकर तरह तरह का ज्ञान बांटा जाता है। भारत हज़ारों मेट्रिक टन प्याज़ का निर्यात भी करता है और ज़रुरत पड़ने पर इसका आयात भी किया जाता है। मिसाल के तौर पर वर्तमान समय में ही काफ़ी लंबे समय से भारत सरकार ने प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, इसके बावजूद संयुक्त अरब अमीरात जैसे कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां सरकार की विशेष अनुमति से प्याज़ भेजा जा रहा है। पूरी दुनिया में इस वक़्त प्याज़ की बढ़ती खपत के कारण प्याज़ की क़ीमतें बढ़ी हुई हैं। परन्तु भारत से ऐसे देशों को सस्ती क़ीमतों पर प्याज़ दिया जा रहा है जिससे हमारे देश के प्याज़ उत्पादक किसान तथा व्यापारी नाराज़ भी हैं। गोया प्याज़ हमारे देश का बड़ा कृषि व्यवसाय भी है। दरअसल आयुर्वेद में खाद्य पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है – सात्विक, राजसिक और तामसिक। धारणा है कि सात्विक खाद्य ग्रहण करने से संयम, पवित्रता शांति जैसे गुण प्राप्त होते हैं जबकि राजसिक भोजन जुनून और ख़ुशी जैसे गुण प्रदान करते हैं। इसी प्रकार तामसिक खाद्य क्रोध, जुनून, अहंकार और विनाश व हिंसा जैसे अवगुण को जन्म देता है। प्याज़ और लहसुन को भी राजसिक और तामसिक रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसलिये सदियों से अनेक हिन्दू धर्मावलंबी इसे खाने से परहेज़ करते हैं। परन्तु इसके जो कारण हमारे आज के स्वयंभू उपदेशकों द्वारा बताये जाते हैं वे ज़रूर हास्यास्पद तथा समाज को अज्ञानता की ओर धकेलने वाले हैं। आजकल धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री नामक एक विवादित संत जोकि बागेश्वर धाम सरकार या महाराज के नाम से भी जाने जाते हैं उन्होंने कथा वाचन के दौरान यह ज्ञान दिया कि ‘ प्याज़ और लहसुन इसलिए नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसका जन्म गंदिगी से हुआ। राक्षस के मल से प्याज़ व लहसुन पैदा हुआ इसलिए उससे दुर्गन्ध बहुत आती है। देवता अगर आना भी चाहें तो दुर्गन्ध के कारण आ नहीं आते हैं। लहसुन प्याज़ का सेवन करने वालों पर हनुमान जी की कृपा नहीं हो पाती इसलिए प्याज़ व लहसुन खाना वर्जित है।’ इस तरह का ‘दिव्यज्ञान’ देकर वह अपने अनुयायियों को कितना भ्रमित करते हैं यह समझना ज़रूरी है।

इसी तरह देश की एक मशहूर साध्वी जया किशोरी ने अपने प्रवचन में मोर पंख की पवित्रता व भगवान के मोर पंख धारण करने के सन्दर्भ में मोर की पवित्रता का बखान करते हुये ‘ज्ञान’ दे डाला कि मोर संभोग नहीं करता बल्कि मोर के आंसू पीकर मोरनी गर्भ धारण करती है इसलिये मोर को पवित्र माना गया है। इसीलिये कई देवी देवता मोर पंख धारण करते हैं। यही मूर्खता पूर्ण बयान कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान हाई कोर्ट के जस्टिस महेशचंद्र शर्मा ने भी दिया था। उन्होंने भी कहा था कि मोर आजीवन ब्रह्मचारी होता है। उसके आंसू ग्रहण कर मोरनी गर्भवती होती है। उस समय भी अनेक पक्षी वैज्ञानियों ने इसे ग़लत व पूरी तरह से भ्रामक बयान बताया था । साध्वी जया किशोरी को तो उनके मोर सम्बन्धी भ्रामक बयान के लिये एक पत्रकार ने घेर लिया तो वे बग़लें झाँकने लगीं। दुनिया जानती है कि अन्य पशु पक्षियों की ही तरह मोर भी सम्भोग करता है। परन्तु इन कथाकथित महाज्ञानियों और इनके पीछे लगी इनके अनुयायियों की भीड़ देखकर ज़ेहन में यह सवाल ज़रूर खड़ा होता है कि क्या इन्हीं ‘अज्ञानियों ‘ के प्रवचन से भारत विश्वगुरु बनेगा?