रमेश सर्राफ धमोरा
कांग्रेस पार्टी के नेता इन दिनों उत्साह से भरे नजर आ रहे हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद तो उनका उत्साह देखते ही बनता है। इससे पूर्व दिसम्बर में कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीता था। कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस ने भाजपा की सरकार को हराकर चुनाव जीता है। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ा है। जिसका लाभ कांग्रेस पार्टी को आगामी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में व 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल सकता है।
2014 के बाद लगातार हार पर हार झेल रही कांग्रेस पार्टी के लिए कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश में चुनावी जीत एक नई संजीवनी साबित हुई है। अब कांग्रेस की राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक में सरकार बन गई है। वही झारखंड, बिहार व तमिलनाडु में कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल है। इस तरह से देखे तो कांग्रेस देश के सात प्रदेशों में सत्तारूढ़ है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को कुछ खास सफलता नहीं मिली थी। इस दौरान कांग्रेस पार्टी बहुत से राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी हार कर सत्ता से बाहर हो गई थी। ऐसी स्थिति में कांग्रेस का कर्नाटक में भारी बहुमत से जीतना पार्टी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
मलिकार्जुन खरगे के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पहले हिमाचल और फिर कर्नाटक में कांग्रेस को जीत हासिल हुई है। जिससे उनके नेतृत्व क्षमता की भी धमक सुनायी देने लगी है। हालांकि कर्नाटक मलिकार्जुन खरगे का गृह प्रदेश है। जहां उन्होंने कई दशकों तक राजनीति की है। खरगे कर्नाटक के हर क्षेत्र व हर स्थिति से वाफिक है। जिसका फायदा उन्हें कर्नाटक के विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में भी मिला। मलिकार्जुन खरगे वर्षों से कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते उनके पास मुख्यमंत्री बनने का सुनहरा अवसर था। मगर उन्होंने केंद्र की राजनीति में ही रहना उचित समझा और अपने सुपुत्र प्रियांक खरगे को राज्य सरकार में मंत्री बनवा दिया।
कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत से कांग्रेस पार्टी के नेताओं का मनोबल तो ऊंचा हुआ है। इसके साथ ही दोनों प्रदेशों में आने वाले समय में कांग्रेस को राज्यसभा सीटों का भी फायदा मिलेगा। कर्नाटक में तो कांग्रेस ने भारी बहुमत हासिल किया है। ऐसे में उनकी राज्यसभा सीटें भी बढ़कर दोगुनी से अधिक हो जाएगी। इसके साथ ही कांग्रेस को कर्नाटक विधान परिषद में भी बहुत सीटों का लाभ मिलेगा।
देश में विपक्ष की राजनीति में हाशिए पर चल रही कांग्रेस पार्टी कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद विपक्षी राजनीतिक में केन्द्रीय भूमिका में आ गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश के सभी भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों की 12 जून को पटना में एक मीटिंग का आयोजन किया था। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे व राहुल गांधी ने शामिल होने में असमर्थता प्रकट की थी। उस कारण से नीतीश कुमार ने 12 जून की मीटिंग को स्थगित कर उसके स्थान पर 23 जून को आयोजित कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में जीत के कारण ही ऐसा कर पाई है।
देश में विरोधी दलों को एक करने के प्रयास में लगे नीतीश कुमार को भी अच्छे से पता चल गया है कि कांग्रेस के बिना भाजपा विरोधी दलो को एक मंच पर लाना मुश्किल ही नहीं असंभव है। इसीलिए नीतीश कुमार स्वयं दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी से व्यक्तिगत मुलाकात कर विपक्षी एकता को सिरे चढ़ाने की अपील कर चुके हैं। कांग्रेस पार्टी वर्षों से यूपीए गठबंधन चला रही है। जिसमें काफी संख्या में विरोधी दल शामिल है।
हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के मुख्यमंत्री व भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव, बसपा अध्यक्ष मायावती, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी जैसे नेताओं को आज भी कांग्रेस से परहेज है। इन सभी नेताओं का अपने-अपने प्रदेशों में व्यापक जनाधार है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में कांग्रेस की वहां के सत्तारूढ़ दलों से सीधी टक्कर है। इस कारण वहां सत्तारूढ़ क्षेत्रीय दलों से कांग्रेस का समझौता होना मुश्किल है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पिछले दिनों कहा था कि जिस प्रदेश में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव है वहां कांग्रेस को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। ऐसे में तो कांग्रेस बहुत कम क्षेत्र में सिमट कर रह जाएगी। इसका प्रतिवाद करते हुए लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी से किसी भी तरह का गठबंधन करने से इनकार कर दिया था।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी केंद्र सरकार के खिलाफ राज्यसभा में कांग्रेस से समर्थन मांग रहे हैं। मगर कांग्रेस के ही बहुत से वरिष्ठ नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को किसी भी प्रकार का साथ देने का विरोध किया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि केजरीवाल कांग्रेस के वोटों को हथिया कर मजबूत हो रहा है। कांग्रेस के नेता भाजपा विरोधी दलों के गठबंधन में भी प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी का नाम आगे कर रहे हैं। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी आज भी लोकसभा व राज्यसभा में सबसे बड़ा दल है। देश के अधिकांश प्रदेशों में उनका प्रभाव है। ऐसे में यदि सभी विपक्षी दल मिलकर भाजपा को हरा देते हैं तो प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी सबसे उपयुक्त दावेदार होंगे। यदि विपक्षी दल इस बात पर सहमत है तो हम साथ आ सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिस तरह से कर्नाटक में धुआंधार चुनाव प्रचार किया गया था। उसके उपरांत भी कांग्रेस पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की थी। उसके बाद से विपक्षी दलों को लगने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्लैमर अब ढ़लान पर है। ऐसे में उनके सामने प्रधानमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार को मैदान में उतारा जाए तो उनको आसानी से हराया जा सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी के सामने विपक्ष के सबसे मजबूत प्रत्याशी हो सकते हैं। अब देखना होगा कि आगामी 23 जून को पटना में होने वाली विपक्षी दलों की मीटिंग में क्या निर्णय लिया जाता है और उस मीटिंग से देश की राजनीति में कितना बदलाव हो सकेगा। उस पर ही विपक्षी एकता की बात निर्भर करेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा विरोधी दलों को लोकसभा चुनाव तक प्रधानमंत्री के चेहरे पर चर्चा ना कर भाजपा को हराने पर मंथन करना चाहिये। तभी विरोधी दल एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतर पाएंगें व देश की जनता को भी भरोसा दिला पाएंगे कि यदि भाजपा हारती है तो विपक्षी दलों की तरफ से देश को एक सशक्त व टिकाऊ सरकार मिलेगी।