प्रदीप शर्मा
उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में रविवार को बड़ा सियासी दांव चला गया। देश के सबसे चतुर नेताओं में से एक शरद पवार को भतीजे अजित पवार ने आखिरकार गच्चा दे ही दिया।,भतीजे का दावा है कि वो अब NCP को भी छीन लेंगे, ठीक वैसे ही जैसे शिंदे ने उद्धव से तीर कमान वाली शिवसेना झपट ली। मगर यह तो तस्वीर का एक पहलू है। दूसरा पहलू BJP के पाले में है।
पिछले साल 10-11 सितंबर को दिल्ली में NCP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी। शरद पवार को पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था। 11 सितंबर को बैठक के बीच शरद पवार के सामने से ही अजित पवार उठकर चले गए थे। उनकी नाराजगी सबके सामने आ गई।इस साल 21 अप्रैल को मुंबई में NCP की एक बड़ी बैठक में अजित पवार शामिल नहीं हुए। जब खबरें चलने लगीं कि अजित पवार पार्टी के सीनियर नेताओं से नाराज चल रहे हैं, तो अजित ने सफाई दी थी कि उनका पहले ही दूसरे कार्यक्रम में जाने का प्लान था।
अप्रैल महीने में ही अजित पवार ने मराठी अखबार सकाल को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि PM मोदी के करिश्मे के कारण ही BJP 2014 और 2019 में सत्ता में आई। PM ने देश का भरोसा जीता है, अपने भाषणों के जरिए उन्होंने लोगों को प्रभावित किया है। 10 जून 2023 की दोपहर शरद पवार ने पार्टी के 25वें स्थापना दिवस पर चौंकाने वाला ऐलान किया। उन्होंने अपनी बेटी और सांसद सुप्रिया सुले और पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को NCP का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। ये फैसला अजित की बगावत का आखिरी कील साबित हुआ। इसके बाद से ही अजित का बगावत करना लगभग तय माना जा रहा था।
BJP लोकसभा चुनाव को लेकर अगर-मगर की स्थिति में नहीं रहना चाहती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार और पश्चिम बंगाल में BJP को अपनी राजनीतिक स्थिति डावांडोल नजर आ रही है। महाराष्ट्र में 2019 के लोकसभा चुनाव में NDA ने 42 सीटें जीती थीं। पवार बगावत नहीं करते तो इन सीटों में कमी तय मानी जा रही थी।
वहीं बिहार में 40 में 39 सीटें NDA को मिली थीं। वहां पर नए गठबंधन के सामने NDA के लिए 39 सीटें लाना आसान नहीं है। पश्चिम बंगाल में BJP ने 18 सीटें जीती थीं। यहां पर अगर लेफ्ट, कांग्रेस और तृणमूल साथ आ गए तो BJP को सिंगल डिजिट से आगे बढ़ने में भी दिक्कत होगी।
कर्नाटक में 25 सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद कहा जा रहा है कि बीजेपी 14-15 तक में सिमट सकती है। यानी BJP को इन राज्यों से 50-60 सीटों की जो कमी होगी उसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, UP, हिमाचल, गुजरात और उत्तराखंड से पूरा करना संभव नहीं है। क्योंकि यहां पर BJP पहले से ही 90% सीटें जीत चुकी है। यहां वह दोबारा 90% सीटें जीतती है, तो भी उसकी संख्या नहीं बढ़ेगी। इसलिए BJP इस तरह की कवायद कर रही है।
BJP का मानना है कि विपक्ष टूटता है तो इसका फायदा पार्टी को मिलता है। वहीं वोटर्स भी भ्रमित हो जाते हैं कि किसके साथ जाएं। BJP को लगता है कि लोग विचारधारा से ज्यादा बड़े नेताओं से जुड़ते हैं। अजित पवार के साथ 35 से 40 विधायक बताए जा रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो BJP के सामने से NCP की चुनौती तकरीबन खत्म हो जाएगी और पार्टी की बड़ी जीत होगी।
महाराष्ट्र में सबसे बड़ा और मजबूत वोट बैंक मराठा है। BJP के पास प्रदेश में कोई स्ट्रॉन्ग मराठा चेहरा नहीं है। प्रदेश में पार्टी के सबसे बड़े नेता देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण हैं। अजित पवार एक मजबूत मराठा चेहरा हैं। मराठा समाज में उनकी वैल्यू एकनाथ शिंदे से भी ज्यादा है।
अभी तक BJP की तरफ मराठा मतदाता का पूर्ण रूप से झुकाव नहीं दिखाई देता है। NCP प्रमुख शरद पवार का BJP के साथ गठबंधन नहीं करने की एक बड़ी वजह भी यही है।दरअसल शरद पवार अपने मराठा कोर वोट बैंक को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उनके BJP खेमे में जाने पर यह वोट उन्हें मिलेगा या नहीं। अजित पवार ने यह रिस्क लिया है। BJP को शिंदे के बाद पवार का साथ मिलने से मराठाओं के बीच इनकी पकड़ काफी मजबूत हो जाएगी।
BJP का पहला टारगेट लोकसभा चुनाव है। अजित पवार पहले ही नाराज चल रहे थे। उस पर शरद पवार ने एक गलती कर दी। उन्होंने अपनी बेटी को पोस्ट देकर आगे कर दिया और अजित पवार को कोई पोस्ट नहीं दी। यह रातोंरात नहीं हुआ है। अजित पवार PM मोदी की तारीफ कर रहे थे। डिग्री को लेकर उन्होंने मोदी के पक्ष में कहा कि डिग्री महत्वपूर्ण नहीं होती। वो लगातार बोल रहे थे कि डिप्टी CM बनना चाहते हैं।
अजित पवार ने शिंदे वाले मॉडल से ही NCP को तोड़ा है। उन्होंने दावा किया है कि असली NCP उनकी है और पार्टी का चुनाव चिह्न भी उनके पास है। राज्यपाल को पहले लेटर दिया और पार्टी का चीफ व्हिप नियुक्त कर दिया। दरअसल, अजित के लिए शिवसेना वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला वरदान साबित हुआ है। शिवसेना टूटने वाले केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो बातें गैर कानूनी बताई थीं, अजित उन खामियों को दूर करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि शरद पवार अभी तक किसी तरह की कानूनी लड़ाई या लीगल ऑप्शन की बात नहीं कर रहे हैं।
इतनी बड़ी संख्या में नेताओं के NCP छोड़ने का मतलब है कि सुप्रिया सुले अपने पिता या चाचा जैसी मजबूत नेता नहीं हैं। प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे नेता शरद के वफादार रहे हैं, लेकिन वे सुप्रिया सुले के सामने लाइन में खड़े नहीं रहना चाहते। महाराष्ट्र में सहकारिता यानी कोऑपरेटिव का सियासत में बहुत महत्व है। चीनी मिल हों या स्पिनिंग मिल या सहकारी बैंक। महाराष्ट्र में इस समय करीब 2.3 लाख कोऑपरेटिव सोसाइटी और उनके 5 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं।
इस पूरे ढांचे पर फिलहाल NCP की मजबूत पकड़ है। इस मामले में शरद पवार के बाद अजित पवार का नंबर आता है। BJP अजित के जरिए इस ढांचे और उससे जुड़े वोटरों पर काबिज होना चाहती है। एकनाथ शिंदे BJP की उम्मीद से काफी कम शिवसेना के वोटर तोड़ पाए हैं। BJP पिछले एक साल के दौरान महाराष्ट्र में हुए तकरीबन सभी उपचुनाव में हार गई। विधानपरिषद के दो चुनाव में BJP बुरी तरह हारी। विधानसभा में भी कसवापेट, पुणे, कोल्हापुर जैसी सीटों पर BJP को उम्मीद के हिसाब से वोट नहीं मिले।
पार्टी को लगता है कि अकेले शिंदे के बूते महाराष्ट्र में पैर जमाना मुमकिन नहीं। इसलिए वह बार-बार ऐसे प्रयोग कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP और यूनाइटेड शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा और उसे 48 में 42 सीट मिली थीं। BJP अभी की स्थिति में महाराष्ट्र में अपने आप को कमजोर पा रही थी। इसकी वजह है कि MVA 60% वोटों को प्रभावित कर सकता था।
इस बीच गैर-भाजपा विपक्षी दलों की दूसरी बैठक आखिरकार स्थगित कर दी गई है। यह बैठक 13 और 14 जुलाई को बेंगलुरु में प्रस्तावित थी। बैठक की अगली तारीख अभी तय नहीं हुई है। जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि उम्मीद है कि विपक्षी दलों की अगली बैठक संसद के मानसून सत्र के बाद बुलाई जाएगी।