आर.के. सिन्हा
पिछले साल अप्रैल के महीने में आई कोरोना वायरस की भीषण लहर ने देश में प्रलय मचा कर रख दी थी। उन दिनों को याद करके भी घबराहट होने लगती है। एक साल के बाद फिर से कोरोना की चौथी लहर का खतरा हमारे सामने है। कोरोना के नये केस सामने आ रहे हैं। इनकी संख्या में लगातार वृद्धि भी हो रही है। इससे पहले कोरोना के ओमिक्रान वैरियंट के लगभग बेअसर रहने के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि कोरोना का अब नाश हो गया है। लेकिन, कहते ही हैं कि वायरस कभी खत्म नहीं होता। हां,उसका असर कमजोर पड़ने लगता है। तो ओमिक्रान के बाद आने और चले जाने के बाद यही लग रहा है कि अगर चौथी लहर आई भी तो वह भी समुद्री लहर की तरह सागर किनारे आकर वापस चली जाएगी। यानी वह घातक नहीं होगी। पर यह सब पक्के से तो नहीं कहा जा सकता है।
देखिए कोरोना के नए-नए वेरिएंट्स अपने साथ नए-नए लक्षण साथ लेकर आने लगे हैं। एक बात पर आपने गौर किया होगा कि जैसे ही कोरोना के नियमों में ढील दी जाने लगी. लगभग तब ही कोरोना फिर से सामने आ गया। इसने लोगों को अपनी चपेट में लेना चालू कर दिया। स्कूल-कॉलेज खुले तो छात्रों में कोरोना फैलना शुरू हो गया है। तो बहुत साफ है कि कोरोना का असर कम भी होने पर मास्क लगाना ही होगा तथा सामाजिक दूरी अपनानी ही होगी।
हाल ही में आईआईटी-कानपुर ने अपने एक शोध के बाद दावा किया है कि भारत में जून में कोरोना की चौथी लहर आ सकती है। यह कहना होगा कि जिस प्रकार से कोरोना के नए मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखकर लगता है आईआईटी का दावा सही हो सकता है। पर क्या यह दूसरी लहर जितनी घातक होगी? इस सवाल का जवबा देने की स्थिति में तो अभी कोई नहीं है।
बहरहाल, जिस किसी ने कोरोना की दोनों डोज ले ली है, वे काफी हद तक सुरक्षित हो गए हैं। उन पर कोरोना के नए-नए वेरियंट का असर कम होगा। अब कहा जा रहा है कि 18 से 59 साल तक की उम्र के लोगों को भी ऐहतियातन बूस्टर ज लगवा लेनी चाहिए।
लेकिन, यह जानना आवश्यक है कि टीका लगवाने के बाद जो ऐंटिबॉडी बनती है, वह ज्यादातर मामलों में 8 महीनों तक ही रहती है। एक बात और कि फिलहाल तीसरी डोज उन लोगों को लगवा लेनी चाहिए जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है। इसे
अस्पतालों, पुलिस तथा बैंकों कर्मियों को लगवा लेनी चाहिए। कैंसर, लिवर, किडनी, हार्ट, लंग्स खासकर टीबी की बीमारी के रोगी भी इसे लगवा लें।
देखिए कोरोना के नए-नए वेरिएंट्स अपने साथ पहले से अलग नए लक्षण लेकर आ रहे हैं। जैसे कि कंपकंपी के साथ बुखार होना या थकान महसूस करना,
शरीर में दर्द होना, गले में खराश, नाक का बहना या बंद होना आदि। खैर, यह तो सब मानते हैं कि अब हमें कोरोना के नए-नए वेरिएंट के साथ ही जिंदा रहना सीखना होगा। पर इसके लिए जरूरी है कि अगर हमने अभी तक भी दोनों टीके नहीं लगवाए तो हम अब देर न करें। हमारे अपने देश में अभी तक 65 प्रतिशत लोगों ने ही दोनों टीके लगवाए हैं। एक तिहाई जनता को एक ही टीका लगा है। बच्चों को टीके पूरे नहीं लगे। यह जान लें कि यदि टीका लग गया है तो कोरोना का वायरस कमजोर पड़ेगा। यह अफसोस की बात है कि तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद अब भी बहुत से लोग टीका नहीं लगवा रहे हैं। वे अब भी इसको लेकर सवला खड़े कर रहे हैं। मेरे अपने सर्किल में कुछ लोग समझाने पर भी नहीं मान रहे हैं। इस तरह के लोग अपने को खतरे में डाल रहे हैं। अब वे लोग फिर से मास्क पहन लें जो इसे उतार चुके थे। निश्चित रूप से मास्क कोरोना के नया वेरिएंट के विरूद्ध खड़ा तो होता ही है।
हालांकि अभी कोरोना की चौथी लहर ने अपना असर दिखाना शुरू ही किया है, इसलिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों को किसी भी आपातकालीन स्थिति का सामना करने के लिए अपनी तैयारी पूरी कर लेनी चाहिए। जैसे कि कोरोना रोगियों के लिए अलग से वॉर्ड तथा बिस्तरों की व्यवस्था करना,पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीज़न सप्लाई सुनिशिचत करना तथा एम्बुलेंस सेवा को तैयार करना। यह सब जानते हैं कि किसी भी राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था का काम राज्य सरकार ही देखती है। हमने देखा था कि स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन पर चलते हुए सभी राज्य और केंद्र शासित राज्य कोरोना की दूसरी लहर के वक्त इससे होने वाली मौतों की जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय को दे रहे थे। हालांकि तब तमाम राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में ऑक्सीज़न की कमी से बहुत से लोग मारे भी गए थे। लेकिन, सरकारें नहीं मानती कि ऑक्सीज़न की कमी के कारण लोग जान से हाथ धो बैठे थे। लेकिन, जरा उनसे भी तो पूछिए जिनके परिजन ऑक्सीज़न की कमी के कारण संसार से विदा हो गए। मुझे नहीं पता कि सरकारी दावों का क्या आधार है कि कोरोना की दूसरी लहर के समय ऑक्सीज़न की कमी के कारण किसी की जान नहीं गई। हालांकि सच इससे बहुत ही अलग तथा बहुत कठोर है। तब ऑक्सीज़न की किल्लत के कारण लाखों लोग कितने बेबस और बेहाल थे, यह सबको पता है। मुझे याद है तब इंडियन मेडिकल एसोसिशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ विनय अग्रवाल तब हालातों से इतने खिन्न हो गए थे कि उन्होंने यहां तक कह दिया था कि यदि सरकारों ने ऑक्सीज़न की सप्लाई को बेहतर न बनाया तो वे खुदखुशी कर लेंगे। जरा सोचिए कि देश के डॉक्टरों की सर्वोच्च संस्था का नेता कितना असहाय था तब। डॉ. अग्रवाल ने इस तरह की चेतावनी इसलिए दे डाली थी क्योंकि उनका कहना था कि ऑक्सीज़न की कमी के कारण डॉक्टर रोगियों का सही से इलाज नहीं कर पा रहे हैं। इस विकट स्थिति से सैकड़ों डॉक्टर गुजरे थे। भगवान न करें कि अब वही स्थिति फिर कभी आए। तब सारा देश घरों में दुबका हुआ था और सड़कों पर सिर्फ एंबुलेंसों के सायरन बजने की आवाजें आती थीं। सारे माहौल में भय तथा डर था। ऐसे माहौल को फिर से कभी आने नहीं देना है I
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)