ललित गर्ग
आजादी के अमृत काल में सशक्त भारत एवं विकसित भारत को निर्मित करते हुए गरीब एवं गरीबीमुक्त भारत के संकल्प की ओर सफलतापूर्वक आगे बढ़ना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार की बड़ी उपलब्धि एवं ऐतिहासिक सफलता है। नीति आयोग के अनुसार जीवन स्तर सुधार, शिक्षा व चिकित्सा की उपलब्धता के आधार पर देश में कुल 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए हैं। विगत नौ वर्ष में ऐसी गरीब कल्याण की योजनाओं को लागू किया गया है, जिससे भारत के भाल पर लगे गरीबी के शर्म के कलंक को धोने के सार्थक प्रयत्न हुए है एवं गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों को ऊपर उठाया गया है।
आजादी के 75 साल बाद भी भारत के सामने जो सबसे बड़ी चुनौतियां खड़ी रही है, इनमें गरीबी सबसे प्रमुख है। यही कारण है कि वर्ष 2047 के आजादी के शताब्दी समारोह के लिये जो योजनाएं एवं लक्ष्य तय किये हैं, उनमें गरीबी उन्मूलन के लिये भी व्यापक योजनाएं बनायी गयी है। गरीबी के अभिशाप से देश की एक बड़ी आबादी को निकालने के लिए मोदी सरकार के प्रयत्न निश्चित ही सराहनीय है। नीति आयोग के मुताबिक देश में वर्ष 2013-14 में बहुआयामी गरीबी 29.17 फीसदी थी जो वर्ष 2022-23 में घटकर 11.28 प्रतिशत रह गई है। बहुआयामी गरीबी के आंकड़े जुटाते समय पोषण, बाल व किशोर मृत्यु दर, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास और संपत्ति के साथ-साथ बैंक खातों के मापदंडों को भी ध्यान में रखा जाता है। इसके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर में सुधार भी गरीबी से बाहर आने की स्थितियों के मूल्यांकन का आधार है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले सालों में इन तीनों ही मोर्चों पर देश में उल्लेखनीय सफलता हासिल करते हुए समानता, संतुलन एवं गरीबी उन्मूलन का काफी काम हुआ है। इसी का नतीजा है कि नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट में हर्ष एवं उल्लास की यह खबर दी गई है कि बीते नौ साल के दौरान करीब पच्चीस करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए हैं। देश की विशाल आबादी के इस बड़े हिस्से से जुड़ा यह आंकड़ा इसलिए भी राहत देने वाला कहा जा सकता है कि कभी ‘बीमारू’ राज्य कहे जाने वाले बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश सरीखे राज्यों में गरीबी में सबसे ज्यादा कमी आई है।
दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर भारत के लिये गरीबी से बाहर आना एवं गरीबी के कलंक को धोना जरूरी है। यह माना भी जाता है कि किसी भी देश का आर्थिक विकास लोगों में समृद्धि लाने वाला होता है। लेकिन, यही समृद्धि जब आर्थिक असमानता का प्रतीक बन जाए तो चिंता का सबब एवं त्रासदी बन जाती है। चिंता इस बात की भी रही है कि आजादी के प्रारंभिक पचास वर्षों की सरकारों के सामने गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य कोरा भाषणों, नारों एवं दिखावे का रहा, यही कारण है कि उस दौर में विकास के जरिए होने वाली आर्थिक समृद्धि का फायदा भी गिने-चुने हाथों में पहुंचता रहा है। गरीब और गरीब एवं अमीर और अमीर होते हुए देखे गये। इस तरह की राजनीतिक प्रेरित योजनाएं गरीबी उन्मूलन के प्रयासों में सबसे ज्यादा बाधक बनी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार देश में आतंकवादी वारदातें कम होने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, सरकार के ईमानदारी और पारदर्शिता से काम करने के साथ उनकी सरकार ने गरीबों के कल्याण के लिए ज्यादा से ज्यादा धन खर्च किया है और 13.5 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला है। निश्चित ही भारत से गरीबी दूर हो रही है। इन सुखद आंकडों के साथ देशवासियों को इस बात का अहसास कराया जा रहा है कि जब देश आर्थिक रूप से मजबूत होता है तो तिजोरी ही नहीं भरती बल्कि देश का सामर्थ्य भी बढ़ता है। निश्चित ही गरीबी के अभिशाप को पूरी तरह समाप्त करने के लिये परिवारवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के खिलाफ लड़ने की जरूरत है क्योंकि ये गरीब, पिछड़े, आदिवासियों और दलितों का हक छीनते हैं, इनसे गरीब को समाप्त हो जाते हैं लेकिन गरीबी नहीं। वित्त वर्ष 2015-16 से लेकर 2019-21 के मोदी सरकार के 5 वर्षों के दौरान ग्रामीण इलाकों में सबसे ज्यादा गरीबों की संख्या में कमी आई है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 फीसदी से घटकर 19.28 फीसदी रह गई है। इसी अवधि के दौरान शहरी इलाकों में गरीबी 8.65 फीसदी से 5.27 फीसदी रह गई है। नीति आयोग के ताजे आंकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, सौभाग्य योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, पीएम जनधन योजना और समग्र शिक्षा के चलते भी देश में गरीबी कम हुई है और लोगों का जीवन बदला है। इसके बावजूद अभी भी देश में एक बड़ा तबका है, जो बुनियादी सुविधाओं के अभाव वाला जीवन जीने को मजबूर है। यह स्पष्ट संकेत है कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नए विचारों एवं कल्याणकारी योजनाओं पर विमर्श के साथ गरीबों के लिये आर्थिक स्वावलम्बन-स्वरोजगार की आज देश को सख्त जरूरत है। गरीबों को मुफ्त की रेवड़िया बांटने एवं उनके वोट बटोरने की स्वार्थी राजनीतिक मानसिकता से उपरत होकर ही गरीबीमुक्त संतुलित समाज संरचना की जा सकती है।
सतत गरीबी उन्मूलन के लिये व्यापक कार्य किया जाना अपेक्षित है। नया भारत-सशक्त भारत बनाने की जरूरत यह नहीं है कि चंद लोगों के हाथों में ही बहुत सारी पूंजी इकट्ठी हो जाये, पूंजी का वितरण ऐसा होना चाहिए कि विशाल देश के लाखों गांवों एवं करोड़ों लोगों को आसानी से उपलब्ध हो सके। लेकिन क्या कारण है कि महात्मा गांधी को पूजने वाला पूर्व सत्ताशीर्ष का नेतृत्व उनके ट्रस्टीशीप के सिद्धान्त को बड़ी चतुराई से किनारे करता रहा है। यही कारण है कि एक ओर अमीरों की ऊंची अट्टालिकाएं हैं तो दूसरी ओर फुटपाथों पर रेंगती गरीबी। एक ओर वैभव ने व्यक्ति को विलासिता दी और विलासिता ने व्यक्ति के भीतर क्रूरता जगाई, तो दूसरी ओर गरीबी तथा अभावों की त्रासदी ने उसके भीतर विद्रोह की आग जला दी। वह प्रतिशोध में तपने लगा, अनेक बुराइयां बिन बुलाए घर आ गईं। नई आर्थिक प्रक्रिया को आजादी के बाद दो अर्थों में और बल मिला। एक तो हमारे राष्ट्र का लक्ष्य समग्र मानवीय विकास यानी गरीबी उन्मूलन के स्थान पर आर्थिक विकास रह गया। दूसरा सारे देश में उपभोग का एक ऊंचा स्तर प्राप्त करने की दौड़ शुरू हो गई है। इस प्रक्रिया में सारा समाज ही अर्थ प्रधान हो गया है। लेकिन मोदी सरकार अर्थ की दौड में दुनिया की सर्वोच्च आर्थिक ताकत बनने के साथ गरीबी को दूर करने के लिये भी ठोस काम कर रही है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी आर्थिक असंतुलन एवं गरीबी को दूर करने एवं समतामूलक समाज की स्थापना के लिये प्रतिबद्ध है। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में भारत के सार्थक प्रयास से सुरक्षा, विज्ञान, चिकित्सा, खाद्यान्न सहित कई क्षेत्रों में प्रगति की है। भारत विश्व में आर्थिक रूप से संपन्न 5 देशों में शामिल हो चुका है। श्रीराम मन्दिर प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही गरीबी के आंकड़ों में गिरावट से दुनिया हैरान हो रही और यह अमृत काल की अमृत उपलब्धि है। फिर भी कल्याणकारी योजनाओं व आर्थिक संबल के अलावा भी देश को स्वावलम्बी बनाने, महंगाई व बेरोजगारी की चुनौतियों के दक्षतापूर्ण एवं कुशल प्रबंधन की जरूरत है। आर्थिक विकास का लाभ समाज के वंचित और शोषित वर्ग तक सुलभ होता रहे, यह अपेक्षित है। इसके लिये मोदी सरकार बिना शोर-शराबे के गरीबी उन्मूलन के मिशन पर लगी है, जिसके आश्चर्यकारी एवं सुखद परिणामों से देशवासी ही नहीं, दुनिया भी स्तंभित होती रहेगी।