डॉ. वेदप्रताप वैदिक
एक तरफ तो प्रधानमंत्री अपने निवास पर सिख-प्रतिनिधि मंडल का स्वागत कर रहे हैं और दूसरी तरफ पटियाला में सिखों और हिंदुओं के बीच धुआंधार मारपीट हो रही है। प्रधानमंत्री ने हाल ही में गुरु तेग बहादुर के 400 वें जन्म-समारोह के अवसर पर भारत की आजादी और समृद्धि में सिख समुदाय के अपूर्व योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी और कल पटियाला में खालिस्तान की मांग को लेकर दंगल मचा हुआ था। हिंदू और सिख संगठन आपस में भिड़ गए, उनमें लाठियाँ, गोलियाँ चलीं और पटियाला में कर्फ्यू भी लगाना पड़ गया। पटियाला में जो कुछ हुआ, उसकी जड़ में उग्रवाद, मंदबुद्धि और संकीर्णता के अलावा कुछ नहीं है। उसका गुरु नानक के सिख धर्म और हिंदू धर्म से कुछ लेना-देना नहीं है। वह अल्पमति लोगों का आपसी दंगल भर है। बिल्कुल ऐसा ही दृश्य अभी-अभी दिल्ली के द्वारका क्षेत्र में देखने को मिला। राजाराम नामक गोदुग्ध का धंधा करनेवाले एक गरीब आदमी की हत्या कुछ गोरक्षकों ने इसलिए कर दी कि उन्हें शक था कि उसने किसी गाय की हत्या कर दी थी। उसके घर से किसी गाय के अस्थि-पंजर देखकर उन्होंने यह क्रूरतापूर्ण कुकर्म कर दिया। क्या ऐसे लोगों को आप हिंदुत्व या गोमाता के रक्षक कह सकते हैं? ऐसे लोग आदमी को पशु से भी बदतर समझकर उसे मार डालते हैं। पंजाब में जो उग्रवादी खालिस्तान की मांग कर रहे हैं, वे बताएं कि वे कितने खालिस हैं? क्या वे गुरु नानक के सच्चे भक्त हैं? क्या उन्होंने गुरुवाणी के सच्चे अर्थों को समझने की कोशिश की है? वे धार्मिक उतने नहीं हैं, जितने राजनीतिक हैं। सत्ता की भूख उन्हें दौड़ाती रहती है। वे सत्ता हथियाने के लिए देश के दुश्मनों से भी हाथ मिला लेते हैं। सिखों के साथ क्या भारत में कोई भेदभाव या अन्याय होता है? भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सिख समुदाय के रहे हैं। वे लोकसभा अध्यक्ष, मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल, मुख्यमंत्री आदि सभी पदों पर रहते आए हैं। किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग को इतनी महत्ता भारत में नहीं मिली है, जितने सिखों को मिली है। क्या भारत में कोई ऐसा समुदाय भी है, जिसके सिरफिरे सदस्यों ने किसी प्रधानमंत्री की हत्या की हो? प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख लोगों पर जो अत्याचार हुआ है, उसकी निंदा किसने नहीं की है? सिख समुदाय अपनी भारत भक्ति और कठोर परिश्रम का पर्याय है। भारतीयों को उस पर गर्व है। जो बंधु खालिस्तान का नारा लगाते हैं, क्या उन्हें पता नहीं है कि 1947 में पाकिस्तान का नारा लगानेवालों ने बेचारे करोड़ों मुसलमानों की जिंदगी कैसे मुहाल कर रखी है। जो भारत में रह गए, उन करोड़ों मुसलमानों की जिंदगी भी उन खुदगर्ज नेताओं ने परेशानी में डलवा दी है। खालिस्तानियों को पाकिस्तान से मदद नहीं, सबक लेना चाहिए।