यूपी में राहुल तो अन्य राज्यों में अखिलेश तलाश रहे हैं संभावनाएं

Rahul is exploring possibilities in UP while Akhilesh is exploring possibilities in other states

संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से राहुल गांधी की जीत के बाद यूपी में पार्टी के लिये नई संभावनाएं तलाश रहा कांगे्रस आलाकमान और गांधी परिवार एक बार फिर प्रदेश में विस्तार के लिये कमजोर हो चुके संगठन को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास कर रहा है। राहुल गांधी ने भले ही समाजवादी पार्टी के वोट बैंक के सहारे रायबरेली से जीत हासिल की हो,लेकिन वह अपनी जीत को इस तरह से प्रचारित कर रहे हैं जैसे यूपी की जनता कांगे्रस को फिर से बीजेपी के विकल्प के रूप में देखने लगी है। राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से त्यागपत्र देकर रायबरेली सीट का संसद में प्रतिनिधित्व करने का निर्णय कर कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार किया है,अब यह उर्जा कब तक बरकरार रहेगी कोई नहीं जानता है। इस बार समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर चुनाव लड़ रही कांगे्रस को यूपी में 06 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यूपी को लेकर राहुल गांधी की चपलता को आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है। साढ़े तीन दशक से उत्तर प्रदेश में अपनी खोए जनाधार को तलाश रही कांग्रेस को अबकी लोकसभा चुनाव के नतीजों से नई उम्मीद जागी है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की निगाह अब उत्तर प्रदेश पर सबसे अधिक है। बीजेपी ने आम चुनाव में काफी खराब प्रदर्शन किया था,इससे भी कांग्रेस में खुशी का माहौल है।

बहरहाल, यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि समाजवादी पार्टी ने यूपी में कांग्रेस को वह सब कुछ दे दिया है जिसकी उसे वर्षो से दरकार थी,लेकिन अब अखिलेश इसकी कीमत वसूलना चाहते हैं। अखिलेश भी कांग्रेस से इस बात की अपेक्षा कर रहे हैं कि वह भी यूपी में बाहर उन राज्यों में उसको हिस्सेदारी दे जहां जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को उसका हिस्सा नहीं दिया तो सपा प्रमुख अपनी साइकिल से कांग्रेस को उतारने में देरी नहीं करेंगे। सपा के सूत्र कह रहे हैं कि आम चुनाव के बाद यूपी में विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस-सपा का गठबंधन महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव पर निर्भर करेगा। अगर कांग्रेस इन दो राज्यों में सपा को सीट देने के लिए तैयार हुई, तभी सपा यूपी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के किसी दावे पर विचार करेगी। यूपी में शीघ्र ही विधानसभा की 10 रिक्त सीटों पर चुनाव होने हैं।

इनमें से एक सीट सीसामऊ (कानपुर) से सपा विधायक इरफान सोलंकी को सजा होने से रिक्त हुई है, जबकि नौ विधानसभा सदस्य अब लोकसभा सांसद बन चुके हैं। सपा के चार विधायकों अखिलेश यादव, अवधेश प्रसाद, लालजी वर्मा और जियाउर रहमान बर्क की सीटें उनके लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद रिक्त हो गई हैं। अखिलेश वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव करहल, अवधेश प्रसाद मिल्कीपुर, लालजी वर्मा कटेहरी और जियाउर रहमान कुंदरकी से जीते थे। खैर से भाजपा विधायक अनूप प्रधान वाल्मीकि, गाजियाबाद से अतुल गर्ग और फूलपुर से भाजपा विधायक प्रवीण पटेल के भी लोकसभा सदस्य चुने जाने से अब यह स्थान खाली हो गए हैं। मझवा (मिर्जापुर) से निषाद पार्टी के विधायक विनोद कुमार बिंद और मीरापुर से रालोद के विधायक चंदन चौहान भी अब सांसद हो गए हैं। इस तरह से शीघ्र ही चुनाव आयोग इन 10 रिक्त सीटों पर चुनाव कराएगा। कांग्रेस इंडिया गठबंधन के तहत सपा से विधानसभा उपचुनाव में भी साझेदारी चाह रही है।

बताते चलें कांग्रेस और सपा के बीच ऐसा ही मनमुटाव लोकसभा चुनाव से पहले हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा को सीट न दिए जाने से दोनों दलों के बीच देखने को मिला था।। इस साल अक्टूबर में महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं।वहीं 2025 में पश्चिम बंगाल,दिल्ली और बिहार में विधान सभा चुनाव होने हैं। सपा के अंदरखाने चर्चा है कि कि अगर कांग्रेस महाराष्ट्र और हरियाणा में उनकी पार्टी को कुछ सीटें देने पर रजामंद हुई, तभी यूपी के उपचुनाव में कांग्रेस को कोई सीट देने पर विचार किया जा सकता है। महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी की ठीकठाक पकड़ है। 2019 के विधानसभा चुनाव में यहां से सपा के दो विधायक जीते थे। इससे पहले भी सपा वहां चुनाव जीतती रही है। इसी आधार पर सपा ने महाराष्ट्र में दावा करने का फैसला किया है। वहीं, हरियाणा की 20 सीटों पर मुस्लिम-यादव समीकरण प्रभावी हैं, जिसे सपा अपने पक्ष में मानती है। इस बारे में सपा के प्रवक्ता राजेंद्र चैधरी का कहना है कि यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन है, लेकिन उपचुनाव में सीटों के मामले में कोई भी निर्णय समय आने पर सपा नेतृत्व ही लेगा।

उधर, कांगे्रस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि राहुल गांधी के निर्णय से उत्तर प्रदेश कांग्रेस को बड़ी ताकत मिली है। प्रदेश कांग्रेस की मांग पर उन्होंने अपनी परंपरागत सीट को चुना है, जिससे पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं में उत्साह है। प्रदेश में संगठन को बूथ स्तर पर खड़ा करने के प्रयास निरंतर किए जा रहे हैं। पार्टी अभियान के तहत इसमें जुटी है और वरिष्ठ पदाधिकारियों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी जा रही हैं। हर जिले में नए कार्यकर्ताओं को जोड़ा जा रहा है। पार्टी मुख्यालय में आज राहुल गांधी का जन्मदिन मनाए जाने के साथ ही सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर विशेष आयोजन किए गये है। कांग्रेसी निराश्रित महिलाओं के बीच जाकर खुशियां बांटेंगे।

सूत्र बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में अमेठी व रायबरेली समेत छह सीटों पर कांग्रेस की जीत के बाद प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय व प्रदेश अध्यक्ष के लिए संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करने की चुनौती भी और बढ़ गई है। पार्टी के निष्क्रिय चेहरों को चिह्नित कर हटाने की तैयारी भी है। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की सक्रियता अब और बढ़ेगी। जिसके बाद प्रदेश कार्यकारिणी में कुछ नए चेहरे भी शामिल हो सकते हैं। इसके साथ ही कांग्रेस की सहयोगी दलों के साथ प्रस्तावित धन्यवाद यात्रा में भी राहुल गांधी की अधिक सक्रियता होने की उम्मीद जताई जा रही है।

कुल मिलाकर कांगे्रस और समाजवादी पार्टी की अपनी-अपनी सियासी महत्वाकांक्षा के चलते दोनों दलों के बीच की दूरियां धीरे-धीरे बढ़ती नजर आ रही हैं। समाजवादी पार्टी को चिंता इस बात की भी है कि यदि कांगे्रस ने यूपी में फिर से जड़े जमा ली तो समाजवादी पार्टी को इसका दीर्घकालीन खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।बता दें समाजवादी पार्टी के पास आज जो भी वोट बैंक है,उस पर कभी कांगे्रस का कब्जा हुआ करता था। सपा के पूर्व प्रमुख और दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव यह बात अच्छी तरह से समझते थे,इसीलिए उन्होंने कभी कांगे्रस से गठबंधन में रूचि नहीं दिखाई। नेताजी बेटे अखिलेश को भी कई बार सचेत कर चुके थे कि कांगे्रस से उसकी नजदीकी ठीक नहीं हैं। 2017 के विधान सभा चुनाव के समय नेताजी ने यह बात कही थी,तब कांगे्रस-सपा ने मिलकर यूपी विधान सभा चुनाव लड़ा था। परंतु तब इन दोनों नेताओं को कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई थी।