ललित गर्ग
अठारहवीं लोकसभा का पहला सत्र सोमवार से शुरू चुका है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ ली। तीन जुलाई तक दस दिन के लिये चलने वाले इस सत्र में दो दिन नए सांसदों को शपथ दिलाई जायेगी। बुधवार को नए लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होगा, जबकि गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करेंगी। लोकसभा सत्र में विपक्ष इस बार अपनी बढ़ी हुई शक्ति का एहसास कराते हुए आक्रामक होने से नहीं चूकेगा। यही वजह है विपक्ष ने सत्र से पहले परीक्षा में गड़बड़ी, अग्निवीर व प्रोटेम स्पीकर जैसे मुद्दों को लेकर आक्रामक रुख दिखाने की रणनीति बनाई है। लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव में भी सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिशें होती हुई दिख रही है। वैसे भी वह पहले ही सत्ता पक्ष के गठबंधन के सहयोगियों को लोकसभा अध्यक्ष पद की मांग के लिए उकसाने में लगा हुआ है एवं वहीं स्वयं के लिये लोकसभा के उपाध्यक्ष पद की मांग कर रहा है। विपक्ष ने प्रोटेम अध्यक्ष की नियुक्ति के अलावा नीट-यूजी पेपर लीक व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के स्थगित होने के मामले में सरकार को घेरने एवं संसदीय कार्रवाई को बाधित करने की रणनीति बनाई है, जिससे पहले दिन ही हंगामे के परिदृश्य देखने को मिल रहे हैं। बेहतर संख्या बल के चलते विपक्ष का उत्साहित होना स्वाभाविक है और उसके नेताओं की ओर से विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की तैयारी में भी कुछ अनुचित नहीं, लेकिन इस तैयारी के नाम पर संसद में हंगामा और शोरशराबा करके ऐसी परिस्थितियां नहीं पैदा की जानी चाहिए जिससे संसद चलने ही न पाए। एक लंबे समय से यह देखने में आ रहा है कि विभिन्न मुद्दों पर सरकार से जवाबदेही के नाम पर विपक्ष संसद में हंगामा और अव्यवस्था पैदा करना उचित समझता आ रहा है, उसके तेवर इस बार ज्यादा ही उग्र एवं उत्तेजिक दिख रहे हैं, जो संसदीय परम्परा के लिये दुर्भाग्यपूर्ण है। सांसद चाहे जिस दल के हो, उनसे शालीन एवं सभ्य व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। लेकिन सांसद अपने दूषित एवं दुर्जन व्यवहार से संसद को शर्मसार करते हैं तो यह लोकतंत्र के सर्वोच्च मन्दिर की गरिमा के प्रतिकूल है।
संसद राष्ट्र की सर्वोच्च संस्था है। देश का भविष्य संसद के चेहरे पर लिखा होता है। यदि वहां भी शालीनता, मर्यादा एवं सभ्यता का भंग होता है तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के गौरव का आहत होना निश्चित है। आजादी के अमृतकाल तक पहुंचने के बावजूद भारत की संसद यदि सभ्य एवं शालीन दिखाई न दे तो ये स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण ही कही जायेगी।
एक बार फिर ऐसी ही त्रासद स्थितियों से रू-ब-रू होने की स्थितियां बनना एक चिन्तनीय प्रश्न है। संसद की सार्थकता केवल इसमें नहीं है कि वहां विभिन्न मुद्दे उठाए जाएं बल्कि इसमें है कि उन पर गंभीर एवं शालीन तरीके से चर्चा होकर राष्ट्रहित में प्रभावी निर्णय लिये जाये। दुर्भाग्य से संसद में राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर ऐसी कोई चर्चा कठिनाई से ही होती है जिससे देश को कोई दिशा मिल सके और समस्याओं के समाधान खोजे जा सके। उचित यह होगा कि संसद में दोनों ही पक्ष संसदीय कार्यवाही के जरिये एक उदाहरण पेश करें, नयी संभावनाओं एवं सौहार्द का वातावरण बनाते हुए नई उम्मीदों एवं संकल्पों के सत्र के रूप में इस सत्र एवं आगे के सत्रों का संचालन होने दें।
अठारहवीं लोकसभा के पहले सत्र को लेकर उत्सुकता एवं कुतूहल का वातावरण पक्ष-विपक्ष के नवनिर्वाचित सांसदों में ही नहीं, बल्कि आम जनता में भी है। गठबंधन की स्थितियों के कारण यह लोकसभा पिछली लोकसभा से भिन्न होगी। इस बार विपक्ष का संख्या बल कहीं अधिक है और सत्तापक्ष गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहा है। यद्यपि यह गठबंधन सरकार अतीत की गठबंधन सरकारों से भिन्न है, क्योंकि उसका नेतृत्व करने वाला दल यानी भाजपा बहुमत से कुछ ही पीछे है। इसके बावजूद संसद में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच टकराव देखने को मिल सकता है। इस टकराव के आसार भी उभर आए हैं, क्योंकि विपक्ष को प्रोटेम स्पीकर के नाम पर आपत्ति है। विपक्षी इंडिया गठबंधन की मानसिकता संसदीय सत्रों में देश-विकास की योजनाओं पर निर्णय में सहभागिता से अधिक सत्ता पक्ष को घेरने एवं सरकार के कामकाज को बाधिक करने की ही अधिक दिखाई दे रही है। यह निश्चित है कि सार्वजनिक जीवन में सभी एक विचारधारा, एक शैली व एक स्वभाव के व्यक्ति नहीं होते। अतः आवश्यकता है दायित्व के प्रति ईमानदारी के साथ-साथ आपसी तालमेल व एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ एवं सौहार्द भावना की। जनता के विश्वास पर खरे उतरते हुए नये भारत-सशक्त भारत को निर्मित करने की। राजनीतिक दल द्वंद्व, एक दूसरे की आलोचना एवं विरोध की स्थितियां चुनाव के मैदान तक सीमित करें, उन्हें संसद तक न लाये। संसद में तो सभी दल मिलकर राष्ट्र-निर्माण का काम करें। एक सांसद के साथ दूसरा सांसद जुड़े तो लगे मानो स्वेटर की डिजाईन में कोई रंग डाला हो। सेवा एवं जनप्रतिनिधित्व का क्षेत्र ”मोजॉयक“ है, जहां हर रंग, हर दाना विविधता में एकता का प्रतिक्षण बोध करवाता है। अगर हम सांसदों मंे आदर्श स्थापित करने के लिए उसकी जुझारू चेतना को विकसित कर सकें तो निश्चय ही आदर्शविहिन असंतुष्टों की पंक्ति को छोटा कर सकेंगे और ऐसा करके ही संसद को गरिमापूर्ण मंच बना पायेंगे।
नरेन्द्र मोदी तीसरी बार सत्ता में लौटे हैं। मोदी का लोकसभा सदस्य एवं प्रधानमंत्री के रूप में यह तीसरा कार्यकाल है। उन्होंने वाराणसी सीट बरकरार रखी, जिसे वे 2014 से जीतते आ रहे हैं। पहली बार नए संसद भवन में शपथग्रहण हुआ। भारतीय संसदीय इतिहास में ऐसा दूसरी बार है कि जनता ने किसी सरकार को लगातार तीसरी बार शासन करने का अवसर दिया है। ये मौका 60 साल बाद आया है। अगर जनता ने ऐसा फैसला किया है तो उसने सरकार की नियत पर मुहर लगाई है। उसकी नीतियों पर मुहर लगाई है। जनता के फैसले का स्वागत होना चाहिए, लेकिन ऐसा न होना संसद के साथ-साथ भारत के लिये परेशानी का कारण है। आज भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने के साथ अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की ओर गतिशील है। भारत की बात दुनिया बड़ी ध्यान से सुनती है, वही दुश्मन देश भारत पर तिरछी नजर डालने से पहले सौ बार सोचते हैं, यह भारत की बड़ी ताकत का द्योतक है, जिसे पक्ष एवं विपक्ष मिलकर सहेजे और नये आयाम उद्घाटित करें। इन विषयों पर गंभीर चिन्तन-मंथन की संसद के पटल पर अपेक्षा है। जबकि निश्चित ही छोटी-छोटी बातों पर अभद्र एवं अशालीन शब्दों का व्यवहार, हो-हल्ला, छींटाकशी, हंगामा और बहिर्गमन आदि घटनाओं का संसद के पटल पर होना दुखद, त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण है। इससे संसद की गरिमा एवं मर्यादा को गहरा आघात लगता है। यह सिलसिला बंद होना चाहिए। जहां विपक्ष का यह दायित्व है कि वह प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाओं और अन्य ज्वलंत मुद्दों पर सरकार से जवाब तलब करे वहीं सत्तापक्ष की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहे। यदि ऐसा नहीं होता तो यह निराशाजनक ही होगा।
राष्ट्रीय चरित्र का दिन-प्रतिदिन नैतिक हृास हो रहा है। हर गलत-सही तरीके से हम सब कुछ पा लेना चाहते हैं। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कर्त्तव्य को गौण कर देते हैं। इस तरह से जन्मे हर स्तर के अशालीन एवं असभ्य व्यवहार से राष्ट्रीय जीवन में एक विकृति पैदा होती है, संसद को ही दूषित कर दिया जाता है, अठारहवीं लोकसभा के सभी सत्र इस त्रासदी से मुक्त हो, यह अपेक्षित है। विपक्षी सांसदों की यह कैसी त्रासद मानसिकता है कि वे सब चाहते हैं कि हम आलोचना करें पर काम नहीं करें। हम गलतियां निकालें पर दायित्व स्वीकार नहीं करें। जरूरत इस बात की भी है कि संसद को शुद्ध सांसें मिले, संसदीय जीवन जीने का शालीन, मर्यादित एवं सभ्य तरीका मिले।