विजय गर्ग
एक समय था, जब अमेरिका ने भारत को सुपर कंप्यूटर की तकनीक देने से इनकार कर दिया था, मगर देश ने स्वदेशी तकनीक से न केवल सुपर कंप्यूटर ‘परम’ बनाया, बल्कि अब क्वांटम कंप्यूटर बनाने की दहलीज पर है। यह मौजूदा कंप्यूटर से कई हजार गुना शक्तिशाली होगा। अमेरिका ने कुछ शर्तों पर पिछली पीढ़ी की तकनीक देने पर सहमति दी, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसे चुनौती के तौर पर लिया। उस समय अमेरिकी सुपर कंप्यूटर की कीमत 37 करोड़ रुपए थी।
उतनी कीमत में भारत ने स्वदेशी तकनीक से सौ वैज्ञानिकों की टीम के साथ एक नया केंद्र और सुपर कंप्यूटर ‘परम्’, दोनों तैयार कर लिए थे। भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक से ‘परमरुद्र’ ‘ सहित तीन सुपर कंप्यूटर बनाए हैं। इनसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, ब्लैकहोल, खगोल विज्ञान और मौसम के क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण | जानकारियां मिलेंगी। यह भारत की तकनीकी प्रगति में मील का पत्थर है। इससे कई नई तकनीकों का विकास होगा और नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा। प्रधानमंत्री ने हाल में इन सुपर कंप्यूटरों को देश को समर्पित किया। ‘परमरुद्र’ के अलावा अन्य कंप्यूटरों के नाम ‘अरका’ और ‘अरुणिका’ रखे गए हैं। विश्व स्तर पर के पास सर्वाधिक सुपर कंप्यूटर हैं, उसके बाद अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, आयरलैंड और ब्रिटेन का स्थान है।
सुपर भारत सरकार ने मार्च 2015 में सात वर्षों की अवधि (2015-2022 ) के लिए 4,500 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से ‘राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटिंग मिशन’ की घोषणा की थी। इस मिशन के अंतर्गत सत्तर से अधिक उच्च प्रदर्शन वाले सुपर कंप्यूटरों के माध्यम से विशाल ‘सुपर कंप्यूटिंग ग्रिड’ स्थापित कर देश भर के राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों और संस्थाओं को सशक्त बनाने की परिकल्पना की गई है। इस परियोजना का उद्देश्य एक मजबूत भारतीय नेटवर्क स्थापित करना है, जो सुरक्षित और विश्वसनीय कनेक्टिविटी प्रदान करने में सक्षम होगा।
‘परमरुद्र’ सुपर कंप्यूटिंग सिस्टम की ‘प्रोसेसिंग स्पीड’ एक पेटाफ्लाप प्रति सेकंड है। यानी यह एक सेकंड में दस लाख करोड़ ‘फ्लोटिंग प्वाइंट आपरेशंस’ को अंजाम दे सकता है। किसी एक मशीन के लिए यह बेहद तेज ‘कंप्यूटिंग स्पीड’ है। एचपीसी (हाई परफारमेंस कंप्यूटिंग) सुपर कंप्यूटिंग सिस्टम उन्नत कंप्यूटिंग प्रणाली हैं, जिन्हें जटिल और डेटा गहन कार्यों को संभालने लिए डिजाइन किया गया है। इसके लिए महत्त्वपूर्ण ‘कम्प्यूटेशनल ‘ शक्ति की आवश्यकता होती है। एचपीसी सिस्टम बड़े पैमाने की समस्याओं को हल करने के लिए समांतर रूप से काम करने वाले कई प्रोसेसर की क्षमताओं का लाभ उठाते हैं। इन प्रणालियों का उपयोग आमतौर पर जलवायु माडलिंग, आणविक जीवविज्ञान और जीनोमिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) और मशीन लर्निंग, इंजीनियरिंग और सामग्री विज्ञान सिमुलेशन, रक्षा और एअरोस्पेस अनुप्रयोगों में किया जाता है।
“परमरुद्र’ को जटिल गणनाओं और ‘सिमुलेशन’ को उल्लेखनीय गति से संभालने के लिए डिजाइन किया गया है। ये सुपर कंप्यूटर भारत के राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटिंग मिशन का परिणाम हैं, जो घरेलू स्तर पर उन्नत तकनीकों को विकसित करने में देश की बढ़ती क्षमताओं को प्रदर्शित करते हैं। पुणे में, विशाल मीटर रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) परमरुद्र का उपयोग ‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ (एफआरबी) और अन्य खगोलीय घटनाओं का अध्ययन करने के लिए करेगा, जिससे ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी। कई हजार इंटेल सीपीयू, नब्बे अत्याधुनिक एनवीडिया, सौ जीपीयू, 35 टेराबाइट मेमोरी और दो पेटाबाइट स्टोरेज से सुसज्जित, परम ब्रह्मांड प्रणाली खगोल विज्ञान में वैज्ञानिक अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है, जिससे इस क्षेत्र में परिवर्तनकारी प्रगति संभव होगी।
दिल्ली स्थित अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र (आइयूएसी) में सुपर कंप्यूटर पदार्थ विज्ञान और परमाणु भौतिकी में अनुसंधान तथा इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नवाचारों को बढ़ावा देगा। ये सुपरकंप्यूटर युवा वैज्ञानिकों के लिए अत्याधुनिक तकनीक सुलभ बनाएंगे। कोलकाता स्थित एसएन बोस राष्ट्रीय आधारभूत विज्ञान केंद्र, भौतिकी, ब्रह्मांड विज्ञान और पृथ्वी विज्ञान में उन्नत अध्ययन के लिए परमरुद्र का लाभ उठाएगा।
‘अरका’ और ‘अरुणिका’, जो सूर्य पर आधारित हैं, इनकी ‘कंबाइंड प्रोसेसिंग पावर’ 21.3 पेटाफ्लाप है। ये दोनों नोएडा स्थित नेशनल सेंटर फार मीडियम रेंज वेदर फोरकास्ट और पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रोपिकल मीटरोलाजी में पहले से मौजूद प्रणालियों- ‘प्रत्यूष’ और ‘मिहिर’ की जगह लेंगे। ‘अरका’ और ‘अरुणिका’ की मदद से हाई-रिजोल्यूशन वाले माडल तैयार किए जाएंगे, जो उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, भारी वर्षा, आंधी, ओलावृष्टि, गर्म लहरों, सूखे और अन्य मौसम संबंधी घटनाओं से संबंधित भविष्यवाणियों की सटीकता और ‘लीड टाइम’ को महत्त्वपूर्ण स रूप से बढ़ाएंगे। मदद से भारत मौसम विज्ञान के में बड़ा खिलाड़ी बन सकता है।
‘परमरुद्र सुपर कंप्यूटर’, ‘अरका’ और ‘अरुणिका’ की मदद भारत ने सुपर कंप्यूटिंग तकनीक में बड़ी छलांग लगाई है। इनकी मदद से भारत खगोल विज्ञान लेकर मौसम की भविष्यवाणी तक के क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के लिए तैयार है। इससे वैश्विक अनुसंधान में भारत स्थिति और मजबूत होगी। इसके अलावा, इन प्रणालियों के व्यावहारिक अनुप्रयोग वैज्ञानिक अनुसंधान से हैं। इनमें कृषि, आपदा प्रबंधन और अंतरिक्ष अन्वेषण सहित विभिन्न क्षेत्रों को लाभ पहुंचाने की क्षमता है।
मसलन, बेहतर मौसम पूर्वानुमान किसानों को फसल प्रबंधन के बारे में जानकारी देने में मदद कर सकता है। । इन सुपर कंप्यूटरों को स्वदेशी रूप से विकसित करके, भारत तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है। क्वांटम कंप्यूटर ऐसी मशीनें हैं, जो डेटा संग्रहीत करने और गणना करने के लिए क्वांटम भौतिकी के गुणों का उपयोग करती हैं। यह कुछ कार्यों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकता है, जहां वे हमारे सबसे अच्छे सुपर कंप्यूटर से भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। क्लासिकल कंप्यूटर, जिसमें स्मार्टफोन और लैपटाप शामिल हैं, बाइनरी ‘बिट्स’ में जानकारी को ‘एनकोड’ करते हैं जो 0 या 1 हो सकते हैं। । क्वांटम कंप्यूटर में ‘मेमोरी” ‘ की मूल इकाई ‘क्वांटम बिट’ या ‘क्यूबिट’ होती है।
‘क्यूबिट्स’ को भौतिक प्रणालियों का उपयोग करके बनाया जाता है, जैसे कि इलेक्ट्रान का स्पिन या फोटान का अभिविन्यास ।
ये प्रणालियां एक साथ कई अलग-अलग व्यवस्थाओं में हो सकती हैं। इसे ‘क्वांटम सुपरपोजिशन’ के रूप में जाना जाता है। क्वांटम उलझाव नामक एक घटना का उपयोग करके क्यूबिट्स को एक साथ अटूट रूप से जोड़ा जा सकता 1 सकता है।
इसका परिणाम यह होता है कि क्यूबिट्स की एक श्रृंखला एक साथ विभिन्न चीजों का प्रतिनिधित्व कर सकती है। 0 से 255 के बीच किसी भी संख्या को दर्शाने के लिए एक क्लासिकल कंप्यूटर के लिए आठ बिट्स पर्याप्त हैं। मगर एक क्वांटम कंप्यूटर के लिए 0 से 255 के बीच हर संख्या को एक साथ दर्शाने के लिए आठ क्यूबिट्स पर्याप्त हैं। ब्रह्मांड में जितने परमाणु हैं, उससे ज्यादा संख्या को दर्शाने के लिए कुछ सौ उलझे हुए क्यूबिट्स पर्याप्त होंगे। यहीं पर क्वांटम कंप्यूटर क्लासिकल कंप्यूटरों पर बढ़त हासिल करते हैं। ऐसी स्थितियों में जहां संभावित संयोजनों की संख्या बहुत ज्यादा हो, क्वांटम कंप्यूटर उन पर एक साथ विचार कर सकते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब