सुनील कुमार महला
आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व धीरे-धीरे एक बार पुनः रसायन मुक्त प्राकृतिक और परंपरागत खेती की ओर बढ़ रहा है। भारत सदियों सदियों से विश्व का एक बड़ा कृषि प्रधान देश रहा है और आज भी है और यहां प्राकृतिक खेती होती रही है। कहना ग़लत नहीं होगा कि हरित क्रांति से पहले भारत परंपरागत और प्राकृतिक खेती करता रहा है। हरित क्रांति के दौरान कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग बढ़ा और आज एक बार फिर भारत परंपरागत और प्राकृतिक खेती की ओर क़दम बढ़ा रहा है। वास्तव में प्राकृतिक खेती स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों जैसे कि देसी गाय का मल-मूत्र, विविधता के माध्यम से कीटों के प्रबंधन के साथ ही खेती से विभिन्न सिंथेटिक रासायनिक आदानों का बहिष्करण(रसायन मुक्त कृषि पद्धति) किए जाने पर आधारित एक साधारण कृषि पद्धति है। कहना ग़लत नहीं होगा कि हाल ही में जो मिशन भारत में शुरू किया गया है इस मिशन का मुख्य मकसद किसानों को रासायनिक खेती से दूर करके प्राकृतिक खेती(स्थानीय पशुधन, प्राकृतिक तरीके और विविध फसल प्रणालियों का इस्तेमाल) की ओर ले जाना है। इसी क्रम में भारत सरकार ने रसायन मुक्त और जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने के लिये एक अलग तथा स्वतंत्र योजना के रूप में प्राकृतिक खेती हेतु राष्ट्रीय मिशन (एनएमएनएफ) शुरू किया है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में 25 नवंबर 2024 को ही राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का शुभारंभ कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली एक केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में किया गया है। गौरतलब है कि इस योजना का 15वें वित्त आयोग (2025-26) तक कुल परिव्यय 2481 करोड़ रुपये है, जिसमें भारत सरकार का हिस्सा- 1584 करोड़ रुपये; तथा राज्य का हिस्सा- 897 करोड़ रुपये है। वास्तव में एनएमएनएफ पूरे देश में मिशन मोड में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है। पाठकों को जानकारी के लिए बताता चलूं कि अगले दो वर्षों में एनएमएनएफ को इच्छुक ग्राम पंचायतों के 15 हजार समूहों में लागू किया जाएगा तथा 01 करोड़ किसानों तक पहुंचाया जाएगा और 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती (एनएफ) शुरू की जाएगी। वास्तव में, इसके लिए 10,000 जैव-आदान संसाधन केंद्र (बीआरसी) स्थापित किए जाएंगे और 2000 मॉडल प्रदर्शन फार्म बनाए जाएंगे। किसानों को प्रशिक्षण, प्रमाणन और बाजार पहुंच प्रदान की जाएगी। वास्तव में एनएमएनएफ का उद्देश्य सभी के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है। यह मिशन किसानों की खेती की लागत को कम करेगा वहीं दूसरी ओर बाहरी खरीदारी पर निर्भरता कम करने में भी किसानों की मदद करेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि प्राकृतिक खेती से एक ओर जहां मिट्टी की सेहत में सुधार होगा, वहीं दूसरी ओर इससे जैव विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि मिट्टी में कार्बन की मात्रा और जल उपयोग दक्षता में सुधार के माध्यम से, मिट्टी के सूक्ष्मजीवों और एनएफ में जैव विविधता में वृद्धि होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्राकृतिक खेती स्वस्थ मृदा इकोसिस्टम का निर्माण और रख-रखाव करेगी। विविध फसल प्रणालियों को भी इससे बढ़ावा मिल सकेगा। प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत(उर्वरता बढ़ेगी) अच्छी होगी तथा जलभराव, बाढ़, सूखे आदि जैसे जलवायु जोखिमों से संभलने का सामर्थ्य पैदा करने में मदद मिल सकेगी। प्राकृतिक खेती के कारण स्वास्थ्य के जोख़िम भी निश्चित ही कम होंगे और साथ ही इससे आने वाली पीढ़ियों को भी स्वस्थ धरती उपलब्ध हो सकेगी। कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि प्रकृति और पर्यावरण को निश्चित ही इससे फायदा होगा। गौरतलब है कि जलवायु के अनुकूल खेती से किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को फायदा होगा।राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन(एनएमएनएफ) के तहत, कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि विश्वविद्यालयों और किसानों के खेतों में लगभग 2000 एनएफ मॉडल प्रदर्शन फार्म स्थापित किए जाएंगे और इन्हें अनुभवी और प्रशिक्षित किसान मास्टर प्रशिक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। गौरतलब है कि इस मिशन के तहत किसानों को प्रशिक्षण और संसाधन दिए जाएंगे। जैविक संसाधन केंद्र भी स्थापित होंगे। इतना ही नहीं, मिशन के तहत 18.75 लाख प्रशिक्षित इच्छुक किसान अपने पशुओं का उपयोग करके या बीआरसी से खरीद कर जीवामृत, बीजामृत आदि जैसे कृषि संबंधी संसाधन तैयार करेंगे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि किसानों की मदद करने के लिए, उनमें जागरूकता पैदा करने के लिए 30,000 कृषि सखियों/सीआरपी को तैनात किया जाएगा। अंत में यही कहूंगा कि आज के इस आधुनिक युग में किसान एक बार फिर परंपरागत प्राकृतिक खेती की ओर लौट रहे हैं, जैसा कि आज हमारी ज्यादातर जमीनें रासायनिक खादों, उर्वरकों, कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से पहले ही जहरीली हो चुकीं हैं। सरकार ने अब प्राकृतिक खेती की महत्ता को समझते हुए देश में प्राकृतिक खेती हेतु राष्ट्रीय मिशन (एनएमएनएफ) शुरू कर दिया है। इससे निश्चित ही किसानों और पर्यावरण को अभूतपूर्व लाभ पहुंचेंगे। प्राकृतिक खेती से भू-जल स्तर में भी वृद्धि होगी। इतना ही नहीं इससे मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आएगी। मनुष्य का स्वास्थ्य भी ठीक बना रहेगा।फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होगी। निश्चित ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से हर तरफ लाभ ही लाभ होंगे।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।