ललित गर्ग
भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है और यह आजादी की शताब्दी वर्ष 2047 तक उच्च मध्य आय के दर्जे तक पहुंचने की आकांक्षा के साथ विश्व बाजार बनने के पथ पर आगे बढ़ने के लिए तैयार है। देश यह भी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि भारतीय बाजार एक ऐसी आदर्श बाजार व्यवस्था को स्थापित करें जिसमें उपभोक्ताओं की ठगी की बढ़ती घटनाएं पर पूर्णतः नियंत्रण हो। इसके लिये उपभोक्ता में उत्पादकता और गुणवत्ता संबंधित जागरूकता को बढ़ाने, जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, अधिक दाम, कम नाप-तौल, ठगी इत्यादि संकटों से उपभोक्ता को मुक्ति दिलाने एवं उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के बारे में लोगों को जानकारी देकर उपभोक्ता के हितों की रक्षा करने केे उद्देश्य से भारत में 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में उपभोक्ता का मतलब ही ठगी का शिकार हो गया है। देश का प्रत्येक आदमी कहीं न कहीं अक्सर ठगा जा रहा है। आनलाइन बाजार व्यवस्था एवं ई-बाजारवाद में ठगी की घटनाएं एक बड़ी समस्या एवं चुनौती बन गयी है। सरकार ने उपभोक्ता के अधिकारों के संरक्षण के लिए कानून भी बनाया है। उन्हें जगाने के निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। फिर भी उपभोक्ता सोये हैं, जबकि मुनाफे के लिए छल के नए-नए तरीके आजमाए जा रहे हैं, क्योंकि दो तिहाई से ज्यादा आबादी अपने ही अधिकारों के प्रति सतर्क नहीं है।
उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए इसी दिन 24 दिसंबर, 1986 को भारत सरकार ने ऐतिहासिक उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 लागू किया गया था। इस अधिनियम एवं बाद में किये गये संशोधनों का उद्देश्य उपभोक्ताओं का दोषपूर्ण वस्तुओं, लापरवाह सेवाओं एवं अनुचित व्यापार प्रथाओं से संरक्षण करना है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के छह मौलिक अधिकार सुरक्षा का अधिकार, चुनने का अधिकार, सूचित किये जाने का अधिकार, सुनवाई का अधिकार, निवारण पाने का अधिकार एवं उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार हैं। यह दिन भारतीय ग्राहक आन्दोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरांे में लिखा गया है। उपभोक्ता संरक्षण कानून से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य यह है की किसी भी शासकीय पक्ष ने इस विधेयक को तैयार नहीं किया बल्कि अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने प्रथमतः इस विधेयक का मसौदा तैयार किया। हम में से हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता है। कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान खरीदता है, वह उपभोक्ता है। उपभोक्ता क्योंकि संगठित नहीं हैं इसलिए हर जगह ठगा जाता है। इसलिए उपभोक्ता को जागना होगा और खुद को इन संकटों से बचाना होगा। बहुत कम उपभोक्ता जानते होंगे कि उनके क्या अधिकार हैं। राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के माध्यम से उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाता है और इसके साथ ही अगर वह धोकाधड़ी, कालाबाजारी, घटतौली, ठगी आदि का शिकार होते हैं तो वह इसकी शिकायत कर सकें। इस कानून में जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं की बिक्री के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार दिया गया है, खरीदी गई वस्तु की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, उसके बारे में जानकारी का अधिकार एवं इसके लिए आवाज उठाने का अधिकार है।
बढ़ते बाजारवाद एवं उदारीकरण के इस दौर में जैसे ही हम अपनी जरूरत की कोई चीज या सेवा लेते हैं, तभी उपभोक्ता का ठप्पा हमारे ऊपर लग जाता है। कायदे से किसी चीज या सेवा के एवज में चुकाई जाने वाली कीमत में किसी भी तरह की घोखाधड़ी एवं ठगी नहीं होना चाहिए, लेकिन अक्सर उपभोक्ता ठगे जाते हैं। खराब गुणवत्ता की चीजें और सेवा प्रदाता से अपने अधिकारों के हक की लड़ाई ही जागरूक उपभोक्ता की पहचान है। उपभोक्ता दिवस मनाते हुए हम केवल उपभोक्ता अधिकारों की ही बात नहीं करते बल्कि उपभोक्ता की उन्नत एवं सम्यक् सोच को भी विकसित करते हैं। आर्थिक विसंगतियों एवं विषमताओं को दूर करने के लिये उपभोक्ता जागृति जरूरी है। आज का उपभोक्तावादी दृष्टिकोण एक प्रकार का सम्मोहन बन गया है, हिस्टीरिया की बीमारी बन गया है। सम्मोहन करने वाला जैसा नचायेगा, उपभोक्ता वैसा ही नाचेगा, फिर उपभोक्ता संरक्षण कैसे संभव होगी? यह तभी संभव है जब हमारा उपभोग के प्रति सम्यक् दृष्टिकोण होगा। नया उपभोक्तावाद एक प्रकार से नई हिंसा का उपक्रम है। हिंसा, प्रतिस्पर्धा, सत्ता की दौड़ एवं आर्थिक साम्राज्य को इससे नया क्रूर आकार मिला है। क्योंकि उपभोक्तावाद की अंधी दौड़ ने व्यक्ति को संग्रह, सुविधा, सुख, भोग-विलास एवं स्वार्थ से जोड़ दिया है। स्वार्थों के संघर्ष में अन्याय, शोषण एवं अनैतिकता होने लगी। आज की उपभोक्तावादी एवं सुविधावादी जीवन-धारा में जैसे-जैसे भोगवाद बढ़ता जारहा है, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, प्रकृति दोहन, आतंकवाद, युद्ध, संघर्ष की स्थितियों बढ़ती जा रही है। समाज, राष्ट्र एवं विश्व में व्याप्त प्रदर्शन, दिखावा एवं फिजुलखर्ची पर नियंत्रण जरूरी है।
सरकार की ओर से उपभोक्ताओं को जागरूक किया जा रहा है, उनके हितों का संरक्षण भी किया जा रहा है, इसी की निष्पत्ति है ‘जागो ग्राहक जागो’ जैसे अभियान। उपभोक्ता अधिकारों पर काम करने वाली एनजीओ कट्स (सीयूटीएस) इंटरनेशनल ने समय-समय पर सर्वे के माध्यम से पता लगाया है कि कितने उपभोक्ता ठगे जाते है और कितने उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति सचेत है। उपभोक्ता मंत्रालय के व्यापक जागरूकता अभियान के बावजूद गलत उत्पाद बेचकर मुनाफा कमाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसी ठगी के शिकार 90 प्रतिशत लोगों ने तो कभी शिकायत ही नहीं की है। चार से पांच प्रतिशत उपभोक्ता ही कंपनी या उत्पाद निर्माता के पास अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं। हालांकि हाल के वर्षों में आनलाइन खरीद और साइबर क्राइम में वृद्धि के चलते लोगों में अपने आप जागरूकता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्र के लोग कुछ ज्यादा जागरूक हुए हैं, जबकि गांवों के लोग अभी भी अनजान हैं। गांवों के लोग यह भी नहीं जानते कि खरीदारी से पहले आईएसआई, आईएसओ एवं एगमार्क जैसे गुणवत्ता प्रमाणन की छानबीन करनी चाहिए। इंटरनेशनल कंज्यूमर पालिसी एक्सपर्ट प्रो. बीजान मिश्रा का कहना है कि अगर किसी से प्रेरित होकर कोई व्यक्ति उचित फोरम में चला भी गया तो गारंटी नहीं कि उसे समाधान मिल ही जाए। शिकायत दर्ज कराने वाले केवल 18 से 20 प्रतिशत उपभोक्ताओं को ही संतोषजनक समाधान मिलता है। बाकी को या तो समाधान नहीं मिला या कार्रवाई से संतुष्टि नहीं मिली। हालांकि सुखद संकेत है कि कई मामलों में त्वरित समाधान मिलने से उपभोक्ता निवारण तंत्र पर भरोसा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। ई-प्लेटफार्म पर भरोसा नहीं होने पर भी खरीदारी बढ़ रही है। एक सर्वे में बात आई है कि शहरों में 56 प्रतिशत उपभोक्ता आनलाइन खरीद करने लगे हैं। हालांकि अलग बात है कि उन्हें आनलाइन खरीदे गए उत्पादों की गुणवत्ता पर भरोसा फिर भी नहीं होता।
आज की बाजार शक्तियां उपभोक्ताओं का शोषण करती है। इन्हीं उपभोक्तावादी एवं बाजार शक्तियों के कारण जीवन में सुख का अभिप्राय केवल भोग और उपभोग को माना जाने लगा हैं। ऐसे में झूठी शानो-शौकत के दिखावे के चक्कर में उपभोक्ता अविवेकशील होकर अनावश्यक चीजों को भी थैले में भरकर घर ला रहा है। बाजार एवं उपभोक्तावादी संस्कृति के इस काले जादू के आगे उपभोक्ता बेबस एवं लाचार खड़ा हैं। जिसके कारण वस्तुओं की गुणवत्ता के स्तर में गिरावट आ रही हैं। कोई भी चीज मिलावटरहित मिलना अब संभव नहीं है। न चाहते हुए भी उपभोक्ता लूट का शिकार बन रहा है। इतना ही नहीं, उपभोक्तावादी संस्कृति ने भोगवादी जीवन जीने के लिए मनुष्य के समक्ष नए आयाम प्रस्तुत किए हैं तथा उसे सुविधाभोगी बना दिया है। भोग्य वस्तुओं का उपयोग ही जीवन का प्रमुख लक्ष्य बन गया है। भोगवाद के कारण सबसे बड़ी हानि यह हुई है कि भोगों के प्रति रुचि या रति का गहरा पोषण हुआ है वही उपभोक्ताओं के शोषण भी बढ़ता जारहा है। इसी शोषण से मुक्त दिलाना ही राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस की सार्थकता एवं उपयोगिता है।