मिटाना होगा आत्महत्याओं का कलंक

The stigma of suicide must be eradicated

रमेश सर्राफ धमोरा

भारत में आए दिन आत्महत्या की घटनाएं घटित होती रहती है। यहां हर चार मिनट में एक आत्महत्या की जाती है। यहां शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा जब किसी न किसी इलाके से गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, कर्ज जैसी तमाम आर्थिक तथा अन्य सामाजिक दुश्वारियों से परेशान लोगों के आत्महत्या करने की खबरें न आती हों। आत्महत्या करना सभ्य समाज के माथे पर एक कलंक के समान है। आत्महत्या में व्यक्ति स्वयं को दंडित करते हुए अपनी जान दे देता है। ऐसा घिनोना कार्य कोई व्यक्ति तभी करता है जब वह चारों तरफ से निराश हो जाता है।

आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण आर्थिक पक्ष को माना जाता है। उसके बाद मानसिक, पारिवारिक व अन्य बहुत से कारण हो सकते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने पर व्यक्ति स्वयं को गिरा हुआ महसूस करता है और अंत में वह आत्महत्या करने जैसा घिनौना कदम उठा लेता है। हम आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं कि बहुत से परिवारों ने आर्थिक कर्म से सामूहिक आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर ली। बहुत से किसान अपना खेती का कर्ज नहीं चुका पाने के कारण भी बड़ी संख्या में आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने कानून तो बना दिया मगर उसका प्रभाव समाज पर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। प्रेम में असफल होने पर भी बड़ी संख्या में नवयुवक युवतियां आत्महत्या कर अपने जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं।

आंकड़ों की दृष्टि से भारत आत्महत्याओं के मामले में दुनिया में सिरमौर बनता जा रहा है। आत्महत्या रोकने की दिशा में अब तक सरकारी स्तर पर जितने भी प्रयास हुए हैं वह सब नाकाम साबित हुए हैं। सरकारी आंकड़ों में जितनी आत्महत्या की संख्या दर्शायी जाती है उससे कई गुना अधिक लोग आत्महत्या कर अपनी जान गंवा रहे हैं। मगर आत्महत्या की घटनाओं को रोकने की कोई सार्थक पहल नहीं हो पाई है। खेती के लिए लिया गया कर्ज़ नहीं चुका पाने के कारण भी बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। मगर सरकारी बैंकों, साहूकारों के कर्ज से परेशान किसान आज भी आत्महत्या कर रहें हैं। उन्हें रोकने की दिशा में भी सरकार ने कोई विशेष पहल नहीं की है। बैंक आज भी किसानों से जबरदस्ती कर्ज वसूली के लिए उनकी जमीने नीलाम कर रहे हैं। इसी के चलते किसान मजबूर होकर आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं।

भारत में आत्महत्या एक प्रमुख समस्या है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में 171,000 आत्महत्याएं की गईं थी जो 2021 की तुलना में 4.2 प्रतिशत अधिक थी । प्रति एक लाख की जनसंख्या पर आत्महत्या की दर 2022 में बढ़कर 12.4 हो गई जो आंकड़ो के हिसाब से सर्वोच्च थी। 2022 के दौरान आत्महत्याओं में 2018 की तुलना में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई और भारत में दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्याएं हुईं। वैश्विक आत्महत्या मौतों में भारत के आंकड़े 1990 में 25.3 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में महिलाओं में 36.6 प्रतिशत और पुरुषों में 18.7 प्रतिशत से बढ़कर 24.3 प्रतिशत हो गये। 2016 में 15-29 वर्ष और 15-39 वर्ष के आयु समूहों में आत्महत्या मृत्यु का सबसे आम कारण था। दैनिक वेतन भोगी लोग आत्महत्या पीड़ितों का 26 प्रतिशत हिस्सा थे। जो आत्महत्या के आंकड़ों में सबसे बड़ा समूह था।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में राज्यों में सबसे अधिक आत्महत्याएं महाराष्ट्र (22,746) में हुईं। इसके बाद तमिलनाडु में 19,834 और मध्य प्रदेश में 15,386 आत्महत्याएं हुईं। चार राज्यों महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल को मिलाकर देश में हुयी कुल आत्महत्याओं में से लगभग आधी उक्त प्रदेशों में हुयी थी। नागालैंड में केवल 41 आत्महत्याएं हुईं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में 2017 से 2019 के दौरान भारत में लगभग आधी आत्महत्याएं हुयी हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में सबसे अधिक आत्महत्याएं हुईं, उसके बाद पुडुचेरी का स्थान रहा। बिहार और पंजाब में 2018 की तुलना में 2019 में आत्महत्याओं के प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुयी थी।

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच सालों में आत्महत्या की घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ता हुआ दिखता है। 2017 में देश में 1,29,887 आत्महत्याओं की मामले रिकॉर्ड किए गए थे। तब आत्महत्या दर 9.9 प्रतिशत थी। आत्महत्या दर प्रति लाख आबादी पर होने वाली आत्महत्या की घटनाओं को दर्शाता है। 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रति लाख 9.9 आत्महत्या की घटनाएं दर्ज की गईं थी। 2018 में आत्महत्या दर में इजाफा हुआ और ये बढ़ कर 10.2 पर पहुंच गयी थ। तब देश में 1,34,516 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए थे। 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने तो 2020 में ये संख्या बढ़कर 1,53,052 हो गई थी। 2021 में आत्महत्या के 1,64,033 मामले हुये थे।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तुलनात्मक आंकड़े बताते हैं कि भारत में आत्महत्या की दर विश्व आत्महत्या दर के मुकाबले बढ़ी है। भारत में पिछले दो दशकों की आत्महत्या दर में एक लाख लोगों पर 2.5 फीसद की वृद्धि हुई है। आज भारत में 37.8 फीसद आत्महत्या करने वाले लोग 30 वर्ष से भी कम उम्र के हैं। दूसरी ओर 44 वर्ष तक के लोगों में आत्महत्या की दर 71 फीसद तक बढ़ी है। 2018 में पारित हुए मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के तहत भारत में आत्महत्या के अपराधीकरण का कानून खत्म करते हुए मानसिक बीमरियों से जूझ रहे लोगों को मुफ्त मदद का प्रावधान किया गया है। इस नए कानून के तहत आत्महत्या का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को मदद पहुंचाना, इलाज करवाना और पुनर्वास देना सरकार की जिम्मेदारी होगी।

भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ से जूझ रहे लोगों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि इस मामले में अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कोई ठोस बयान जारी नहीं किया गया है। लेकिन विश्व के अलग-अलग हिस्सों में हो रहे आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों पर तुरंत संज्ञान लेने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर साल लगभग आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं। जिनमें से 21 फीसदी आत्महत्याएं भारत में होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में सरकारों को सलाह दी गई है कि आत्महत्या का मीडिया ट्रायल नहीं हो। देश में अल्कोहल को लेकर ठोस नीति बनाई जाए। आत्महत्या के संसाधनों पर रोक लगाते हुए आत्महत्या के प्रयास करने वालों की उचित देखभाल की जाए।

आत्महत्या जैसे मामलों को रोकने के लिए समाज के हर एक जिम्मेदार व्यक्ति को सामने आने की जरूरत है। जिससे ज्यादा-से-ज्यादा लोग इस बात से जागरूक हो सकें और आत्महत्या जैसे मामलों में कमी लाई जा सके। सभी को इस बात को समझने की जरूरत है कि आज की इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में तनाव की स्थिति कभी कम तो कभी ज्यादा बनी रहती है। परंतु इसका समाधान अपनी जिन्दगी को समाप्त कर लेना नहीं हैं। जानबूझकर खुद को मारना आत्महत्या या “फेलो डे से” के रूप में जाना जाता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 309 आत्महत्या से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि जो कोई भी आत्महत्या का प्रयास करेगा और इस तरह के अपराध को अंजाम देगा उसे एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास, जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि आत्महत्या के मामलों के अध्ययन के बाद सरकार और गैर-सामाजिक संगठनों को मिल कर एक ठोस पहल करनी होगी। इसके लिए जागरुकता अभियान चलाना होगा। ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने की ठोस रणनीति के बिना देश में बढ़ती आत्महत्यों पर रोक लगाना मुश्किल होगा। सरकार को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले आर्थिक-सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारणों की गहराई से पड़ताल करनी चाहिये। साथ ही ऐसे उपाय करे कि लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने का विचार ही दिमाग में न लाए।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)