परिवार व समाज से अपेक्षित भावनात्मक समर्थन न मिल पाने पर भी अक्सर युवा मादक द्रव्यों की ओर आकर्षित होने लगते हैं

Often youth get attracted towards drugs due to lack of expected emotional support from family and society

विजय गर्ग

नशों का निरंतर बढ़ता प्रचलन देश भर के लिए चिंतनीय मुद्दा बन चुका है। नशा समाप्ति के हरसंभव प्रयासों के बावजूद कुछ राज्यों में समस्या गंभीर रूप धारण करती जा रही है। पंजाब का नाम भी इसी सूची में सम्मिलित है। बार्डर पार पाकिस्तान से ड्रोन के ज़रिए राज्य तक पहुंच बनाने वाली नशा तस्करी ही पंजाब की एकमात्र चुनौती नहीं; मादक द्रव्यों की इस घुसपैठ में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से बड़े पैमाने पर आने वाली साइकोट्रॉपिक ड्रग्स भी शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर आकलन करें तो इन दवाओं का नेटवर्क देश में भी बराबर सक्रिय मिलेगा। एंटी नारकोटिक्स टास्क फ़ोर्स (एएनटीएफ) के एडीजीपी अनुसार, हिमाचल प्रदेश के बद्दी, गुजरात तथा देहरादून से संचालित विस्तृत नेटवर्क पंजाब व निकटवर्ती क्षेत्रों में अपना जाल फैला रहा है, जिसमें बिना लाइसेंस कई दवाइयां बनाने वाले कारख़ानों के साथ कुछ पंजीकृत फार्मा कंपनियों के नाम भी सामने आ रहे हैं। एडीजीपी के तहत, 1 मार्च से अब तक 25.70 लाख नशे की गोलियां व कैप्सूल बरामद हो चुके हैं, 44 के क़रीब दवा कंपनियां एएनटीएफ के रडार पर हैं।

नेशनल ड्रग डिपेंडेंट ट्रीटमेंट की एक रिपोर्ट देखें तो देश की कुल जनसंख्या के 10 से 75 साल तक की आयुवर्ग के लगभग 20 प्रतिशत लोग किसी न किसी प्रकार के नशे के अभ्यस्त हैं। महिलाएं भी इसमें अपवाद नहीं। आजकल कम उम्र के बच्चे भी इसकी चपेट में आने लगे हैं। अनिद्रा, अवसाद, तनाव आदि रोगों के उपचार में प्रयुक्त होने वाली अनेक दवाओं का प्रयोग नशे के रूप में होना गहन चिंता का विषय बन चुका है। ‘ड्रग वॉर डिस्टॉर्शन और वर्डोमीटर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, देश में अवैध दवाओं का धंधा बढ़कर लगभग 30 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है, जबकि नियमानुसार, भारत में ऐसी दवाओं का सेवन अथवा इन्हें चिकित्सक की पर्ची के बग़ैर बेचना दोनों ही कानूनन निषेध हैं।

दरअसल, इस मुद्दे ने भारत में ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस’ अधिनियम 1985 (एनडीपीएस), के बाद प्रमुखता हासिल की। कई भारतीय राज्य उपचारात्मक तथा निवारक उपायों के साथ-साथ नशीली दवाओं के उपयोग एवं दुरुपयोग के दुष्प्रभावों के ख़िलाफ़ जागरूकता फैलाकर इस समस्या का निराकरण करने की कोशिश में लगे हैं। हालांकि, सतही तौर पर देश में इस ख़तरे से निपटने के लिए शायद ही कोई कारग़र नीति संज्ञान में हो! कटु, लेकिन सत्य यही है कि नशीली दवाओं के दुरुपयोग से निपटने हेतु राज्य प्राधिकारियों तथा स्थानीय सरकारों की सीमित भूमिका से भारत में मादक पदार्थों के उपयोग में कमी नहीं आ पाई।

नशों के प्रति बढ़ते रुझान में विविध कारक ज़िम्मेदार रहते हैं, जैसे- तनाव, अकेलापन, असफलता आदि। रिश्तों से जुड़ी समस्यायों, निर्धनता, बेरोज़ग़ारी, शैक्षिक तथा मनोरंजक संसाधनों तक सीमित पहुंच के चलते भी मादक द्रव्यों के सेवन की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि कुछ लोग इनसे बचने अथवा निपटने के लिए नशीली दवाओं का सहारा लेने लगते हैं। नशे में संलिप्त किसी पारिवारिक सदस्य की देखा-देखी, सोशल मीडिया, फ़िल्मों अथवा कुसंगति के प्रभाव में भी नशीली दवाओं का सेवन आम देखा गया।

युवाओं में साइकोट्रॉपिक ड्रग्स का चलन बढ़ने में प्रमुख कारण है, मूल्य में कम होने के साथ इनका सहज ही उपलब्ध हो जाना। हालांकि ये दवाएं बिना डॉक्टर की पर्ची के बेचने-ख़रीदने की सख़्त मनाही है, बावजूद इसके अवैध ढंग से बिकने वाली इन दवाओं का नशे के तौर पर इस्तेमाल आजकल व्यापक स्तर पर होने लगा है।

मेडिकल विशेषज्ञों के अनुसार, इन नशे की दवाओं का अनुचित उपयोग करने से मानसिक अवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। हेरोइन व अन्य किस्म के नशों का सेवन करने वाले व्यक्ति अक्सर इन ड्रग्स के आदी पाए जाते हैं। दवा का इस्तेमाल बेशक दर्दनाक भावनाओं जैसे- चिंता, अवसाद, एकाकीपन आदि से निपटने के नाम पर किया जाता है लेकिन नशे के रूप में बेलगाम आदत, वास्तव में समस्यायों को बद से बदतर बना छोड़ती है।

नशीली दवाएं ग्रहण करने की लत न केवल व्यसनी का शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक स्वास्थ्य बिगाड़ती हैं अपितु पारिवारिक सदस्यों की सामाजिक व आर्थिक क्षमताओं के दृष्टिगत भी प्रतिकूलताएं ही लेकर आती हैं। समूचे समाज तथा सरकार पर अवांछित वित्तीय बोझ बढ़ने लगता है, जिससे शासन-कानून-व्यवस्था एवं स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, सभी प्रभावित होते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 47 में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार और हानिकारक पदार्थों के निषेध का आह्वान किया गया है।

हानिकारक दवाओं का ख़तरा सामाजिक-सांस्कृतिक तथा राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था में गहरी जड़ें जमाए बैठी विकृतियों की अभिव्यक्ति है, अत: इसका समाधान प्रणालीगत, बहुआयामी होना चाहिए। समस्या का निपटान प्रभावशाली ढंग से हो सके, इसके लिए भारत को मज़बूत विनियमन, उन्नत कानून तथा राज्यों के मध्य बेहतर समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही रोकथाम, पुनर्वास तथा सख्त प्रवर्तन पर केंद्रित एक व्यापक राष्ट्रीय नीति भी बाक़ायदा तैयार करनी होगी। परिवार व समाज से अपेक्षित भावनात्मक समर्थन न मिल पाने पर भी अक्सर युवा मादक द्रव्यों की ओर आकर्षित होने लगते हैं। मैत्रीपूर्ण वातावरण विकसित किया जाए तो यह दुष्वृत्ति काफी हद तक घट सकती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब