जैनरिक दवाओं पर मैडिकल माफियाओं की गिद्ध दृष्टि

The medical mafia has a vulture's eye on generic medicines

विनोद तकिया वाला

माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने एक मई 2025 को मौखिक रूप से टिप्पणी की है कि यदि डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखने के लिए विधिक रूप से बाध्य किया जाए,तो फार्मा कंपनियों द्वारा महंगी ब्रांडेड दवाओं के प्रचार हेतु डॉक्टरों को दी जाने वाली कथित घूस की समस्या काफी हद तक समाप्त हो सकती है विनोद कुमार सिंह,स्वतंत्र पत्रकार व स्तम्भकार प्रधानमंत्री की जनऔषधि केन्द्र के माध्यम से आम जनता तक सस्ती व अच्छी दवा उपलब्ध कराने का लक्ष्य है,लैकिन यथार्थ की घरातल पर इस योजना का नजारा कुछ और ही है।आपको बता दे कि भारत में जेनेरिक दवा बेचने के 9500 से भी अधिक जनऔषधि केन्द्र हैं।इन अधिकत्तर केन्द्रों में नागरिकों को जेनेरिक दवा नहीं मिल रही है।अगर कहीं जेनेरिक दवा उपलब्ध है भी तो डॉक्टरों तथा निजी दवा कंपनियों का गठजोड़ उन जेनेरिक दवा का प्रयोग के रास्ते में बड़ा बाधक बन रहा है।60 श्रेणी की 60,000 किस्म की दवाइयां उन औषधि केन्द्रों के लिए बनाई जाती है,फिर भी ब्रांडेड औषधि के मुकाबले जेनेरिक औषधियों का उत्पादन हिस्सा मात्र डेढ़ प्रतिशत ही है।जो इस बात का पुष्टि करता है कि आज भी ब्रांडेड फार्मा कंपनियों का ही बाजार में बोलबाला है।सर्व विदित रहें फार्मा कम्पनी दवा के नाम पेटेंट करा कर ऊँची कीमत पर बेचती हैं,जबकि जेनेरिक दवा 40 से 90 प्रतिशत तक कम मूल्य पर उपलब्ध हैं।उदाहरण के तौर पर क्रॉसिन व डोलो का शुद्ध साल्ट पेरासिटामोल है,किन्तु पेटेंट नाम होने से साल्ट कई गुणा ऊंची कीमत पर बिकता है।स्वास्थ्य मंत्रालय ने चिकित्सकों को जेनेरिक औषधियां मरीज के पर्चे पर लिखने की सलाह दी तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आई एम ए)ने आसमान सिर पर उठा लिया।पूरे देश में जेनेरिक औषधियों के विरुद्ध एक अभियान चलाया गया।मरीजों और उनके रिस्तेदारों को यह बताया गया कि जेनेरिक दवायें बकवास हैं,30 प्रतिशत भी असरदार नहीं।खासकर कैंसर व हार्ट रोग की जेनेरिक दवाइयां तो बिल्कुल बेअसर है।भारत सरकार की जेनेरिक दवा योजना को डॉक्टरों व दवा कंपनियों के साथ गठजोड़ कर रखा है।इसी कारण तमाम डाक्टरों ने मिलकर भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाह को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है।आश्चर्य है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर्स भी पर्ची पर ब्रांडेड दवाइयों के नाम लिखते हैं जबकि उन्हे स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जेनेरिक औषधि को प्रिस्क्राइब करने के आदेश हैं।कई नीजी अस्पताल मे सरकारी डॉक्टर अपना प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं,जिन्होंने अपने निजी क्लीनिक पर स्वयं मेडिकल स्टोर खोल रखा है या खुलवा रखा है,वहां जेनेरिक औषधि नहीं,केवल ब्रांडेड दवायें ही मिलती है।अधिकांश जन औषधि केन्द्रों पर दवाओं की उपलब्धता नहीं होती।80 प्रतिशत ऐसा ही होता है।जिला अस्पताल के सामने एक मेडिकल स्टोर पर भी जन औषधि केन्द्र का बोर्ड लटका है।

वहां भी जेनेरिक दवाइयां कम ही उपलब्ध हैं।देश के किसी भी कोने में जाएं जेनेरिक दवा की योजनान को धंधेबाज पूरी तरह से हजम कर चुके हैं।नीजी अस्पतालों,क्लिनिकों तथा नर्सिंग होम का और भी बुरा हाल है।कुछ डॉक्टर्स ऐसे भी हैं जिनकी लिखी दवा उनके ही मेडिकल शॉप में मिलेगी या फिर किसी खास दवाई दुकान में।अगर कोई मरीज जेनरिक दवा खरीद कर पैसा बचाना भी चाहे तो वो ऐसा नहीं कर सकता।कई मेडिकल स्टोर में इन दवाइयों पर छूट दी जाती है लेकिन यहां पर कुछ डॉक्टर के प्रिस्क्राइब दवा नहीं मिलने में परेशानी होती है।इस संदर्भ मे *माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने एक मई 2025 को मौखिक रूप से टिप्पणी की है कि यदि डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखने के लिए विधिक रूप से बाध्य किया जाए,तो फार्मा कंपनियों द्वारा महंगी ब्रांडेड दवाओं के प्रचार हेतु डॉक्टरों को दी जाने वाली कथित घूस की समस्या काफी हद तक समाप्त हो सकती है * * न्यायमूर्ति विक्रम नाथ,न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ इस विषय पर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी,जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि दवा कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने और महंगी व अनावश्यक दवाओं को लिखवाने के लिए डॉक्टरों को घूस देती हैं।*

सुप्रीम कोर्ट ने दवा कंपनियों से जुडी याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की है।इस याचिका में दवा कंपनियों पर मनमानी का आरोप लगाया गया था।सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने कहा कि “राजस्थान में अब एक कार्यपालक आदेश है कि प्रत्येक डॉक्टर को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखनी चाहिए।सुप्रीम कोर्ट के इस मौखिक निर्देश का भी डाक्टरों तथा प्राइवेट कंपनियों ने मजाक बना कर रखा है।मेडिकल माफिया का खुला चालेंजहै कि वह भारत में जेनेरिक दवा नहीं बिकने देंगे।कुल मिलाकर प्रधान मंत्री की महत्वाकांक्षी जेनेरिक दवाओं की योजना पर मेडिकल माफिया की गिद्ध दृष्टि हैं।