
निर्मल रानी
भारत सरकार के परिवहन सम्बन्धी सभी मंत्रालय अपने अपने क्षेत्रों में उठाये गये क़दमों को “परिवहन क्रांति” के रूप में प्रचारित करते हैं। सड़क, रेल, जलमार्ग, और हवाई यातायात आदि का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमें सरकार अपनी पीठ थपथपाने से बाज़ आती हो। कभी रेल नेटवर्क के आधुनिकीकरण की बातें होती हैं तो कभी जलमार्ग और हवाई यातायात नेटवर्क को बढ़ाने के लिए नई नीतियां बनाये जाने की ख़बरें प्रकाश में आती हैं। हवाई क्षेत्र में भारत को दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते विमानन बाज़ारों में से एक माना जा रहा है। वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के मक़सद से सरकार द्वारा राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति के अंतर्गत लॉजिस्टिक्स लागत को 16% से घटाकर 2025 तक 9% करने का लक्ष्य भी रखा गया है। सरकार द्वारा इन उपलब्धियों को पी आई बी इण्डिया में “इंफ्रास्ट्रक्चर क्रांति” के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। तो क्या सरकार ऐसे ‘प्रचार’ की आड़ में वास्तविक चुनौतियों को छुपाने व जनसाधारण से जुड़ी अनेक समस्याओं व सुरक्षा चुनौतियों पर पर्दा डालने का काम करती है ?
यदि हम सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या की ही बात करें तो यह औसतन लगभग 1.5 लाख प्रतिवर्ष है । जहाँ तक निर्माण की गुणवत्ता का प्रश्न है तो यह किसी से छुपा नहीं है। घटिया व कमज़ोर सड़क निर्माण को लेकर तो पूरे विश्व में गोया भारत का ‘डंका’बजता है। सड़कों पर गड्ढे,उद्घाटन से पहले या उद्घाटन के कुछ ही समय बाद देश में कहीं सड़क टूट रही है तो कहीं बड़े बड़े पुल धराशायी हो जाते हैं। जबकि परियोजनाओं में देरी और लागत बढ़ने की शिकायतें भी सामने आती रहती हैं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच अभी भी ज़रूरत के अनुसार नहीं है। सरकार निश्चित रूप से परिवहन क्षेत्र में प्रगति की बात करती है और इसे अपनी उपलब्धि के रूप में विज्ञापनों व मंत्रियों अथवा पार्टी नेताओं के आलेखों के माध्यम से पेश करती है, लेकिन यह “पीठ थपथपाना” पूरी तरह से संतुलित नहीं हो सकता। प्रगति तो हुई है, पर कई क्षेत्रों में अभी भी काफ़ी सुधार की आवश्यकता है ख़ास तौर पर सड़क यात्रियों की सुरक्षा को लेकर। सड़कों पर खुले आम घूमते आवारा पशु और गड्ढेदार सड़कें मौत को दावत देती हैं। बेशक सरकार की नीतियां और निवेश के चलते परिवहन क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है, लेकिन भ्रष्टाचार से डूबा निर्माण और इसी के परिणाम स्वरूप सड़क परिवहन में असुरक्षा जैसी चुनौती भी बनी हुई हैं।
केवल सड़क मार्ग ही नहीं बल्कि रेल मार्ग परिवहन व्यवस्था में भी यात्रियों की सुरक्षा की कोई गारंटी दिखाई नहीं देती। अभी कुछ दिन पहले ही 9 जून 2025 को मुंबई के ठाणे में मुंब्रा और दीवा रेलवे स्टेशनों के बीच एक लोकल ट्रेन में अत्यधिक भीड़ होने के कारण कई यात्री ट्रेन के दरवाज़ों पर लटक कर यात्रा कर रहे थे। वैसे भी लोकल ट्रेन यात्रा का यह आम दृश्य है। इस दौरान, कुछ यात्रियों के पीठ पर लटके बैग दूसरी दिशा से आ रही एक अन्य ट्रेन से टकराए, जिसके कारण कई यात्री ट्रेन से गिर गए। इस हादसे में 5 यात्रियों की मौक़े पर ही मृत्यु हो गई जबकि 4 अन्य यात्री गंभीर रूप से घायल हुए। ख़बरों के अनुसार रेलवे बोर्ड ने इस हादसे के बाद मुंबई की सभी लोकल ट्रेनों में ऑटोमैटिक डोर क्लोज़र सिस्टम लगाने का फ़ैसला किया ताकि भविष्य में यात्रियों का दरवाजों पर लटकना रोका जा सके। सवाल यह है कि क्या हादसों के बाद ही सरकार को ऐसे सुरक्षा उपाय करने की चेतना जागृत होती है ? इसी तरह 22 जनवरी 2025 को महाराष्ट्र के जलगांव ज़िले में परधाडे गाँव के पास माहेजी रेलवे स्टेशन पर लखनऊ से मुंबई जा रही पुष्पक एक्सप्रेस में ट्रेन में आग लगने की अफ़वाह के कारण एक दुखद हादसा हुआ। यह अफ़वाह इतनी तेज़ी से फैली कि यात्रियों में दहशत मच गई, और कई यात्री चलती ट्रेन से कूद गए।
र्भाग्यवश, उसी समय साथ के दूसरे ट्रैक से कर्नाटक एक्सप्रेस तेज़ गति से गुज़र रही थी, जिसने पटरियों पर कूदे हुए यात्रियों को कुचल दिया। इस हादसे में 14 यात्रियों के मरने की ख़बर आई थी। इसी तरह 2023 में ओडिशा के बालासोर में हुए हादसे में 290 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। आये दिन होने वाले ऐसे अनेक ट्रेन हादसे रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं।
यह तो रही थलीय परिवहन की बातें। इसी तरह नभ परिवहन अर्थात हवाई यातायात के क्षेत्र में भी यात्रियों की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंताजनक स्थिति के दृश्य पिछले दिनों देखने को मिले। सबसे दर्दनाक हादसा 12 जून 2025 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ। यहाँ एयर इंडिया की फ़्लाइट AI-171 का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान जो अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लंदन के गैटविक हवाई अड्डे के लिए उड़ान भर रहा था, टेकऑफ़ के कुछ ही सेकेंडों बाद क्रैश हो गया। इसे भारतीय विमानन इतिहास के सबसे भयावह हादसों में से एक माना जा रहा है। इस में 230 यात्री और 12 चालक दल के सदस्यों सहित कुल 242 लोग सवार थे। जिनमें एक यात्री के अतिरिक्त शेष सभी की मौत हो गई। चूँकि यह विमान हवाई अड्डे के साथ लगते बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल पर जा गिरा इस वजह से कॉलेज की इमारत का भी काफ़ी बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। यहाँ भी कम से कम 5 एमबीबीएस छात्र, एक पीजी रेजिडेंट डॉक्टर, और एक सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर की पत्नी की मृत्यु हुई। इसके अलावा 60 से अधिक मेडिकल छात्र घायल भी हुए।
अभी यह ख़बर चर्चा में ही थी कि 15 जून 2025 को उत्तराखंड के केदारनाथ धाम के पास गौरीकुंड क्षेत्र में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना भी हो गयी। इसमें पायलट सहित सात लोगों की मृत्यु हो गई। आर्यन एविएशन कंपनी का यह हेलीकॉप्टर केदारनाथ मंदिर से श्रद्धालुओं को लेकर गुप्तकाशी बेस की तरफ़ वापस आ रहा था। प्रारंभिक जांच में ख़राब मौसम और कम दृश्यता को हादसे का प्रमुख कारण माना जा रहा है। यह एक 7-सीटर बेल (Bell-VT-QXF) हेलीकॉप्टर था जिसे अहमदाबाद,गुजरात की एरोटांस सर्विस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी संचालित कर रही थी। इस हेलीकॉप्टर दुर्घटना ने श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों में भय पैदा किया है, और हेलीकॉप्टर सेवाओं पर लोगों का भरोसा कम हुआ है। कहने को तो हवाई यातायात सबसे सुरक्षित परिवहन सेवाओं में माने जाते हैं परन्तु हाल के दिनों में हुये हादसे इन धारणाओं पर सवाल खड़ा करते हैं। लिहाज़ा कहना ग़लत नहीं होगा कि सरकार द्वारा लाख परिवहन क्रांति के दावे क्यों न किये जा रहे हों परन्तु हक़ीक़त तो यही है कि आज न तो थल परिवहन सुरक्षित है न ही नभ परिवहन।