सेहत का बॉन्ड समाज सेवा के बीच एक सेतु का काम करेगा

Sehat Ka Bond will act as a bridge between social service

विजय गर्ग

यह तथ्य किसी से छिपा नहीं कि पंजाब के सरकारी अस्पताल मरीजों के बढ़ते बोझ से चरमरा रहे हैं। समाज के गरीब व निम्न मध्यमवर्गीय मरीजों के उपचार की अंतिम शरण स्थली ही होते हैं सरकारी अस्पताल। विडंबना यह है कि सरकारी अस्पताल खुद ही डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। आंकड़ों की बात करें तो सरकारी अस्पतालों के लिये स्वीकृत पदों में आधे पद फिलहाल खाली है। नई पीढ़ी के डॉक्टर मरीजों के दबाव व आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के चलते सरकारी अस्पतालों को कार्यस्थली बनाने से गुरेज करते रहे हैं। निस्संदेह, निजी क्षेत्र में मोटी तनख्वाह व सुविधाएं उन्हें आकर्षित करती हैं। इधर विदेशों का मोह भी उन्हें खूब लुभाता है। यही वजह है कि ग्रामीण ही नहीं, शहरी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है। विशेषज्ञ चिकित्सकों की तो ज्यादा ही कमी है। इस समस्या से निबटने के लिये पंजाब सरकार इस सत्र से एमबीबीएस और बीडीएस के छात्रों के लिए बॉन्ड नीति लेकर आई है। निश्चय ही सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में डॉक्टरों की पुरानी कमी से निपटने के लिये एक ऐसा साहसिक कदम उठाना बेहद जरूरी था। नये नियमों के तहत, राज्य सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेजों से स्नातक करने वाले डॉक्टरों को दो साल के लिये अनिवार्य रूप से सरकारी स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में सेवा करनी होगी। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो बीस लाख रुपये की बॉन्ड राशि का भुगतान करना होगा। वहीं अखिल भारतीय कोटे के तहत स्नातकों को अनिवार्य रूप से एक साल की सेवा सरकारी स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में देनी होगी। हालांकि, यह नीति बाध्यकारी है, लेकिन यह सुनिश्चित करने का एक जिम्मेदार प्रयास है कि राज्य चिकित्सा शिक्षा में निवेश का कुछ लाभ राज्य के लोगों को भी मिलना चाहिए। यह तार्किक बात है कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों को राज्य सरकार भारी सब्सिडी भी देती है।

दूसरे शब्दों में कहें तो राज्य के मेडिकल कॉलेजों की सीटों के लिये करदाताओं द्वारा एक अंशदान दिया जाता है। यह उचित होगा कि छात्र स्नातक होने के बाद समाज में कुछ योगदान जरूर दें। यह इसलिये भी जरूरी है कि राज्य के सरकारों अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति बहुत अधिक विकट है क्योंकि आमतौर डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने से कतराते हैं। बताया जाता है कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में स्वीकृत डॉक्टरों के 3,847 पदों में पचास फीसदी पद रिक्त हैं। सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सकों के न होने का खमियाजा मरीजों को चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के रूप में भुगतना पड़ता है। उन्हें मजबूरी में निजी अस्पतालों के महंगे उपचार लेने के लिये बाध्य होना पड़ता है। वर्षों से यह ट्रेंड चला आ रहा है कि डॉक्टर निजी प्रैक्टिस या विदेशों में बेहतर अवसरों की तलाश में सार्वजनिक चिकित्सा सेवा से किनारा करते रहे हैं। जिसके चलते शहरी-ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के बीच में एक बड़ा अंतर पैदा हो गया है। निश्चित रूप से बॉन्ड नीति इस असंतुलन को दूर करने की दिशा में प्रयास करेगी। इसके साथ ही कतिपय छात्र समूहों का बॉन्ड नीति का विरोध भी समझ में आता है। लेकिन बॉन्ड नीति को खत्म करने की बजाय उनकी चिंता बेहतर कामकाजी परिस्थितियां बनाए जाने के लिये हो। साथ ही कैरियर प्रगति के बेहतर अवसरों के मुद्दों को भी संबोधित किए जाने की जरूरत है। निस्संदेह, एक साल या दो साल का अनिवार्य कार्यकाल एक उचित मांग है, खासकर जब यह कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूती दे सके। वैसे पंजाब सरकार की बॉन्ड नीति कोई नई बात नहीं है। पहले ही कई केंद्रीय संस्थानों और अन्य राज्यों में इसी तरह के मॉडल काम कर रहे हैं। पंजाब को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस नीति का प्रभावी क्रियान्वयन हो। समय पर नियुक्तियां हों और युवा स्नातकों को पर्याप्त प्रोत्साहन मिले। निस्संदेह, स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिये और अधिक देरी नहीं की जा सकती। निस्संदेह, यह बॉन्ड रूपी बंधन शिक्षा और समाज सेवा के बीच एक सेतु का काम करेगा। भगवान का दूसरा रूप कहे जाने वाली चिकित्सा बिरादरी को भी इस भरोसे को कायम रखना होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब