पचासवीं बरसी : आपातकाल की नायक : अभाविप

50th anniversary: ​​Hero of emergency: ABVP

संजय दीक्षित

पचास वर्ष पूरे हो गए, लेकिन भारत की जनता अभी भी आपातकाल की काली रातों को भूली नहीं है I प्रत्येक
वर्ष जून माह में आपातकाल की यादें ताजा हो जाती है I पचास वर्ष पहले स्वतन्त्र भारत की जनता ने यह
जाना था कि संविधान एवं कानून को दरकिनार करके लोकतंत्र में सत्ता का अपहरण कैसे किया जाता है ? मात्र
सत्ता खोने के डर से संविधान एवं कानून की बलि देने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति
फखरूद्दीन अली अहमद पर दबाव बनाकर आपातकाल के प्रस्ताव पर रात में हस्ताक्षर कराए I इसके बाद
मंत्रिमंडल को बंधक बनाकर आपातकाल के प्रस्ताव को पारित करा लिया I यह सब 25-26 जून 1975 की रात
में उस समय हुआ, जब देश की जनता सो रही थी I 26 जून की सुबह आम जनता को पता चला कि सत्ता के
लिए, सत्ता को बंधक बनाकर, सत्ता का दुरूपयोग किस प्रकार किया जाता है I

26 जून 1975 को पूरा देश में भयाक्रांत करने वाले वातावरण विद्यमान था I पुलिस और अर्धसैनिक बलों की
पदचाप से सारा वातावरण सहम रहा था I मध्यरात्रि में ही प्रमुख विपक्षी नेता, लोक संघर्ष समिति के सभी
सदस्य, छात्र संघर्ष समिति के नेता, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रमुख
कार्यकर्त्ता, आलोचक, पत्रकार-संपादक एवं कांग्रेस पार्टी में ही इंदिरा गांधी की कार्यशैली से मतभेद रखने वाले
नेता, सभी को गिरफ्तार कर लिया गया I नागरिकों की स्वतंत्रता को तानाशाही ने बंधक बनाने के साथ ही
समाचार पत्रों को प्रेस सेंसरशिप के दायरे में लाकर संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए I
पूरा देश कारागार में बदल गया I देश के सभी राज्यों में धारा-144 लागू कर दी गई I कोई भी समाचार पत्र
प्रकाशित नहीं हुआ, अनेक समाचार पत्रों की बिजली काट दी गई और जो समाचार पत्र छप चुके थे, उन्हें जब्त
कर लिया गया I पुलिस को असीमित, पर गैरकानूनी अधिकार मिल गए, तो वह किसी को भी उनके घर,
कार्यालय, छात्रावास और कालेज से गिरफ्तार करके ले जा रही थी I राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित छब्बीस
संगठनों को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया I

इन विषम परिस्थितियों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के कार्यकर्ताओं ने आपातकाल का
विरोध करने के साथ ही जेल में बंद किए जा रहे लोगों के परिवार के बीच अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया I
अभाविप पर कठोर प्रतिबन्ध नहीं लगाए गए थे, लेकिन एक छात्र संगठन के रूप अभाविप उतनी स्वतंत्र भी
नहीं थी, जैसी स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी संगठन को प्राप्त होती है। 26 जून की सुबह
अभाविप कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्कालीन अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय छात्र संघर्ष
समिति के संयोजक स्वर्गीय अरुण जेटली के नेतृत्व में आपातकाल की घोषणा के विरुद्ध पहली आवाज उठी I
उपकुलपति कार्यालय के सामने छात्रों के एक समूह को सम्बोधित करते समय जेटली को मीसा कानून के
अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया I तत्कालीन समय में मीसा अर्थात आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम, वह
कानून था, जिसे 1971 में संसद द्वारा पारित कराकर इंदिरा गांधी ने देश में लागू किया था I इस विवादास्पद
मीसा कानून के अंतर्गत कानून-व्यवस्था बनाए रखने वाली एजेंसियों को असीमित अधिकार दिए गए थे और
आपातकाल के दौरान (1975-1977) कई संशोधन करके इस कानून का प्रयोग राजनीतिक विरोधियों को प्रताड़ित
करने के लिए किया गया I

अपने विरोधियों को प्रताड़ित करने के साथ ही इंदिरा सरकार की वक्रदृष्टि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर थी,
जिसकी संगठन शक्ति से इंदिरा सरकार बुरी तरह डरी हुई थी I संघ के विरुद्ध दुष्प्रचार करने में इंदिरा सरकार
ने कोई कसर बाकी नहीं रखी I 14 जुलाई 1975 को संघ सहित पच्चीस संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाने के साथ
ही तत्कालीन संघ प्रमुख बालासाहब देवरस को बंदी बना लिया गया I इसके बाद पुलिस देश के सभी राज्यों में
संघ कार्यालयों को सील करने की कार्रवाई करने के साथ ही संघ कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तार करने में जुट गई I
ऐसी विषम एवं असंवैधानिक स्थितियों के बीच इंदिरा सरकार की तानाशाही के विरुद्ध अभाविप ने विरोध की
आवाज को उठाया I विरोध के लिए अभाविप ने पूरे देश में विभिन्न प्रयोगात्मक तरीके अपनाए, जिनमें से एक
प्रयोग यह भी था कि महात्मा गांधी के चित्र एवं उनके ही वाक्य-असत्य, अन्याय एवं दमन के झुकना कायरता
है- जैसे नारों वाले स्टीकर एवं पोस्टर को प्रकाशित एवं प्रसारित करना I अभाविप कार्यकर्ता जहां-जहां इन
पोस्टरों को बांटते, चिपकाते-उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लेती थी, लेकिन कार्यकर्ताओं को निर्दोष घोषित करके
न्यायालय उन्हें रिहा करती रही I

सत्ता के लिए इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल के रूप में देश पर थोपी गई क्रूर तानाशाही के विरुद्ध देशव्यापी
जनांदोलन में अभाविप की व्यापक भूमिका और छात्रों की सहभागिता बढ़ाने के दायित्व का विचार करने के
लिए एक भूमिगत अखिल भारतीय बैठक अहमदाबाद में संपन्न हुई I बैठक में अभाविप की गतिविधियों को
खुले एवं भूमिगत दोनों ही रूपों में संचालित करने का निर्णय लिया गया I 14 नवम्बर 1975 से लोक संघर्ष
समिति द्वारा देशव्यापी सत्याग्रह प्रारम्भ करने की घोषणा की गई I लोक संघर्ष समिति के सदस्य के रूप में
देश के अंदर अभाविप कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह में कठिन मोर्चा पर अग्रिम पंक्ति में रहकर संघर्ष किया I

आपातकाल के दौरान देश में अभाविप के 4,500 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया और 650 कार्यकर्ताओं
की गिरफ़्तारी मीसा जैसे काले कानून के अंतर्गत की गई I अभाविप के 1,500 कार्यकर्ता भारत रक्षा नियम
(डीआईआर कानून) के तहत जेल में बंद रहे और लगभग ग्यारह हजार छात्रों ने सत्याग्रह में सक्रिय रूप से
हिस्सा लिया I बड़ी संख्या में अभाविप कार्यकर्ताओं ने बड़ी सतर्कता, धैर्य एवं अत्यंत साहसपूर्ण कार्यों एवं
गतिविधियों में हिस्सा लेकर अपना विरोध प्रकट किया I आपातकाल के दौरान केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश,
कर्नाटक, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश,
पंजाब, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों के साथ ही दिल्ली में अभाविप कार्यकर्ताओं का संघर्ष दिन-
रात जारी रहा I विभिन्न राज्यों में अभाविप कार्यकर्ताओं के विरोध से जुड़े घटनाक्रमों की विस्तार से जानकारी
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ऐतिहासिक जीवन-गाथा पर केंद्रित “पुस्तक ध्येय यात्रा (खंड-एक) के
माध्यम से हासिल की जा सकती है I

देश को 21 माह तक बंधक बनाकर इंदिरा गांधी ने आपातकाल में जितने भी अत्याचार करने थे, वह सब किए
I आपातकाल में हुए अत्याचारों को लोकतंत्र पर एक काले धब्बे के रूप में देखा जा सकता है I इसके बावजूद
लोकतंत्र की शक्ति ने 21 मार्च 1977 को आपातकालरुपी राक्षस का वध कर दिया I आपातकाल की समाप्ति से
पूरा देश एक नए सूरज की किरण से जगमगा उठा I आपातकाल से लड़ने और उसे समाप्त करने में राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ और अभाविप की भूमिका अद्भुत एवं अतुलनीय रही I संघर्ष में सुव्यवस्थित एवं शक्तिशाली
संगठन शक्ति के मनोबल ने अपना काम किया I आपातकाल के दौरान अभाविप की इकाइयां देशभर में तेजी से
फैली I

आपातकाल के दौरान अभाविप ने अपनी कार्यशैली, विचार एवं प्राथमिकताओं को स्पष्ट करके जनवरी-1976 में
“त्रिसूत्र- लोक शिक्षा, लोक सेवा एवं लोक संघर्ष” की घोषणा की थी और यही त्रिसूत्र आपातकाल विरोधी संघर्ष में

संलग्न समूची छात्र शक्ति का मंत्र बन गया I तत्कालीन परिस्थिति अर्थात तानाशाही द्वारा लोकतंत्र के
निर्लज्ज हनन के विरुद्ध जन-सामान्य, विशेष रूप से छात्र-युवा शक्ति को शिक्षित करना, स्थिति की गंभीरता
एवं उससे उत्पन्न चुनौतियों से परिचित कराना ही “लोकशिक्षा” कहलाया I इसी प्रकार “लोक सेवा” का अर्थ सेवा
एवं विविध रचनात्मक कार्यों द्वारा समाज से जीवंत संपर्क सम्बन्ध विकसित करना और छात्रों को सामाजिक
सरोकार से जोड़ना रहा I आपातकाल की घोषणा करके लोकतंत्र एवं संविधान को बंधक बनाने वाली इंदिरा
सरकार के विरुद्ध प्रबल जन-आंदोलन को संगठित करना और विरोध के लिए लोकतान्त्रिक ढंग से हर संभव
प्रयास करना “लोक संघर्ष” था I इस प्रकार विचार करें तो आपातकाल में अभाविप ने अपनी भूमिका का पूर्ण
रूप से निर्वहन किया I

आपातकाल के पचास वर्ष पूरे हो चुके है I पचास वर्ष बाद देश में लोकतंत्र के मंदिर के रूप में निर्मित स्वदेशी
संसद भवन के ठीक पीछे मौजूद पुराना संसद भवन पूर्ण रूप से नष्ट होने तक इस बात का मूक एवं साक्षी
गवाह रहेगा कि किस प्रकार सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र एवं संविधान को
बंधक बनाकर देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया था I