दिल्ली की दिल्ली सरकार के लिए आने वाले दिन इम्तहान के

The coming days are testing for the Delhi government.

मनोज कुमार मिश्र

कायदे में किसी सरकार के कामकाज का आंकलन केवल चार महीने के कार्यकाल से नहीं किया जा सकता है। समस्या यह है कि दिल्ली में लगातार लोकसभा की सभी सीटें जितने और दिल्ली नगर निगम में भी शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव 1993 के बाद पहली बार केवल दो फीसदी मतों के अंतर से फरवरी,2025 में चुनाव जीत पाई। सीटें उसे 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 47 मिली लेकिन चुनौती भी काफी मिली। माना जा रहा है कि भाजपा ने इस बार कांटे के चुनाव में जिस आम आदमी पार्टी(आप) को पराजित किया, उसकी सारी ताकत ही फ्री की घोषणाएं और चौबीस घंटे चुनाव मोड में रहना था। उसके सर्वेसर्वा यानि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गलत दावे भी इस तरह से करते थे कि आम जनता की एक बड़ा वर्ग उसे ही सही मान लेता था। भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प(घोषणा पत्र) में उन सभी फ्री वायदों को कायम रखते हुए नए वायदे किए। भाजपा की चुनौती कई तरह की है। उसे इन घोषणाओं को पूरा करने के अलावा यमुना सफाई, दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने, सभी निवासियों को साफ पानी उपलब्ध कराने से लेकर दिल्ली की मूलभूत ढांचे को बेहतर बनाकर दिल्ली में विकास की प्रयाय बन गई शीला दीक्षित की लाइन छोटा करने की बड़ी चुनौती है। पहली बार विधायक बनी रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने एक साथ कई दांव खेले हैं। इस सरकार ने घूम-धाम से अपनी सरकार के सौ दिन पूरे होने का जश्न मनाया। बावजूद इसके दिल्ली की भाजपा सरकार केजरीवाल की सरकार की तरह अभी भी चुनावी मोड से बाहर निकलने को तैयार नहीं दिख रही है।

दिल्ली की भाजपा सरकार ने सरकार के सौ दिन पूरे होने पर प्रेस कांफ्रेंस और आयोजन में सरकार ने अपना वर्कबुक(रिपोर्ट कार्ड) जारी किया गया। दावा किया गया कि रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दिल्ली के सुनहरे भविष्य की नींव रखी है। विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल की नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी का आऱोप लगाया कि भाजपा सरकार ने अपना एक भी चुनावी वायदा नहीं पूरा किया। महिलाओं को पेंशन देने से लेकर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर करना अभी तक पूरा नहीं हुआ। सौ दिन में ही दिल्ली सरकार पटरी से उतर गई। विपक्ष के आऱोप भले ही राजनीतिक हों लेकिन वास्तव में इस सरकार ने 25 मार्च को एक लाख करोड़ का बजट ला कर जो वातावरण बनाया था, वह धरातल पर अभी उतरता नहीं दिख रहा है। केन्द्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है ही, दिल्ली में भाजपा सरकार बनते ही दिल्ली नगर निगम में भी भाजपा का मेयर बन गया। अब तो निगम के 16 निगम पार्षद(जो कांग्रेस से आप में जाकर पार्षद बने थे) आम आदमी पार्टी(आप) से अलग होकर अलग दल ही बना लिए। इक्का-दुक्का पार्षद तो साल भर से ही आप से अलग होकर भाजपा के साथ आते रहे हैं। अब निगम में भाजपा के राजा इकबाल सिंह मेयर होने का अलावा सत्या शर्मा स्थाई समिति की अध्यक्ष हैं। यानि दिल्ली में हर स्तर पर शासन में भाजपा के होने के बावजूद सरकार की पहचान दिल्ली में न दिखाई देना लोगों को अखरने लगा है। जिस आप पर भाजपा हर समय चुनावी मोड में होने का आऱोप लगाती रही है, वही आरोप उस पर आप और हाशिए पर चली गई कांग्रेस लगा रही है।

यह सही है कि अपने वायदे के मुताबिक दिल्ली की नई सरकार की पहली मंत्रिमंडल की बैठक में दिल्ली में भी आयुष्मान योजना लागू करने का फैसला लिया गया। बताया गया कि अब तक तीन लाख दस हजार पात्र लोगों का इस योजना में पंजीकरण कर दिया गया है। महिलाओं को पेंशन देना यानि महिला समृधि योजना के लिए 5100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, पात्र लोगों को चिह्नित करने का काम शुरू हो गया है। सड़कों के मरम्मत के लिए बजट आवंटित कर दिए गए हैं। दावा किया जा रहा है कि मानसून से पहले 250 किलो मीटर सड़क के मरम्मत का काम पूरा हो जाएगा। दिल्ली को वायु प्रदूषण से मुक्त करने के लिए वायु प्रदूषण शमन योजना बनाई गई है। सरकार का फोकस दिल्ली की साफ सफाई पर है लेकिन नालों को साफ करके कचरा किनारे रखने से तो संकट बढ़ेगा। बरसात होते ही फिर से कचरा नालों में जाएगा और फिर से सड़कों पर पानी जमा होगा। हर बरसात में दिल्ली का बदनाम शो पीस बना मिंटो रोड अब दोनों तरफ की सड़कों से काफी नीचे हो गया है। उस पर जल जमाव न होने का एक ही उपाय है कि उस पर फ्लाई ओवर बने। यह सालों से कहा जा रहा है लेकिन तय कब होगा, किसी को पता नहीं है। सही हालात तो यह है कि अभी बजट पास होने और उसके आवंटन के बाद समय कम मिला है। इसलिए कहा यही जा रहा है कि अभी मुख्यमंत्री या मंत्री दावे करने के बजाए बुनियादी कामों पर ज्यादा ध्यान दें।

आम आदमी पार्टी(आप) के हारने के कई कारणों में एक काम यह माना जाता है कि उसकी सरकार ने दिल्ली की मूल ढांचे की बेहतरी के लिए ठोस काम नहीं किए। लेकिन उसके कुछ अच्छे कामों में से एक काम निजी स्कूलों के फीस पर नियंत्रण रखना था। आप सरकार जाते ही निजी स्कूलों ने बेहिसाब फीस बढ़ा दिए। भाजपा सरकार को इसके विरोध में सड़कों पर उतरे लोगों को शांत करने के लिए मजबूरन कठोर कदम उठाने पड़े। सरकार फीस रेगुलेटरी बिल लेकर आई। तब जाकर कुछ माहौल बदला। यह सरकार को सोचना भी होगा कि सरकार बनते ही ऐसा क्यों हुआ और आगे किसी और मामले में ऐसा न हो। कुछ काम निश्चित रूप से दिल्ली की ठोस बुनियाद के लिए शुरू हुए हैं। सीएम श्री योजना के तहत 70 विश्वस्तरीय स्कूल खोला जाएगा और आप सरकार के 500 मोहल्ला क्लीनिक के बदले 1100 से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए जाएंगे। इसकी शुरुवात भी हो गई है। लेकिन इस सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। सबसे बड़ी चुनौती तो दिल्ली में अपने काम से बड़ी लकीर खींचने की है। अभी भी 15 साल के शासन में जो उपलब्धि कांग्रेस शासन में शीला दीक्षित हासिल कर ली थी, वह किसी और नेता के लिए चुनौती है।

पहली बार विधायक बनकर मुख्यमंत्री बनी रेखा गुप्ता के लिए यह चुनौती काफी बड़ी है। वे भाजपा शासित राज्यों में पहली मुख्यमंत्री हैं। उनकी टीम में उनसे वरिष्ठ नेता तो हैं ही, ऐसे अनेक नेता हैं जिनको हर मामले में उसे ज्यादा अनुभव है। विधानसभा अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता की सक्रियता से कई नेता परेशान हैं। वहीं आप अगर अभी की तरह दिल्ली की राजनीति में डटी रही को आने वाले दिनों में उनको हाशिए पर लाना संभव न होगा। भाजपा दिल्ली में विधानसभा बनने के बाद हुए पहले चुनाव यानि 1993 में सत्ता में आई थी। आपसी विवाद आदि के चलते पांच साल में भाजपा को तीन मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। 1998 में दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने के बाद इस बार वह सत्ता में लौट पाई है। इस बार भाजपा बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ी और 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 45.86 फीसद वोट और 48 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। दल साल से दिल्ली में सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी(आप) का वैसे तो वोट औसत काफी(करीब दस फीसद) घटा लेकिन भाजपा के मुकाबले दो फीसद कम यानि 43.57 फीसद पर रह गई। उसकी सीटें केवल 22 रह गई।

अभी आप की सरकार पंजाब में है और उसके विधायक गुजरात में भी हैं। इसी के चलते आप अपने स्थापना के पांच साल में ही राष्ट्रीय पार्टी बन गई। चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल काफी संभलकर बोल रहे थे। हाल ही उप चुनाव में गुजरात में एक और पंजाब में एक सीट जितने के बाद तो वे पहले वाले रंग में दिखने लगे हैं। अब ले वापसी का दावा करने लगे हैं। उन्होंने दिल्ली को पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को विपक्ष का नेता बना कर और सौरभ भारद्वाज को दिल्ली का अध्यक्ष बनाकर सौंप दिया है। वे ज्यादा समय पंजाब आदि राज्यों में दे रहे हैं। केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेता शराब घोटाले समेत कई मामले चल रहे हैं। उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली है। यानि आने वाले समय में उनको या मनीष सिसोदिया आदि को जेल जाना पड़ सकता है। आप कोई कार्यकर्ता आधारित पार्टी नहीं है और न ही कई राज्यों के दलों की तरह जाति या वंशवादी भी नहीं है। यह तो केजरीवाल , उनके कुछ करीबियों और लाभार्थियों की पार्टी बनकर रह गई थी। इसलिए केजरीवाल पर बहुत कुछ झेलने का दबाव है। अगर वे साल भर इसे झेल लेते हैं तो पार्टी बचेगी, अन्यथा उसके बिखरने का खतरा है।

इससे बड़ी चुनौती भाजपा के सामने है। भाजपा सरकार बनने के साथ ही यमुना की सफाई को प्राथमिकता पर करने की शुरुवात भी कर दी। दिल्ली का खराब सीवर प्रणाली, बड़ी संख्या में बस गई अनधिकृत कालोनियों की गंदगी आदि को तो सालों से यमुना ही झेल रही है। एक तिहाई दिल्ली में आज भी सीवर लाइन नहीं डली है। उसकी गंदगी सीधे यमुना में जाती है। यमुना नदी को साफ करने के लिए सबसे पहली जरूरत है कि ऐसी व्यवस्था बने कि एक बूंद भी सीवर , गंदगी या गंदा पानी यमुना में न जाए। सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके सालों से यमुना को साफ करने के नाम पर सरकारी लूट चलती रही है और यमुना पहले से ज्यादा गंदी होती जा रही है। आप के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी यमुना साफ करने का वायदा किया था। ईमानदारी से उसे न पूरा करने और इसके लिए पांच साल और देने का समय मांगा था। माना जाता है कि उनके ऊपर और उनके नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों के अलावा आप की हार में उनकी तीन मुद्दों पर माफी मांगना(आत्म स्वीकृति) भी कारण बने। उन्होंने कहा कि वे सभी दिल्लीवालों को साफ पीने का पानी नहीं दे पाए। दिल्ली की सड़कें ठीक नहीं करा पाए और यमुना को भी साफ नहीं करा पाए। यही मुद्दे भाजपा सरकार के भी सामने रहने वाले हैं। इसी से जुड़ा है साफ हवा या प्रदूषण का मुद्दा। वह भी आम दिल्ली वालों को प्रभावित कर रहा है और इससे देश की राजधानी दिल्ली की छवि काफी प्रभावित हुई है।

दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मैट्रो रेल बेहतरीन योगदान कर रही है लेकिन दिल्ली की ढाई करोड़ और एनसीआर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की कुल साढ़े चार करोड़ आबादी) के लिए अकेले मैट्रो रेल नाकाफी है। जर्जर हो चुकि डीटीसी की बसों और परिवहन विभाग के अधीन चलने वाली बसों की संख्या को बढ़ाकर कम से कम 15 हजार करनी होगी, लोकल रेल सेवा यानि रिंग रेल को मजबूत बनाना होगा। उसका दायरा बढाना होगा। इससे पहले दिल्ली की करीब चालीस हजार किलोमीटर की सड़कों को ठीक कराना होगा। अब तो यह बहाने भी नहीं चलेंगे कि पड़ोसी राज्य दिल्ली में प्रदूषण बढने के कारण हैं। अब तो दिल्ली के हर तरफ भाजपा की ही सरकार है। दिल्ली में पानी की जरूरत डेढ हजार एमजीडी(मिलियन गैलन डेली) और दिल्ली में पानी सौ एमजीडी ही पैदा हो पाता है। गंगा और यमुना पर पूरी निर्भरता है। अगर यमुना दिल्ली में साफ हो पाई और बड़े जलाशय के रूप में विकसित हो पाई तो इस संकट का समाधान एक संभव तक हो पाएगा। नई सरकार के सामने साफ हवा, पानी ही चुनौती तो है ही इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर आवास, कूड़ा निबटान, साफ-सफाई इत्यादि अनेक मुद्दे भी सरकार की परीक्षा लेंगे। ट्रीपल ईंजन यानि केन्द्र और राज्य दोनों में भाजपा सरकार बनने के बाद निगम में सत्ता मिलने का लाभ तो होगा ही, सरकार में आपसी तालमेल रखना भी एक बड़ी चुनौती है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की छवि साफ सुथरी है लेकिन वे भी बाकी मंत्रियों के समान वरिष्टता वाली हैं। सरकार बनने के बाद वे अपना राजनीतिक कद बढाने की कवायत में जुटी दिख रही हैं। हर सरकारी विज्ञापन में उनका फोटो, हर अभियान उनके नाम से, हर उद्धाटन और शिलान्यास उनके द्वारा हो रहा है। सरकार के मुखिया के नाते को यह ठीक है लेकिन ज्यादा होने से गुटबाजी होने का भी खतरा हो सकता है। सौ दिन का जश्न तो मीडिया में विज्ञापन देकर और समारोह करके मनाया गया। कहा गया कि सरकार की उपलब्धियों को भाजपा कार्यकर्ता घर-घर ले जाएंगे। वैसे असली जश्न तो जनता मनाएगी, जब उसे सरकार की ठोस उपलब्धि दिखेगी।