अद्भुत साहस शौर्य की साक्षात प्रतिमूर्ति थे मॉं भारती के वीर सपूत अमर शहीद ‘मेजर आसाराम त्यागी’

दीपक कुमार त्यागी

आज़ाद भारत के इतिहास में भी देश को आज़ादी दिलवाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह ही मॉं भारती की सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले एक से एक बढ़कर जुनूनी वीर जांबाज योद्धा पैदा हुए हैं, जिन्होंने अपनी वीरता और युद्ध कौशल से मॉं भारती की सुरक्षा करते हुए भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में हमेशा के लिए दर्ज करवा कर अजर-अमर कर लिया। अगर हम आज़ादी के बाद भारत की सुरक्षा के इतिहास की जानकारी करें, तो हमको पता चलता है कि ‘मेजर आसाराम त्यागी’ भी माँ भारती के उन वीर सपूतों में से ही एक हैं, जिन्होंने मॉं भारती की सुरक्षा की खातिर अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए भारत-पाक युद्ध के मैदान में अदम्य साहस व वीरता का परिचय देते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे। वैसे तो नापाक पाकिस्तान की नापाक हरकतें हर हिन्दुस्तानी के दिलों-दिमाग में हर वक्त रहती हैं, लेकिन वर्ष 1965 में भारत-पाक के बीच लड़े गए युद्ध की यादें आज भी बहुत सारे लोगों के जहन में एकदम ताजा हैं। खासकर उन लोगों के जिन्होंने इस युद्ध में अपने घरों के अनमोल चिरागों को युद्धभूमि में हमेशा के लिए खो दिया था।

*”देश के सभी ‘महावीरों’ की इसी वीरगाथा की कड़ी में ‘मेजर आसाराम त्यागी’ भी एक बहुत महत्वपूर्ण नाम है। ‘मेजर आसाराम त्यागी’ ने वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध में जाट रेजिमेंट की अपनी बटालियन की तरफ से कारगर रणनीति, कुशल युद्ध कौशल व अदम्य साहस का परिचय देते हुए युद्ध भूमि में दुश्मनों के दांत खट्टे करने का काम बाखूबी किया था।”*

जब ‘मेजर आसाराम त्यागी’ को डोगरई फतेह का जिम्मा मिला, क्योंकि उनकी 3 जाट बटालियन को पाकिस्तान के डोगरई गांव में दुश्मन की स्थिति पर कब्जा करने का कार्य दिया गया था, उस समय की परिस्थितियों के अनुसार सामरिक दृष्टि से यह चुनौती बहुत बड़ी व महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इस स्थल पर दुश्मन अच्छी पोजीशन में था। इसके बावजूद भी ‘मेजर आसाराम त्यागी’ ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना ही आगे बढ़कर इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और अपने दल के साथ निडरता के साथ लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ चले और उन्होंने चुन-चुन कर दुश्मन सेना के सैनिकों का सफाया करना शुरू कर दिया। उन्होंने पाकिस्तान के डोगरई मोर्चे पर फतह हासिल करने के लिए अपने प्राण माँ भारती के श्री चरणों में अर्पित कर भारतीय सेना को जंग के इस बेहद अहम मोर्चे पर विजय दिलाई थी। उन्होंने जंग के मैदान में अद्‍भुत शौर्य व वीरता का प्रदर्शन किया और युद्ध खत्म होने के पहले तक गम्भीर रूप से घायल होने की अवस्था में भी बहादुरी के साथ दुश्मन की सेना का युद्ध मोर्चे पर जमकर सामना किया था।

*”वीर ‘मेजर आसाराम त्यागी’ ने युद्ध भूमि में गंभीर रूप से घायल होने और जबरदस्त ढंग से खून से लथपथ होने के बावजूद भी अपने साथी सैनिकों के लगातार हौसलें को बढ़ाते हुए, उनके साथ देते हुए युद्धभूमि में दुश्मन की सेना के हर कदम का डटकर मुकाबला किया था और वह एक के बाद एक दुश्मन देश के सैनिकों को मारकर भारतीय सेना के मोर्चे की विजय पथ के दुर्गम रास्ते से वीरता से हटाते हुए चले गए थे, जिसके परिणामस्वरूप ही पाकिस्तान के डोगरई मोर्चे पर भारतीय सेना ने फतह हासिल की थी”*

हालांकि इस मोर्चे की लड़ाई पर मॉं भारती के बहुत सारे वीर सपूत जाबांजी से लड़ते हुए अपने वतन पर प्राण न्यौछावर कर गये थे।
आईये हम सभी देशवासी उन्हीं में एक योद्धा भारत माता के लाड़ले अजर-अमर सपूत शहीद ‘मेजर आसाराम त्यागी’ के युद्ध पराक्रम की शौर्य गाथा को आज जानने का प्रयास करते हैं।

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जनपद के मोदीनगर तहसील के फतेहपुर गांव में रहने वाले सागुवा सिंह त्यागी के यहाँ 2 जनवरी 1939 को मेजर आसाराम त्यागी का जन्म हुआ। बचपन से ही वह बहुत चुस्त-दुरुस्त, तेजतर्रार व फुर्तीले थे, जिससे देखकर लोगों ने उनके पिता से कहना शुरु कर दिया था कि सागुवा देखना तुम्हारा यह बेटा बड़ा होकर, तुम्हारा व तुम्हारे परिवार का नाम एकदिन पूरे देश में रोशन करेगा। उस समय आसाराम त्यागी के पिता मुस्कुराते हुए लोगों का अभिवादन कर देते थे, किन्तु उन्हें भी बिल्कुल इस बात का आभास नहीं था कि एक दिन सच में अपनी वीरता के दम पर उनका बेटा आसाराम देश ही नहीं पूरी दुनिया में उनका नाम हमेशा के लिए अजर-अमर कर देगा।

धीरे-धीरे समय बीता गया आसाराम बड़े हो गये, इसी बीच उनके मन में सेना का हिस्सा बनाने का विचार आया। चूंकि, अब उनके दिल और दिमाग में सिर्फ सेना की ही तस्वीरें घर चुकी थी, इसलिए आसाराम ने सेना में जाने के लिए जबरदस्त मेहनत के साथ तैयारियां शुरू की और भारतीय सेना को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया। अपनी कड़ी मेहनत, योग्यता और हुनर के बदोलत 17 दिसंबर, 1961 को जब उनके कंधे पर देश की प्रतिष्ठित जाट रेजिमेंट के फीते लगे, तो वह देश के सभी गरीब, किसान व खेतिहर मजदूरों के परिवारों को यह संदेश देने में कामयाब रहे कि छोटे से गांव में रहने वाले लोग भी बड़े सपने देख सकते हैं और उनको अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति व कठोर मेहनत के बलबूते पूरा कर सकते हैं। उस समय कोई भी सोच नहीं सकता था कि आसाराम सेना की इस वर्दी में वीरता का एक नया अध्याय इतिहास में जोड़ने जा रहे हैं, सभी लोग सोच रहे थे कि यह तो मात्र आसाराम त्यागी के जीवन के एक नए सफर की शुरुआत भर है। लेकिन उन्हें तो जीवन पथ पर अभी बहुत दूर तलक जाकर दुनिया के पटल पर छा जाना था, नियति ने उन्हें देश सेवा के किसी खास मिशन को पूरा करने के लिए ही बनाया था।

आसाराम त्यागी को सेना की नौकरी करते हुए अभी 4 साल ही हुए थे कि नापाक पाकिस्तान ने वर्ष 1965 में दोबारा से भारत पर हमला करने का दुस्साहस कर दिया। जाट रेजिमेंट की तरफ से उनकी बटालियन को तुरंत दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने का आदेश मिला। आदेश मिलते ही वीर आसाराम त्यागी के शरीर का कण-कण युद्ध भूमि में जाकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए ललायित हो उठा। 6 सितंबर, 1965 को सुबह 9 बजे भारतीय सेना की 3 जाट बटालियन ने जब पाकिस्तान की इच्छोगिल नहर की तरफ़ बढ़ना शुरू किया, तो नहर के किनारे हुई भयंकर लड़ाई में पाकिस्तानी वायु सेना ने, भारतीय सेना की इस बटालियन के जानमाल व भारी हथियारों को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचाया। इसके बावजूद भी भारतीय सेना ने 11 बजे तक नहर के पश्चिमी किनारे के बाटानगर पर कब्ज़ा कर लिया था। हालांकि उस वक्त ना जाने कैसे भारतीय सेना के उच्च अधिकारियों को उनके इस साहसपूर्ण कारनामे की सही ढंग से जानकारी नहीं मिल पाई थी। सेना के डिवीजन मुख्यालय को कुछ ग़लत सूचनाएं मिलने के बाद बटालियन के कर्नल हेड से कहा गया कि वो अपनी टुकड़ी को डोगरई से 9 किलोमीटर पीछे हटा कर संतपुरा में पोज़ीशन ले लें। वहाँ उन्होंने अपनी सुरक्षा के मद्देनजर ट्रेन्चेज़ खोदे और पाकिस्तानी सैनिकों के भारी दबाव के बावजूद वहीं मोर्चे पर दिन-रात जमकर डटे रहे।

21 सितंबर की रात को 3 जाट बटालियन ने पाकिस्तान के डोगरई पर फिर हमला कर दोबारा उस पर कब्ज़ा किया, लेकिन इस भयंकर लड़ाई में दोनों तरफ़ से बहुत से सैनिक मारे गए व भारी मात्रा में हथियार नष्ट हो गये थे। जिसके बाद 21 सितंबर की रात जब बटालियन के कर्नल हेड ने अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनको संबोधित किया और उनसे दो मांगें की, मोर्चे से एक भी सैनिक पीछे नहीं हटेगा और दूसरा ‘जिंदा या मुर्दा डोगरई में मिलना’ यह हमारी बटालियन का दृढ़ संकल्प है। कर्नल हेड ने कहा अगर तुम भाग भी जाओगे, तब भी मैं लड़ाई के मैदान में अकेला लड़ता रहूँगा। तुम जब अपने गाँव जाओगे तो गाँव वाले अपने सीओ का साथ छोड़ने के लिए तुम पर थूकेंगे। इसके बाद जब सारे सैनिकों ने खाना खा लिया तो वो अपने सहयोगी मेजर शेखावत के साथ हर ट्रेंच में गए और सिपाहियों से कहा, “अगर हम आज मर जाते हैं तो ये हमारी बहुत अच्छी शानदार मौत होगी। बटालियन आपके परिवारों की देखभाल करेगी। इसलिए आपको परिवारों की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है।”

“कर्नल हेड की बात सुन कर प्रत्येक सैनिक में जोश भर गया। उन्होंने एक सिपाही से पूछा भी कि कल कहाँ मिलना है तो उसने जवाब दिया डोगरई में। कर्नल हेड ने तब तक जाटों की थोड़ी बहुत भाषा सीख ली थी। वो अपनी मुस्कान दबाते हुए बोले, ससुरे अगर सीओ साहब ज़ख्मी हो गये तो क्या करोगे। सिपाही ने जवाब दिया, सीओ साहब को उठा कर डोगरई ले जाएंगे, क्यों कि सीओ साहब के आदेश साफ़ हैं… “जिंदा या मुर्दा डोगरई में मिलना।”

हमला शुरू हो चुका है 54 इंफ़ैंट्री ब्रिगेड ने दो चरणों में हमले की योजना बनाई थी। पहले 13 पंजाब को 13 मील के पत्थर पर पाकिस्तानी रक्षण को भेदना था और फिर 3 जाट बटालियन को हमला कर डोगरई पर कब्ज़ा करना था। लेकिन कर्नल हेड ने ब्रिगेड कमांडर से पहले ही स्पष्ट कह दिया था कि 13 पंजाब का हमला सफल हो या न हो, 3 जाट बटालियन दूसरे चरण को अपनी जान की बाजी लगाकर अवश्य पूरा करेगी। युद्ध के मैदान में हुआ भी यही 13 पंजाब का हमला असफल हो गया और ब्रिगेड कमांडर ने वायरलेस पर कर्नल हेड से उस रात हमला रोक देने के लिए कहा। लेकिन जोश से ओतप्रोत अपनी बटालियन को देख कर्नल हेड ने अपने कमांडर की सलाह मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा, हम हमला करेंगे, बल्कि वास्तव में हमला शुरू हो चुका है। ठीक 1 बज कर चालीस मिनट पर हमले की शुरुआत हुई। डोगरई के बाहरी इलाके में सीमेंट के बने पिल बॉक्स से पाकिस्तान के सैनिकों ने मशीन गन से भारतीय सेना पर बहुत ही ज़बरदस्त हमला किया।

सूबेदार पाले राम ने चिल्ला कर कहा, “सब जवान दाहिने तरफ़ से मेरे साथ चार्ज करेंगे।” कैप्टेन कपिल सिंह थापा की प्लाटून ने भी लगभग साथ-साथ चार्ज किया। सूबेदार पाले राम के सीने और पेट में छह गोलियाँ लगीं लेकिन उन्होंने बुलंद हौसलों के बलबूते तब भी अपने जवानों को कमांड देना जारी रखा। हमला कर रहे 108 भारतीय जवानों में से सिर्फ़ 27 ही जीवित शेष बच पाए। बाद में कर्नल हेड ने अपनी किताब ‘द बैटिल ऑफ़ डोगरई’ मे लिखा है कि- “ये एक अविश्वसनीय हमला था। इसका हिस्सा होना और इसको इतने नज़दीक से देख पाना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात थी।”

कर्नल हेड व उनकी बटालियन के सभी सदस्य ‘मेजर आसाराम त्यागी’ की बहादुरी से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। कैप्टेन बीआर वर्मा अपने सीओ से 18 गज़ पीछे चल रहे थे कि अचानक उनकी दाहिनी जाँघ में कई गोलियाँ लगी और वो जमीन पर गिर पड़े।

21 सितम्बर 1965 की रात को जब डोगरई गांव पर कब्जा करने के लिए ‘मेजर आसाराम त्यागी’ अपनी टीम के साथ निकले थे तो वह मोर्चे पर डटे हुए पाकिस्तान सेना के सैनिकों पर मौत का कहर बनकर टूट पड़े थे, जबकि ‘मेजर आसाराम त्यागी’ को पाकिस्तान के सैनिकों की दो गोलियाँ लगीं हुई थी, वह गंभीर रूप से घायल थे लेकिन उन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना युद्ध के इस मोर्चे पर अदम्य साहस वीरता का अद्भुत परिचय देते हुए दुश्मन की सेना से निरंतर रणभूमि में लड़ना जारी रखकर दुश्मन के एक-एक सैनिक का खात्मा करना शुरू कर रखा था, युद्ध के मोर्चे पर मेजर त्यागी पाकिस्तान के सैनिकों की मौत बनकर आये थे। उन्होंने एक पाकिस्तानी मेजर पर गोली चलाई और फिर उस पर संगीन से हमला किया। इस बीच बिल्कुल प्वॉएंट ब्लैंक रेंज से उनको दो गोलियाँ और लगीं और एक पाकिस्तानी सैनिक ने उनके पेट में संगीन घोंप दी। बेहद गम्भीर रूप से घायल होकर जब ‘मेजर आसाराम त्यागी’ अपना लगभग पूरी तरह से खुल चुके पेट को पकड़ कर जैसे ही धरती माता के आगोश में गिरे, तब ही उनके एक सहयोगी साथी हवलदार राम सिंह ने एक बड़ा पत्थर उठा कर उन्हें संगीन घोंपने वाले पाक सिपाही के सिर पर दे मारा। 21 सितंबर 1965 को डोगरई की जमीन पर ‘मेजर आसाराम त्यागी’ ने गंभीर रूप से घायल गोलियों से छलनी होने के बावजूद भी जिस वीरता पूर्ण ढंग से भारत माता की रक्षा के लिए पाकिस्तानी सैनिकों का सफाया किया था, वह वीरता किसी भी व्यक्ति की कल्पना से परे लगती है।

इस युद्ध के दौरान युद्धभूमि में घायल उनके सहयोगी कैप्टेन वर्मा के संस्मरणों के अनुसार-

*”त्यागी कभी बेहोश हो रहे थे तो कभी उन्हें होश आ रहा था। मैं भी घायल था। मुझे भी उस झोंपड़ी में ले जाया गया जहाँ सभी घायल सैनिक थे। जब घायल सैनिकों को वहाँ से हटाने का समय आया तो त्यागी ने मुझसे अपने दर्द की परवाह करे बिना कराहते हुए कहा, आप सीनियर हैं, पहले आप जाइए। मैंने उन्हें चुप रहने के लिए कहा और सबसे पहले इलाज के लिए उनको ही भेजा। पेट फटने के कारण उनके शरीर का आधिकांश ख़ून युद्धभूमि में ही बह चुका था।”*

मेजर शेख़ावत के संस्मरणों के अनुसार-

*”मेजर त्यागी बहुत ज्यादा पीड़ा में थे। उन्होंने मुझसे कहा सर, मैं बचूंगा नहीं। आप एक गोली मार दीजिए। आपके हाथ से मर जाना चाहता हूँ। इस पर हम उनकी हौंसला अफजाई करते और कहते “मेजर तुम्हें कुछ नहीं होगा”*

लेकिन हम सभी साथी चाहते थे कि वीर ‘मेजर आसाराम त्यागी’ माँ भारती की सेवा के लिए अभी ज़िंदा रहें। लेकिन अफसोस ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था डाक्टरों के तमाम अथक निरंतर प्रयासों के बावजूद 25 सिंतंबर को भारत माता के लाड़ले सपूत वीर ‘मेजर आशाराम त्यागी’ हम सभी की आँखों को नम करते हुए इस दुनिया से हमेशा के लिए चले गये और अजर-अमर हो गये।

सुबह के तीन बजते-बजते डोगरई गांव के पाकिस्तानी मोर्चे पर भारतीय सैनिकों का कब्ज़ा हो गया। सवा छह बजे भारतीय टैंक भी वहाँ पहुंच गए और उन्होंने इच्छोगिल नहर के दूसरे किनारे पर जबरदस्त गोलाबारी शुरू कर दी, जहाँ से भारतीय सैनिकों पर लगातार भयानक फ़ायर आ रहा था। 3 जाट बटालियन के सैनिकों ने झोंपड़ी में छिपे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को एक-एक कर पकड़ना शुरू किया। पकड़े जाने वालों में लेफ़्टिनेंट कर्नल जे एफ़ गोलवाला जो कि 16 पंजाब (पठान) के कमांडिंग ऑफ़ीसर भी शामिल थे। इच्छोगिल नहर पर लांस नायक ओमप्रकाश ने भारत का झंडा फहराया। वहाँ मौजूद भारतीय सैनिकों व लोगों के लिए यह बहुत गौरवशाली क्षण था। बाद में इस लड़ाई के दौरान अदम्य साहस, शौर्य, वीरता और पराक्रम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए लेफ़्टिनेंट कर्नल डी एफ़ हेड, मेजर आसाराम त्यागी और कैप्टेन के एस थापा को भारत सरकार के द्वारा ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

वीर ‘मेजर आसाराम त्यागी’ को मरते दम तक अपना मिशन ‘जिंदा या मुर्दा डोगरई में मिलना’ अंतिम पलों तक याद रहा, जिस मिशन को उनके साथियों ने जल्द ही पूरा कर लिया। इस तरह से डोगरई पर भारतीय तिरंगा लहराया और पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के ‘मेजर आसाराम त्यागी’ जैसे वीरों के अदम्य साहस व हौसले को बहुत ही करीब से देखा था। भारत के दुश्मन पर विजय हासिल करने वाले ‘मेजर आसाराम त्यागी’ भले ही मृत्यु पर विजय प्राप्त नहीं कर सके हो, लेकिन उनकी वीरता व शौर्यता की कहानी आज भी देश के हर वर्ग विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। देशभक्त युवा वर्ग के लोग तो मातृभूमि के रक्षक अमर शहीद ‘मेजर आसाराम त्यागी’ को अपना दिल से आदर्श मानते हैं और उन्हीं की तरह देश सेवा का सपना पाले हुए भारतीय सेना में शामिल होना चाहते हैं। वर्ष 1965 की भारत पाक जंग में डोगरई मोर्च की लड़ाई के हीरो शहीद ‘मेजर आशाराम त्यागी’ को पुण्यतिथि पर मैं अपनी चंद पंक्तियों के साथ कोटि-कोटि नमन् वंदन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं-

“वीरों की धरा है यह पावन भारत भूमि,
दुश्मनों को माकूल जवाब देती है यह भारत भूमि,
देश पर शहीद होने के लिए तत्पर रहते है अनगिनत लोग यहां,
नमन् करते है दिल से उनको हम देशवासी सदा।।”