कृष्ण और होली के रंग

प्रदीप पंडित

श्रीकृष्ण न सत्ता हैं और न इतिहास। कृष्ण गति का नाम है और गति सहज है। कृष्ण का मार्ग सहजता का मार्ग है। ऐसा रास्ता जिस पर हर कोई चल सकता है। इसे राजमार्ग कहें या कुछ और। सहज को समझना और समझाना कठिन है। इस शब्द का उल्लेख विद्यापति, चंडीदास, कबीरदास, दादू, तुलसी ने अपने भावार्थो को समझने में किया है। इसी पहल को कुछेक ने ‘सूधो’ या सीधा रास्ता कहा। तुलसी ने लिखा- ‘तुलसी सुधि सकल विधि रघुवर प्रेम प्रतीती।’ अब्दुल रहीम खानखाना ने कहा- ‘प्रेम पंथ ऐसो कठिन सबसे निबहत नाहीं।’ कृष्ण प्रेम हैं। इसलिए उदास नहीं हैं। कृष्ण रास हैं, खेल हैं, उत्सव हैं, युद्ध हैं। जीवन की अद्भुत कीमिया है, जिसे आज तक कोई छू नहीं पाया। बृज में बांकेबिहारी ने भक्तों के साथ होली खेली। यहां रंग और लठ्ठमार होली खेली जाती है, बरसाने में गाई जाती है ‘होरी’। यह राधा-कृष्ण का संवाद माना जाता है। संवाद ऐसा कि वह न सिर्फ शब्द हो, बल्कि लय बन जाए। न सिर्फ लय हो संपूर्ण प्रतीती में परिवर्तित हो जाए। इसे भारतीय मनीषा रंग कहती है और रंग से भीत्ति चित्र बनाने वाले का पहला नाम कृष्ण है। यही वजह है कि वह मोहन है, वासुदेव है, गोविंद है। रंग प्रकृति का अनुष्ठान है। रंग गीत की उर्मियां हैं। रंग जीवन की अभिव्यक्ति है। इसी से है जीवन की अभिव्यंजना। कृष्ण का संबंध निष्काम प्रेम से है। यह कैसे संभव है? होली दहन और रंग-पर्व में। होली में दहन किसका होगा? अहंकार, क्लेश, वैमनस्य का। इसके उपरांत ही निष्काम प्रेम का दीया प्रज्ज्वलित होगा, फिर सिर्फ प्रेम बरसेगा। इसीलिए राधा की नगरी को बरसाना कहते हैं। जहां राधा हो वहां प्रेम ही तो बरसेगा। मीरा ने गाया- या तन की मैं करूं कींगरी, रसना नाम कहूंगी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर साधा संग रहूंगी। एक बार तुम मिल जाओ तो मैं तुम्हें गांव-गांव बांटती फिरूं, जहां भी तुम्हारे नाम का प्यासा हो उसकी अंजुरी में तुम्हें उड़ेलती फिरूंगी। यह कृष्ण के प्रेम में आसक्त वचन हैं। यह कविता नहीं यह कंठ से सस्वर उपजी अहर्निश प्रार्थना है। कृष्ण के करीब जाने से रंग बोध निखरता है, अनुभव गिरता है और निष्कलुषता बढ़ने लगती है। अगर अनुभव से ही दुनिया निखर जाती तो पूरी दुनिया में अनुभव की गठरी बांधे अनेकानेक घूम रहे हैं। इससे सिर्फ इतना हुआ कि चालाकी बढ़ गई, सरलता खोती चली गई। होली के रंग आपको सरलता में अपनी निजता में उतार ले जाते हैं। लेकिन चालाकियों से भरे बाजारों में रंग सिर्फ लुभाने की, आकृष्ट करने की कला का नाम है। मॉल में घुसते ही आप पल भर में भूल जाते हैं कि किस रंग ने आपको बुलाया था। ऐसे ही भरे बाजार से गुजरते हुए आपको न तो प्रार्थनाएं सुनाई देती हैं न मंदिर की घंटियां, लेकिन एक खनकदार सिक्का गिर जाए तो वह बीस लोगों का ध्यान खींच लेता है। कृष्ण ने टेसू के रंगों से होली खेली, यह गैरिक रंग है। बासंती, थोड़ा पीताभ। यह ध्यान के आरंभ का रंग है। यह ध्यान में उतरने के बाद का पहला अहसास है और अंतिम अहसास है नीले रंग का। यह नीलिमा उस अनंत आकाश की है। रंगों पर पश्चिम में बड़ा काम हुआ है। अमरीका के एक सुपर स्टोर के मालिक ने रिसर्च करावायी कि पीले रंग के डिब्बे में वस्तु बेचने से 20 प्रतिशत और लाल रंग के डिब्बे में रखने से 80 प्रतिशत बिक्री होती है। यही कारण है दुनिया भर में स्त्रियों ने सर्वाधिक समय लाल रंग के ही कपड़े पहने। इसे समझना होगा कि आखिर क्यों और कैसे फ्रायड ने कहा कि दमन ठीक नहीं है। इससे पहले सिर्फ कृष्ण ने कहा राग, प्रेम, योग, काम, युद्ध सभी दिशाओं का स्वीकार जरूरी है। कृष्ण दुनिय के सभी विचारकों में अनूठे हैं। कृष्ण दर्पण हैं, दर्पण की तरह हैं। वे महज समाज को, किसी स्थिति को ठीक करने के लिए नहीं आते क्योंकि ठीक भी सापेक्ष है। जो तुम्हें या उन्हें ठीक लग रहा है कदाचित वह सबी को न लगे। कृष्ण दुख और सुख दोनों में राजी हैं। एक स्वीकार है जिसमें सभी शामिल हैं। जायसी ने लिखा: सूरज बूड़ि उठा होई ताता और मजीठ टेसू बन जाता। या बसंत राती वनस्पती और राते सब जोगी जती।। सूरज उस रात में डूबकर लाल हो गया, जंगल टेसू के फूलों से दहक उठा। सारी वनस्पति बसंत में लला गई। यह रंग की बारिश है जिसमें धरती भी भेद नहीं करती। ठीक ऐसे ही कृष्ण रंगों की बारिश हैं। आज भी वृंदावन में निकुंज सेवा का अर्थ है- बालू पर गिरी हुईं पत्तियों को बटोरना। जहां महज प्रेम अवशिष्ट है, यहां तक कि चित्त, मन, इंद्रियां, तन सभी प्रेम हो जाते हैं। ऐसे में प्रेम न क्रिया है न प्रतिक्रिया। कृष्ण की राधा न स्त्री है न इंद्री, न पत्नी, न पुत्री वह सिर्फ प्रेम है। कृष्ण को सोलह कलाओं का ज्ञाता कहते हैं। वस्तुतः सोलहवीं कला का नाम राधा है। जिसने जान लिया रंग, प्रेम वही इस कला का जानकार है। कृष्ण पूर्ण हैं। उनके अनेक आयाम है। हर आयाम पूरा है। कृष्ण का एक अर्थ काला भी होता है। रसायनशास्त्र से वास्ता रखने वाले जानते हैं कि काले रंग में हर रंग को समाहित करने की शक्ति है। कृष्ण ऐसे ही हैं जिन्होंने रंगों की कीमिया से आनंद के दरवाजे खोले। जीवन के आनंद को ही प्रेण की पीड़ा कहते हैं। रंग इन्हीं अभिव्यक्तियों का नाम है।

(लेखक गीता मनीषी और ब्रज साहित्य के विशेषज्ञ हैं)