आओ, आतंकवादी ले लो ! खरीदो-मारो-कूटो-ठोको – – –

सीता राम शर्मा ‘चेतन’

हा-हा-हा-हा- – – सच ही कहा है किसी ने वक्त वो सब करा देता है जो किसी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था ! क्या अच्छा और क्या बूरा, क्या चतुर और क्या चोर, सब पर भारी पड़ता है समय का जोर ! समय की इस शक्ति के कारण ही यह कहावत भी कही गई है कि जैसी करनी वैसी भरनी ! समय ही कर्मफल का दाता है । आप यह पढ़ सोच कर हैरान ना हों कि किसी फेरी वाले की तरह आवाज देकर आतंकवादी खरीदो और मारो के अजीबोगरीब शीर्षक वाले व्यंग्य में ये जीवन सिद्धांत और कर्मफल वाले उपदेश का क्या औचित्य ? तो आइए, सबकुछ जानने समझने के लिए चलते हैं नापाक प्रधानमंत्री के आवासीय कक्ष में, जहां वे आधी रात को एक स्वप्न से भयभीत होकर जाग बैठे हैं अपने बिस्तर पर और उनकी बदहाल स्थिति देख उन पर चिल्ला रही है उनकी बेगम – अरे ये क्या हो गया है आपको इन दिनों ! हर वक्त बड़बड़ाते रहना, खुद ही खुद पर झल्लाहट, अपने ही हाथों से बार-बार अपना सिर पीटना, कभी मुल्क के पुराने जनाबों और सेनाध्यक्षों को गाली बकना, तो कभी आतंकवादियों को चुन-चुन कर सरेआम गोली मरवाने की खोखली बातें कर बहादुरी दिखाना !

अरे चुप भी रहो अब – – –

अरे धूत, क्या खाक चुप रहूँ मैं ! तंग आ गई हूँ अब तो आपकी इस पदवी और पगलाहट से ! आधी रात को ये क्या हो गया था अभी जनाब को, जो नींद में पागलों की तरह चिल्ला रहे थे आप ! आओ, आतंकवादी ले लो ! खरीदो-मारो-कूटो-ठोको, जिसे चाहो उसे खरीदो ! जैसे चाहो वैसे मारो ! और तो और चिल्ला रहे थे तड़पा-तड़पा कर मार डालो सालों को ! क्यों ? भला ये आतंकवादी मेरे भाई और आपके साले कैसे हो गए जनाब ? अरे, आतंकवादी पैदा किए इस मुल्क के तुम्हारे निकम्मे और बदजात हुक्मरानों और सेनाध्यक्षों ने, फिर भला उसमें मेरे अब्बा का क्या हाथ ? जो सालों को मार डालने की बात कर रहे थे !

अरे जरा सोच समझ कर और धीरे बोलो बेगम – – –

बिल्कुल भी धीरे नहीं बोलूंगी अब । चाहे – – –

चाहे तेरा शौहर अभी का अभी कब्र में पहुंच जाए । चाहे तेरा शौहर मारे भय और जलालत के आधी रात में आतंकवादियों से परेशान हो उन्हें मारने मरवाने के सपने देख तेरे सामने धीरे बोलने के लिए गिड़गिड़ाए । बोलते हुए जोर-जोर से अपना माथा पीटने लगे थे वह !

और पीटो ! खूूब पीटो ! जी भर कर पीटो अपना सिर ! पीटना ही चाहिए । मैं तो कहती हूँ हाथों से नहीं अब दीवार से ठोको अपने नापाक सिर को ! उफ्फ, क्या दुर्दशा करवा दी है तुम्हारी नापाक बिरादरी ने इस मुल्क और इसके असहाय आवाम की ! जिसे देखो भारत विरोध के नाम पर अपने हराम की रोटी सेकता है और भाग लेता है विदेश ! क्या राष्ट्रपति और क्या प्रधानमंत्री ! सबके सब भगोड़े, सेना और आतंकवादियों के हाथों की कठपुतली ! अरे धूत, डूब मरो कहीं गंदे नाले में जाकर । कम से कम धरती से थोड़ा बोझ तो कम होगा । बेचारी आवाम – – –

अरे डूब मरुंगा । डूब मरुंगा कहीं गंदी नाले में ही जाकर, पर उससे पहले अपने आज के सपने को हकीकत में बदलूंगा जरूर ! जनाब पागलों की तरह चिल्लाए थे ।

क्या मतलब ? तुम कल सुबह उठकर इस शहर के गली-मोहल्लों में फेरीवालों की तरह घूम-घूम कर चिल्लाओगे, कि सस्ते, ठोकाऊ आतंकवादी ले लो और उन्हें खरीद कर जी भर कर मारो-कूटो-ठोको और अपने मन की भड़ास निकालो ! अरे, यहां भूख से मरती बेचारी आवाम अपना पेट भरने के लिए आंटा, दाल और चावल नहीं खरीद पा रही तो वह अभी मन बहलाने के लिए या निशानेबाजी सीखने के लिए तुम्हारे आतंकवादी क्यों खरीदेगी भला ? यदि मरवाना ही है उन्हें, तो फिर मरवाते क्यों नहीं अपनी आतंकी फौज से – – –

अरे चुप भी करो मूर्ख । क्या उलूल-जुलूल कुछ भी बके जा रही हो बिना सोचे समझे – – –

तो फिर चलो, तुम ही बको होशियार खान ! तुमने तो आज घोषणा कर दी कि हम तनख्वाह नहीं लेंगे, अपने बिजली, पानी, आंटा दाल का खर्च खुद वहन करेंगे । हालांकि जान लो, कि इससे आवाम बेवकूफ नहीं बनने वाली, वह सब जानती है कि इस बेकार के दिखावे के पिछे का सच क्या है । इससे लाख बेहतर तो सिर्फ यह होता कि तुम दुनियाभर में अपनी जय-जयकार करवाते आदरणीय भारतीय प्रधानमंत्री की तरह उनके वे दो शब्द कहने की हिम्मत कर दिखाते कि अब ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा ! हूंह, तनख्वाह नहीं लेंगे । बिजली पानी का बिल भरेंगे । लक्जरी गाड़ियां बेचेंगे । ये तो कहा, पर भ्रष्टाचार नहीं करेंगे, आतंकवादियों के तलवे नहीं चाटेंगे । सेना को सुधारेंगे । यह कहने की हिम्मत तो नहीं दिखाई ।

अरे कमबख्त, वही तो सोचते-सोचते सोया था, जो सपने में भी चिल्ला रहा था !

अच्छा ! यह बात ! तो चलो बता भी दो, कि कैसे बेचोगे, मारोगे, ठोको या ठोकवाओगे तुम अपने इन आतंकवादी आकाओं को ?

बेचेंगे, पर अपने मुल्क में नहीं ! जिसकी जिस मुल्क को जरूरत होगी उसको बेचेंगे उसे ! वो इन हराम के पिल्लों को खरीदेंगे भी और फिर ठीक से ठोकेंगे भी ! इसके कई फायदे होंगे हमको और हमारे मुल्क को भी ! एक – बड़ी रकम मिलेगी । दो – मुल्क को इनसे मुक्ति मिलेगी । तीन – वे छोटे आतंकवादियों को मारने में भी सहयोग करेंगे । चार – इसी बहाने हमारे मुल्क से उनकी दोस्ती बन पाएगी । पांंच – – –

हा-हा-हा-हा – – – अरे थोड़ा रुको शेख चिल्ली खान, पहले यह बताओ कि यदि सारे आतंकवादियों को बेच दोगे तो फिर तुम्हारे मुल्क की रक्षा कौन करेगा ?

सेना । जनाब झल्लाए थे ।

वाह ! तो तुम्हे लगता है कि तुम्हारी सेना आतंकवादियों से कम है ! बिना सेना और उस नापाक खुफिया की अनुमति के तुम आतंकवादियों की नीलामी करवा दोगे ?
बोलते हुए बेगम ने अपनी भौंहे कुछ इस तरह मटकाई कि जनाब के होश गुम हो गए ! पूरी खोपड़ी झन्ना और चकरा गई उनकी ! कोई जवाब ना सूझा तो एक बार फिर उन्होंने अपने माथे को अपने ही हाथों से जोर-जोर से पीटा और पागलों की तरह बड़बड़ाते रजाई से मुंह ढककर अंधाधुंध हाथ-पैर चलाते सोने की नाकाम कोशिश करने लगे ।

बेगम ठहाका लगाती पलंग से उतरती हुई चिल्लाई थी – मैं तो चली दूसरे कमरे में चैन से सोने । अब तुम जी भर कर अपने आकाओं और आतंकवादियों की नीलामी करवाओ, उन्हें बेचो, मारो-मरवाओ, ठोको-ठोकवाओ या फिर शेर से शियार होकर विवशता में अपना खूूब माथा पीटो और छटपटाओ – – – और हां, सुबह उठकर अपनी विवश आवाम का वह वीडियो जरूर देख लेना, जिसमें एक बंदा इस नापाक और आतंकवादी मुल्क में एक मोदी के आ जाने की रो रोकर दुआ कर रहा है ! मैंने तो सोच लिया है ऐसा ही एक वीडियो मैं भी बनाऊंगी कल – – –