हमारे पड़ोस के सौगात मास्टर

राजेन्द्र कुमार सिंह

एक लंबे अरसे से वगैर मतलब का मूल मुद्दा से हटाकर जनता को भटकाकर हमेशा करते रहते हैं बेमतलब का टरटर।अजीब पड़ोसी हैं बड़े भैया जहमतलाल हमारे सौगात मास्टर।राजनीति करते हैं लेकिन झूठ बोलकर औकात बढ़ाते हैंऔर जब पकड़ाते हैं तो बेशर्म की तरह हंस कर टाल देते हैं।यानि सिर्फ शिगूफा छोड़कर आम आदमी के भावनाओं को छेड़ते हैं।सिर्फ फोकट में झुठा सौगात बांटने में एक नंबर इसलिए सभी इनको सौगात मास्टर कहते हैं।

जहां भी जाते हैं झोला में रिबन या फीता साथ होता है,कैंची भी रखते हैं।मकान,दुकान या होआरामगाह।बेचारे का हर जगह होता वाह-वाह है।भले ही उनके जाने के बाद वहां की जनता इनको कहती लापरवाह है।कमबख्त लंपट,लाफाड़ी चुनाव जीतते कैसे हैं जनता को उल्लू बना पपलू फिट कर हिट हो जाते हैं।इन लफाड़ियो के समक्ष जेनुइन मोहरे पीट जाते हैं।

देश की जनता जिस तरह एक पक्ष को छूट कर वोट दी थी अपने वादों को चिरकुट की तरह लथेड़कर जनता को ऐसे कूट रही है,मानों कोल्हू के बैल की तरह जोत रही है।कारण जितने भी जीत कर गए हैं।इस क्षेत्र के पक्का खिलाड़ी नहीं बल्कि अनाड़ी है।इसलिए देश का हालत बिगड़ रही है।अब जनता इनके सर पर चढ़कर अच्छी तरह रगड़ रही है।नित्य नई एक से बढ़कर एक खुराफात की खबर सुन हालात बद से बदतर होती जा रही है।पहले स्तर हाई था अब वह शनै-शनै खाई में जा रहा है।काम के नाम पर लेबल बदल-बदल कर दिखा रहे हैं। विकास के ग्राफ को चढ़ाने का दावा कर जनता को पढ़ा रहे हैं।जनता अब मूर्ख नहीं वह काफी सुर्ख होकर उनके करतूतों को देख चुने हुए कपूतों को लथेड़ रही है उनको अपने क्षेत्र में ही घूमने नहीं दिया जा रहा है,घुसने नहीं दिया जा रहा है।जैसे गए वैसे ही बगैर दौरा किया खदेड़ रही है।नेताओं की रैली झुंडों में चलकर खलबली मचा रही है जो मुद्दा है उसे भटकाकर दूसरे तरफ अटका रही है।चुनाव के पहले वादा किया वह बगैर निभाए कुछ और मुद्दा पर बात करें जनता अब इनसे जुदा हो गई है।जो जनता अपने वादे उनको याद दिलाती है उसे बेहूदा कहा जाता है,नासमझ है।उस पर उल्टा-पुल्टा केस ठोक,उसके भावनाओं को ठेस पहुंचा उसे रोक दिया जाता है।तानाशाह जैसे रवैया से जनता कराह रही है।उसके आह पर किसी की भी निगाह नहीं जाती है।एक लंबे अर्से तक शासन के बाद हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं अजीब तरह से ऐंठे हैं।जब चुनाव की बारी आने वाली होती है तो पहले से तैयारी करने लगते हैं।सौगात फटाफट उगलने लगते हैं मचलने लगते हैं।

अभी जहमतलाल भैया उर्फ सौगात मास्टर जनता के अरमानों की होली जलाकर हर खोली का दरवाजा खटखटा रहे हैं।चेहरे पर रुआंसे भाव लाकर पटा रहे हैं।सौगात का चटनी चटा रहे हैं।इस सरकार के प्रति जनता का जो रवैया बरकरार है उसके दरकार को ध्यान में रखकर उसके बुद्धि को सटका रहे हैं। लेकिन जनता इनके झांसे में नहीं आने वाली,मुंह पर जो कहे इस बार झटका देने वाली है।अभी तो वोट पर जो प्रपंच होने वाला है अभी वह मामला दूर है लेकिन इस बार मानसिक रूप से टंच है।कितना भी कोई आकर समझाए पंच कहां करना है अपने दिलों दिमाग में बैठा ली है।वह अपने मन का सुनेगी। जहमतलाल हो या रहमतलाल उसे क्या करना है अच्छी तरह मालूम है।