जीवन का दर्शन है काव्य संग्रह ‘तपस’

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

वर्तमान तकनीकी दुनियां में शोशल साइट्स साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जहाँ गोते लगाने पर अच्छे- अच्छे लेखक सामने आ रहे हैं और उन्हीं में से एक हैं अलका ‘सोनी’। शोशल साइट्स और पत्र- पत्रिकाओं में अक्सर दिखने वाली हिंदी की उभरती युवा लेखिका अलका ‘सोनी’ का हिंदी साहित्य के विभिन्न विधाओं में अनन्य योगदान है। अलका जी की कलम अक्सर समाज और महिलाओं से जुड़े विषयों पर बेबाक रूप से चलती रहती है। वे अपने मन की बात , कविताओं के साथ – साथ कहानियों और आलेखों के माध्यम से भी व्यक्त करती दिखतीं हैं। समाज मे व्याप्त समस्याओं पर वे अपनी कलम तोड़ती रहती हैं। हाल ही में प्रकाशित उनका पहला काव्य – संग्रह “तपस” हमारे हाथों में है। जिसमें उन्होंने जीवन , समाज और महिलाओं से संबंधित कविताओं को सुसज्जित किया है।

अलका की कविताएं गागर में सागर भरने का काम करती हैं। दिल में घर कर जाने वाले इस काव्य संग्रह की भूमिका प्रख्यात साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही जी ने लिखा है, जो इस पुस्तक के बारे में लिखते है कि ‘तपस’ जीवन का दर्शन है। इस संसार में सभी अपनी-अपनी तपस्या में तल्लीन हैं। सूर्य-चन्द्र अनादि काल से ब्रह्मांड में तपस-तल्लीन हैं। इस तपस्या से गुजरने के बाद ही मनुष्य में तेज आता है। सूर्य की तपस्या का फल उसका तेज या धूप है जो बिना भेदभाव के सृष्टि का आधार है। वसंत की मनभावन धूप का आनंद ही कुछ और होता है। ग्रीष्म ऋतु को धूप में आनंद तिरोहित हो जाता है। शायद इसीलिए अलका ‘सोनी’ ने अपने काव्य संग्रह का नाम “तपस” रखा।

संग्रह की पहली कविता ‘ हमें क्या’ में कवयित्री ने समाज के उन लोगों को आइना दिखाया है जो किसी घटना के हो जाने के बाद मोमबत्ती ले कर आ जाते हैं, और जब घटना घट रही होती है तब तमाशा देखते है या फिर वीडियो बनाते रहते हैं। आज के समाज का यह सबसे बड़ा काला सच है कि जब बाहर सड़क पर कोई घटना होती है तो हम यह सोच कर छोड़ देते है कि यह मेरे घर का नहीं है। जबकि यह कभी भी, किसी के भी साथ घट सकती है। समाज को बदलने की जरूरत है ताकि घटना होने से पहले ही उसे रोका जा सके। कविता’ एक और बहाना मिल गया’ में अलका जी ने घटना के बाद कैंडल्स जलाने पर लिखती हैं –
‘कैंडल्स जलाने का ,
एक और बहाना मिल गया,
सड़क जाम कर चिल्लाने को यार,
एक और बहाना मिल गया

अपनी कविता ‘आधुनिक’ में महिलाओं के लिए वे कहती है कि हम जिस आधुनिकता की बात कर रहे है , वह कपड़ो से नहीं बल्कि हमारे सोच से आती है। इसीलिए महिलाओं को चाहिए कि रुढियों को मन से खत्म कर अपने सोच में नवीनता लाएं और आधुनिकता के जामा को पहन कर समाज को गौरवान्वित करें। माँ की ममता से पूरी दुनिया जगमगा जाती है। कविता ‘माँ ‘ में माँ के सहचर और समर्पण को बड़ी सुंदर शब्दों में अंकित किया गया है। बच्चे जब गलती करते है , तब माँ ही अपनी आँचल में उनकी गलतियों को छुपा कर उन्हें अच्छे कार्य करने की सीख देती है। बच्चा कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए अपने माँ के सामने वह बालक ही बन कर ममत्व के स्नेह लेप को अंगीकार करते रहता है। जीवन की हर कठिनाई से लड़ कर हमें जिताने में और साथ देने में माँ ही सबसे आगे रहती है।

अलका ने अपनी कविता ‘बेटियाँ’में हमारे जीवन में बेटियों के महत्व बड़ी सुंदर शब्दो मे पिरोया है।लिखती है- ‘कोयल की कुक कभी, मयूरों की नर्तन होती है बेटियाँ ‘ लेकिन आज का इंसान बेटियों को गर्भ में ही मार रहा है। उसपर भी उन्होंने अपनी कविता ‘अबॉर्शन’ में भ्रूण हत्या की समस्या को रेखांकित किया है। जिसमें परिवार में बेटे होने की चाहत में हर रोज कितनी ही बच्चियों को कोख में ही मार दिया जाता है। एक बेटी जिसे मां का गोद नसीब होना चाहिए उसे भ्रूण हत्या का शिकार होना पड़ता है। कविता ‘ सीता की अग्नि परीक्षा’ में सीता के त्याग- तपस्या के बाद भी अग्निपरीक्षा के लिए समाज से प्रश्न करते हुए लिखती है-
‘ देनी पड़ी केवल मुझकों ही,
क्यों अग्निपरीक्षा समझ न आया,
पति होने का तुमने,
कहो कैसा धर्म निभाया?

‘तपस’ काव्य संग्रह में 101 कविता है जिसमें समाज , महिला, पर्यावरण और हमारे जीवन से जुड़े पहलुओं को बखूबी लिखा गया है। इनकी कविताएं अपनी धाराओं में बहती हुई दिख रही है, जिसे पढ़ने के बाद आनंदित महसूस हो रहा है। कविताओं में शब्दों की कसावट भी काबिलेतारीफ है जो कविताओं में चार चांद लगा रहा है। यह कविता संग्रह पठनीय है जिसका लोगों में छाप देखने को मिलेगा।

पुस्तक : तपस
लेखक: अलका ‘सोनी’
प्रकाशन: इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड, गौतम बुद्ध नगर
मूल्य: 325 रुपये