सीता राम शर्मा ” चेतन “
बहुत कम लोग जानते हैं कि जब देश आजाद हुआ तब सबसे बड़ी समस्या पाकिस्तान विभाजन नहीं, पाकिस्तान के हिस्से से मुक्त क्षेत्र को एक सूत्र में पिरोने की थी । मुस्लिम लीग की अलग देश पाकिस्तान की मांग जिन्ना की जिस व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का परिणाम थी, ठीक वैसी ही महत्वाकांक्षाएं देश के कई हिस्सों में पनप रही थी, जिसे सरदार वल्लभ भाई पटेल के देशप्रेम, राजनैतिक कौशल और दृढ़ इरादे के बूते परास्त किया जा सका था ।
अंग्रेजी हुकूमत द्वारा भारत छोड़ने अर्थात इसे आजाद करने की घोषणा के पश्चात देश की 565 रियासतों के अति महत्वाकांक्षी शासकों को एक अखंड भारत में पिरोने का काम बेहद मुश्किल था । सबकी अपनी अलग-अलग महत्वाकांक्षाएं थी । गांधी और नेहरु के लिए भी यह कार्य अत्यंत मुश्किल था, तब इस कार्य के लिए जो व्यक्ति आशा के केंद्र में था, वह थे, लौह पुरुष सरदार पटेल । सर्वविदित है कि यह दुर्गम कार्य सरदार पटेल ने अपने बुद्धि चातुर्य और राजनैतिक कौशल से सफलतापूर्वक संपन्न किया था । जिसके लिए दुनिया भर में उनकी प्रशंसा हुई थी । उन्होंने सभी रियासतों को यह स्पष्ट कहा था, कि अलग राष्ट्र का उनका सपना असंभव है और भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनने में ही उनकी भलाई है । आजादी के समय 565 रियासतों में कई राजा और नवाब थे, जो देशभक्त और जागरूक थे, पर उनमें से कई दौलत और सत्ता के नशे में थे । जो स्वतंत्र भारत की सरकार की तरह बराबरी का दर्जा चाहते थे । उनमें से कुछ तो इसके लिए संयुक्त राष्ट्र में अपने प्रतिनिधि भेजने की तैयारी में थे । तब सरदार पटेल ने ही उनसे कहा था कि वे देश की स्वतंत्रता से जुड़े और एक जिम्मेवार शासक की तरह व्यवहार करते हुए जनता की भलाई के लिए कार्य करें ।
देश की 562 रियासतों का बिना शस्त्र उठाए एकत्रीकरण कर चुके सरदार पटेल के सामने जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर की रियासतें आजाद भारत की एकता के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी । उनके नहीं मानने से कई और रियासतों के विद्रोही होने की संभावना हो सकती थी । देश के पहले गृहमंत्री और उपप्रधान मंत्री बने सरदार पटेल ने पाकिस्तान परस्त जूनागढ़ निजाम के साथ हैदराबाद निजाम को घुटने टेकने पर विवश कर दोनों रियासतों का विलय कर लिया था । जम्मू कश्मीर की कमान नेहरू ने अपने हाथों में रखी थी, जिसका परिणाम जगजाहिर है । सरदार पटेल द्वारा 564 रियासतों का सफलतापूर्वक एकत्रीकरण किए जाने के लिए ही देश ने उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी थी । सरदार पटेल के इस सफल प्रयास के लिए ही उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा जाता है ।
31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में एक साधारण किसान झवेर भाई पटेल के घर में जन्म लेकर अपनी लगन, मेहनत और बुद्धि चातुर्य से असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी बने वल्लभ भाई पटेल के सरदार बनने की कहानी भी अत्यंत रोचक है ! घोर अभाव में अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी कर एक प्रसिद्ध वकील बनने के बाद गांधी जी के संपर्क में आकर वल्लभ भाई पटेल ने 1918 में अंग्रेजी हुकूमत की गलत नीतियों के खिलाफ हुए खेड़ा किसान आंदोलन की अगुवाई की थी । गांधीजी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाते हुए 1928 में एक बार फिर बारडोली में हुए किसान आंदोलन का उन्होंने सफल नेतृत्व किया था । दोनों ही आंदोलनों में अंग्रेजी हुकूमत को उन्होंने घुटने टेकने पर विवश कर दिया था । बारडोली में हुए किसान आंदोलन की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने उन्हें अपना सरदार कह कर पुकारा था । जो आगे चल कर उनके अगाध देशप्रेम और जीवट व्यक्तित्व से प्रभावित हुई भारतीय जनता की आवाज बन गया था ।
आजादी के बाद सरदार पटेल ने देशवासियों से कहा था – ” यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है, कि वह यह अनुभव करे कि उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है । हर भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि उसकी जाति क्या है । उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियां भी है ।” सरदार पटेल के इस कथन में उनके अनुभव के साथ उनकी दूरदर्शिता भी साफ दिखाई देती है । आजादी के 70 वर्ष बाद आज भी उनका यह कथन उतना ही प्रासंगिक है, जितना तब उन्होंने महसूस किया था । सच कहें तो हम यह भी कह सकते हैं कि अब उनके इस कथन को बार-बार दोहराने की और व्यवहार में लाने की जरूरत तब से कहीं ज्यादा है ! सत्ता और आत्म स्वार्थ के साथ भौतिकता की चकाचौंध में डूबे हमारे भारतीय समाज और हर नागरिक में राष्ट्रीय कर्तव्य बोध का भाव जागृत हो, यह आज देश की सबसे बड़ी और पहली जरूरत है ।
” अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है । अपनी आंखों को क्रोध से लाल होने दीजिए और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिए ।” सरदार पटेल की इस बात को याद करते हुए आज आतंकवाद , नक्सलवाद, देशद्रोह और भ्रष्टाचार जैसी बड़ी समस्याओं से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है । जिसके लिए हर भारतीय को व्यक्तिगत तथा दलगत हितों से ऊपर उठकर देशहित में जीने की जरूरत है ।
बाजारवाद और अत्याधुनिक युद्धक उपकरणों से बदलते वैश्विक परिदृश्य में आपसी वैमनस्य और आतंकवाद से मुक्त एक विकसित और महान राष्ट्र के रुप में अपने देश को स्थापित करने के लिए देशवासियों में उस राष्ट्रीय एकता का होना बेहद जरूरी है, जिसकी शुरुआत लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1947 में मिली हमारी राष्ट्रीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद की थी । आज के दिन, जब हम देश भर में सरदार पटेल के जन्मदिन 31 अक्टूबर को एकता दिवस के रुप में मना रहे हैं तब जरूरी है, कि हम मन-मस्तिष्क और कर्म से अपने राष्ट्रीय दायित्व के प्रति पूर्ण रूपेण ईमानदार और जिम्मेदार होने का संकल्प लें और जो ऐसा करने में असमर्थ हैं उन्हें समर्थ बनाने का हर संभव और कठोर प्रयास भी करें जैसा कुछ रियासतों के साथ सरदार पटेल ने किया था ।