संदीप ठाकुर
आरएसएस और भाजपा के खिलाफ ब्राह्मण समाज से लेकर संत समुदाय तक नाराजगी
देखने को मिल रही है। वजह है आरएसएस चीफ मोहन भागवत का बयान जो उन्होंने
मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान दिया है। रविदास जयंती कार्यक्रम में
भागवत ने कहा कि भगवान एक हैं और उसने ही सब को एक समान ही पैदा किया है।
किसी तरह पर भेदभाव नहीं किया। पंडितों ने श्रेणी बनाई। यानी कि ब्राह्मण
(आम बोलचाल में पंडित) वर्ग ने जाति व्यवस्था और वर्ण का भेद पैदा किया।
इस बयान पर राजनीति शुरू हो गई है। भागवत के बयान के बाद ब्राह्मण समाज
नाराज बताया जा रहा है। संत समुदाय ने भी कड़ा विरोध दर्ज कराया है। अब
ऐसे में अहम सवाल यह उठता है कि क्या अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव
में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को ब्राह्मणों,पुजारियों,साधु संतों
की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है?
आजादी के बाद से जो भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था शुरू हुई, जिसमें
यूपी,बिहार सरीखे राज्यों में ब्राह्मण समुदाय का बोलबाला रहा। लेकिन
1990 के दौर के बाद जब मंडल सियासत तेज हुई तो फिर यह दबदबा कम हाे गया।
इसके पहले तक यूपी में सीएम की कुर्सी पर 6 ब्राह्मण नेता बैठ चुके थे।
लेकिन 1989 के बाद से 33 साल से अधिक का समय गुजर गया और यह वर्ग सत्ता
की कुर्सी से अभी तक दूर है। ब्राह्मणों की आबादी यूपी में भले ही 12
प्रतिशत हो लेकिन यह वर्ग जीत और हार का अंतर पैदा करने का असर रखता है।
खास तौर पर पूर्वांचल और अवध क्षेत्र के 20 से अधिक जिलों में ब्राह्मणों
का राजनीति में अच्छा खासा दखल है। आजादी के बाद ब्राह्मण समाज कांग्रेस
पार्टी के साथ लगा रहा। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के उदय के साथ ही इस
समुदाय का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। 1989 के बाद से उत्तर प्रदेश की
सियासत में जिस किसी भी पार्टी ने ब्राह्मण कार्ड मजबूती से खेला, उसे
सियासी तौर पर बड़ा फायदा हुआ है।
पिछले करीब डेढ़ दशक के दौरान यूपी की राजनीति आंकड़ों पर गौर करें तो
2007 में जब मायावती सत्ता में आईं तो उसमें बसपा से 41 ब्राह्मण विधायक
चुनकर आए थे। दलित और ब्राह्मण के गठजोड़ को बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का
नाम दिया था। 2012 में जब समाजवादी पार्टी ने सरकार बनाई तो सपा के टिकट
पर 21 विधायक जीते, जबकि भारतीय जनता पार्टी को 38 फीसदी ब्राह्मण समुदाय
का वोट मिला। इसके बाद साल 2014 लोकसभा चुनाव में 72 प्रतिशत ब्राह्मणों
ने बीजेपी गठबंधन के पक्ष में वोट किया। सपा और बसपा पर महज पांच-पांच
फीसदी ब्राह्मण से संतोष करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी को 11% ब्राह्मणों
के वोट मिले। उसके बाद 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कुल 58 ब्राह्मण
विधायक जीते, जिनमें से 46 भाजपा से ही थे। 2019 की बात करें तो बीजेपी
को मिलने वाले ब्राह्मणों का वोट प्रतिशत बढ़कर 82 पहुंच गया। बाकी के 18
प्रतिशत में कांग्रेस के अलावा सपा और बसपा गठबंधन को भी वोट मिले। पिछले
साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण वर्ग ने रिकॉर्डतोड़
समर्थन किया और 89% वोट बीजेपी को मिला। अब रामचरितमानस और फिर मोहन
भागवत के बयान के बाद मौजूदा राजनीतिक स्थिति गरमा गई है। ब्राह्मण भाजपा
से खफा हाे गए हैं। बहस शुरू हाे गई है।
अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र
दास ने भागवत के बयान पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने कहा कि मोहन
भागवत ने कभी खुद गीता नहीं पढ़ी होगी और उन्होंने पढ़ी होती तो इस
प्रकार की बात नहीं करते। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने 4 वर्णों का विभाजन
किया है। अगर यह बात उनको नहीं पता है तो गीता पढ़ लें। शंकराचार्य
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सवाल उठाते हुए कहा कि संघ प्रमुख
ने किस शास्त्र के हवाले से जाति व्यवस्था के बारे में यह बात कही, इसको
उन्हें स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने ऐसा कौन सा अनुसंधान कर लिया, जिससे
पता चला कि वर्ण विभाजन पंडितों ने किया है ।