आर.के. सिन्हा
भारत के सात समंदर पार से भारतवंशियों के सफलता की खबरें-कहानियां लगातार भारतीय मीडिया की सुर्खियां बनने लगी हैं। आप गौर करें कि भारतवंशी सिर्फ सियासत में ही झंडे नहीं गाड़ रहे हैं। ये तो हम 1960 के दशक से सुन रहे हैं। तब पहली बार कैरिबियाई टापू देश गुयाना में छेदी जगन राष्ट्राध्यक्ष बने थे। उनके बाद न जाने कितने भारतवंशी गुयाना, त्रिनिडाड, फीजी, मारीशस, सूरीनाम में सर्वोच्च पदों पर पहुंचे। अब ब्रिटेन में भारतवंशी और इंफोसिस कंपनी के फाउंडर चेयरमेन एन.नारायणमूर्ति के दामाद श्रषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए। अब बात सियासत से हटकर बिजनेस की करेंगे। आप जानते हैं कि बीते बीसेक सालों के दौरान इंदिरा नुई (पेप्सी), पराग अग्रवाल ( ट्वीटर), विक्रम पंडित ( सिटी बैंक), सुंदर पिचाई ( गूगल), सत्या नेडाला (माइक्रोसाफ्ट), शांतनु नारायण (एडोब), राजीव सूरी (नोकिया) जैसी प्रख्यात कंपनियों के भारतीय सीईओ बन गए। अब बिल्कुल हाल ही में अजय बांगा को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बीडेन ने वर्ल्ड बैंक का अध्यक्ष मनोनीत कर दिया। बांगा की विश्व स्तर पर पहचान तब बनी थी, जब वे मास्टर कार्ड के सीईओ थे। दरअसल बिजनेस में अजय बांगा या उनके जैसे सैकड़ों भारतीय अमेरिका तथा यूरोप में अपनी इबारत इसलिए लिख रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने देश में बहुत ही स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला। श्रेष्ठ शिक्षा ग्रहण करने के चलते ही लाखों भारतीयों की हर साल तकदीर बदल रही है। भारत में एक से बढ़कर एक विश्व स्तर के शिक्षण संस्थान हैं। इसलिये कम से कम यह तो मत ही कहिये कि हमारे यहाँ की तमाम शिक्षण संस्थायें बकवास हैं I कुछ हो भी सकती हैं, जैसे कहीं भी हो सकती हैं, लेकिन सभी नहीं I
अजय बांगा को ही लें। उनका वर्ल्ड बैंक का प्रमुख बनना तय है। सबको गर्व है कि एक भारतीय मूल के शख्स को इतनी अहम जिम्मेदारी मिलने जा रही है। उन्होंने राजधानी के सेंट स्टीफंस कॉलेज तथा आईआईएम, अहमदाबाद में पढ़ाई की थी। पर जिस संस्था ने सेंट स्टीफंस क़ॉलेज की नींव रखी थी उसे कितने लोग जानते हैं। उसकी बात करना भी जरूरी है। इसका नाम है दिल्ली ब्रदर्स सोसायटी। इससे गांधी जी के सहयोगी और स्वाधीनता सेनानी दीन बंधु सीएफ एंड्रयूज भी जुड़े हुए थे। वे सेंट स्टीफंस कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे। वे दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी से 1914 में मिले थे। उन्हीं के प्रयासों से ही गांधी जी और कस्तूरबा गांधी पहली बार 12 अप्रैल-15 अप्रैल, 1915 को दिल्ली आए थे। वे ब्रिटिश नागरिक होते हुए भी भारत की आजादी के प्रबल पक्षधर थे। इससे अंदाजा लग जाएगा कि सेंट स्टीफंस क़ॉलेज को खोलने वाली संस्था का मूल चरित्र किस तरह का है। उसकी भारत को लेकर निष्ठा निर्विवाद है। बांगा ने इंडियन इंस्टीच्यूट आफ मैनेजमेंट (आईआईएम), अहमदाबाद से भी पढ़ाई की। भारत सरकार, गुजरात सरकार और औद्योगिक क्षेत्रों के सक्रिय सहयोग से एक स्वायत्त निकाय के रूप में 1961 में इसकी स्थापना हुई। चार दशकों में यह भारत के प्रमुख प्रबंधन संस्थान से एक उल्लेखनीय अंतरराष्ट्रीय मैनेजमेंट स्कूल के रूप में विकसित हुआ है। आईआईएम के विद्यार्थी सारी दुनिया में छाए हुए हैं। आईआईएम ने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के साथ प्रारंभिक सहयोग किया था। इस सहयोग ने संस्थान के शिक्षा के दृष्टिकोण को काफी प्रभावित किया। धीरे-धीरे, यह पूर्वी और पश्चिमी मूल्यों के सर्वोत्तम संगम के रूप में उभरा।
आप गौर करें कि भारत या भारत से बाहर जाकर बड़ी कामयाबी हासिल करने वालों में आईआईटी में पढ़े छात्रों की तादाद बहुत अधिक है। एन. नारायणमूर्ति खुद आईआईटी कानपुर से हैं। पराग अग्रवाल पढ़े हैं आईआईटी, मुंबई में। इसने देश-दुनिया को चोटी के सीईओ से लेकर इंजीनियर दिए हैं। आप नए उद्यमियों जैसे सचिन बंसल और बिन्नी बंसल की चर्चा न करें ऐसा तो नहीं हो सकता। इन दोनों ने 2007 में फ्लिपकार्ट की स्थापना की थी। ये दोनों आईआईटी, दिल्ली में रहे। भारत में पहली आईआईटी की स्थापना कोलकाता के पास स्थित खड़गपुर में 1950 में हुई थी। भारत की संसद ने 15 सितंबर 1956 को आईआईटी एक्ट को मंज़ूरी देते हुए इसे “राष्ट्रीय महत्व के संस्थान” घोषित कर दिया। इसी तर्ज़ पर अन्य आईआईटी मुंबई ( 1958), मद्रास ( 1959), कानपुर ( 1959), तथा नई दिल्ली ( 1961) में स्थापित हुंई। फिर गुवाहाटी में आई आई टी की स्थापना हुई। सन 2001 में रुड़की स्थित रुड़की विश्वविद्यालय को भी आईआईटी का दर्जा दिया गया। तो बहुत साफ है कि दशकों पहले भारत से संसार के विभिन्न देशों में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक बन रहे हैं। और अब भारत में ही शिक्षित नौजवान दुनिया के चोटी की कंपनियों के सीईओ बनाए जा रहे हैं। ये इसलिए हो रहा है, क्योंकि इन्हें श्रेष्ठ शिक्षा मिल रही है। पर हमें देश के तमाम कॉलेजों को सेंट स्टीफंस, आईआईटी और आईआईएम के स्तर के बनाने के बारे में विचार करना होगा। इन्हें आधुनिक सुविधाओँ से लैस करना होगा। पर सबसे अहम चुनौती यह रहेगी कि इन में बेहतरीन फैक्ल्टी की नियुक्ति हो। हमें उन अध्यापकों को प्रोत्साहित करना होगा जो अपने शिष्यों के प्रति समर्पण का भाव रखते हैं। अध्यापकों को अपने को लगातार अपने विषय की आधुनिकतम जानकारी से अपडेट रखना होगा। आमतौर पर हमारे यहां बहुत से अध्यापक एक बार स्थायी पर लगने के बाद कभी कुछ नया लिखते-पढ़ते नहीं हैं। हमें अपने स्कूलों को भी निरंतर सुधार करते रहना होगा संतोष की बात कि दिल्ली ब्रदर्स सोसायटी अब दिल्ली-सोनीपत सीमा पर एक स्कूल स्थापित करने जा रही है। यानी कॉलेज खोलने के बाद अब स्कूल खोला जा रहा है। इसका भी लक्ष्य सर्वश्रेष्ठ शिक्षा ही देना होगा जहां से जैसे मेधावी छात्र पढ़कर बेहतर नागरिक बनें। जिस संस्था का संबंध दीन बंधु सीएफ एंड्रयूज से है, वह तो श्रेष्ठ स्कूल ही खोलेगी। दरअसल हमारे यहां कई धूर्त तत्वों ने स्कूलों को कमाई का धंधा बनाया हुआ है। उनको कसने की जरूरत है। इनका शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। पर ये जुगाड़ करके स्कूलों के लिए जमीन हथियाने में सफल रहे। उसके बाद ये लूटपाट कर रहे हैं। इसी तरह से दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार ने स्कूलों में सुधार के नाम पर राजधानी वालों को बहुत ठगा है। हां, कुछ स्कूलों की इमारतें नई अवश्य बन गई हैं। इसके अलावा इनमें कहीं कोई सुधार नहीं हुआ। ये स्थिति बदलनी होगी।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)