विनोद तकियावाला
आदि काल से ही हमारे यहाँ गुरु शिष्य की परम्परा है।इसी श्रंखला मे अपने जीवन के कुछ स्वर्णीम पल मुझे अपने सद्गुरू देव – माँ के सात्धिय में बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।यहाँ पर उल्लेख करना जरूरी है कि जब गुरु के रूप स्वयं सद्गुरु ही आप के समक्ष आपका हाथ थाम लेता है,तो बात ही कुछ अलग होती है।मै अपने को बड भागी मानता हुँ कि मुझे सद्गुरू के रूप में महात्मा सुशील कुमार व ममतामयी ‘करूणा की जीती जागती मुर्ति माँ विजया जी मिली है।लेकिन श्रृष्टि के रचियता,पालन कर्त्ता के संदर्भ मे कुछ कहने या उनके संदर्भ मे कुछ लिपिबद्ध करना एक अति कठिन कार्य है,ठीक वैसे जैसे सम्पूर्ण विश्व को,अपने दिव्य प्रकाश से प्रकाशित करने वाले भुवन भास्कर को माचिस की एक छोटी सी प्रज्वलित तीली से प्रकाश दिखाने की तुच्छकोशिश है।आज मै अपने आप को असहाय पा रहा हुँ। धन्य वह धरा जहाँ पति पावनी गंगा सदियों से निरंतर र्निविघ्न बह रही है। इस पवित्र को अनेक संत महापुरुषों नें विभिन्न युग में स्वयं अवतरित हो कर जगत का कल्याण कराया है।इसी क्रम में आज आप के समक्ष ऐसे महा पुरुष की चर्चा करने जा रहा हूँ ‘जिन्होंने संपूर्ण मानव जाति को कल्याण हेतू एक सहज सरल सुगम पथ ना केवल निमार्ण किया बन्कि सम्पूर्ण मानव जाति को त्रितापों से त्राण दिलाने हेतु, ‘इस्सयोग’ साधना पथ विना किसी भेद भाव आम आदमी सौगात स्वरूप उपलब्ध कराया है। एक दिव्य और चमत्कारिक शक्ति और औषधि देने वाले कोई साधारण संत नही बल्कि इस युग मे सद्गुरुदेव महात्मा सुशील कुमार जी के रूप अवतरित हुए जुलाई माह का आगमन हो गया है।यह माह हम इस्सयोगी भाई – बहन के लिए विशेष महत्व का मास है।यह परम चैत्यन का मास है।क्योकि 13 जुलाई का यानि आध्यात्मिक क्रान्ति के प्रेण्यता का महात्मा सुशील कुमार जी का अवतरण दिवस है !आप का जन्म बिहार प्रांत के भोजपुर ज़िला निवासी ब्रहमलीन महापुरुष श्री श्रीशचंद्र शास्त्री एवं कर्पूर कमला के एक मात्र पुत्र के रूप में 13जुलाई 1938 को हुआ था। इन्होंने 1961 में बी एस सी इंजीनियरिंग (सिविल) तथा 1971में ‘बैचलर औफ़ लौ’ की उपाधि प्राप्त की।आप बिहार सरकार के पथ निर्माण विभाग में विभागाध्यक्ष के पद से1998में सेवा निवृत हुए।सर्वोतकृष्ट कार्यों एवं उपलब्धियों के लिए, आपको ‘इंदिरा गाँधी प्रिय दर्शिनी सम्मान 1997’ से विभूषित भी किया गया था।महात्मा जी को अध्यात्म विरासत में मिला था।उनके पिता प्रातःस्मरणीय शास्त्री जी चारों वेदों के ज्ञाता और भाष्य-कार थे। वे कठोर कर्म-कांडी और सपत्नी पक्के आर्य समाजी थे।आर्य समाज के आचार्य के रूप में, उनकी समाज में बड़ी प्रतिष्ठा थी तथा वे भारत सरकार की ओर से विदेशों में (थाईलैंड, श्रीलंका आदि देशों में )संस्कृत एवं वेदों की शिक्षा देने हेतु सादर भेजे जाते थे।शास्त्री जी ने गर्भाधान से लेकर महात्मा जी के आगे के सभी संस्कार वेदोक्त विधि से कराए थे।उनकी माता पूजनीयाँ कर्पूर कमला जी,सामाजिक सरोकारों से जुड़ीं विदुषी और तेजस्वीनी महिला थीं।अस्तु बाल्य काल से हीं,महात्मा जी में आध्यात्मिक संस्कार पड़ने लगे थे। शिशु पर वैदिक संस्कार पड़े, इस हेतु,पिताश्री किंचित लोभ देकर गायत्री मंत्र आदि रटाते थे। शास्त्री जी ने उन्हें कह रखा था कि,जब’गायत्री-मंत्र’ का पाठ किया जाता है, तो सभी इच्छित फल प्राप्त होते हैं।उन्हें किसी वस्तु की इच्छा होती थी तो उनसे यह कहा जाता था कि, “आँखों को बंद कर ‘गायत्री मंत्र’ का जप करो, तुम्हें वह अवश्य प्राप्त होगा।” महात्मा जी तदनुसार करते थे, फिर उनके हाथों में वह वस्तु पड़ी मिलती।(इच्छित वस्तु पिताश्री तैयार रखा करते थे।)।वयस्क होने पर महात्मा जी में स्वतंत्र विचार आने लगे तथा उनका आध्यात्मिक- चिंतन बदलने और परिष्कृत होने लगा। वय और अनुभूतियों के बढ़ने के साथ-साथ ,‘परम-तत्त्व’ की खोज की अभिलाषा उत्कंठा बनती गयी और उन्होंने जीवन के कर्मों का निबटारा करते हुए ‘सत्य की खोज’ जारी रखी।जैसा कि पूर्व में निवेदन किया जा चुका है कि, महात्मा जी ने सिविल अभियंत्रण में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी, सो अपनी लौकिक वृति 1963 में बिहार सरकार के लोक निर्माण विभाग में अवर प्रमंडल पदाधिकारी के पद से प्रारम्भ की। 1963से 65तक वे बिहारशरीफ़ में रहे तथा1966 से69 तक राँची में।तब बिहार का विभाजन नही हुआ था।पटना-हाजीपुर को जोड़ने के लिए बनाए जा रहे गंगा सेतु (महात्मा गाँधी सेतु) के निर्माण में उन्होंने निर्माता-कंपनी ‘गैमन इंडिया’ के साथ अपना विशेष योगदान 1970-71 में दिया था।वर्ष 1972 से 74तक बोकारो में एच एस सी एल में ज़ोनल इंजीनियर के पद पर उन्होंने कार्य किया और इस काल का उल्लेखनीय पक्ष यह था कि आप हीं के नेतृत्व में अत्यंत महत्वाकांक्षी ‘कोल्ड रोलिंग मिल की कमीशनीग’ संपन्न हुई थी। इसके बाद से,1979 तक आपने राजधानी (पटना)के विभिन्न कार्य-प्रक्षेत्रों में,अपना उल्लेखनीय योगदान दिया।इसके बाद आपको,आपके कुशल प्रशासनिक और प्रभावकारी व्यक्तित्व के महत्त्व को रेखांकित करते हुए आपको नक्सल प्रभावित उन क्षेत्रों में विशेष कार्यों के लिए भेजा गया,जहाँ से दूसरे अधिकारी और विशेषज्ञ परहेज़ रखना चाहते थे।लेकिन आप भला किससे भय रखते!आपने सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर अपने कर्तव्य पूरे किए तथा इस दौरान अनेक स्थानों पर हरिजन-छात्रावास एवं शैक्षणिक संस्थानों के निर्माण सहित विभिन्न विकास कार्यों को पूरा किया। 1998 में अपने विभाग के अध्यक्ष पद से सेवा निवृत होने से पहले आपने पटना क्षेत्रीय प्राधिकार के ट्रिब्यूनल में अपनी सेवाएँ दी।यह प्रमाणित हो कि महात्मा जी, जो कहते थे, वह अपने जीवन में पालन भी करते थे।उन्होंने संसार को पूरा जिया, और वहीं पूरी तरह विरक्त भी रहे। आध्यात्मिक धारा में बहते हुए भी,संसार छोड़ने की बात कभी नहीं की।वे कहा करते थे कि, सत्य की खोज और तत्त्व-ज्ञान के लिए संसार को छोड़ना अनावश्यक है। सच्चा मार्ग और सच्चा गुरु पाकर गृहस्थ जीवन में हीं आध्यात्मिक उपलब्धियाँ पायी जा सकती है। गृहस्थ-आश्रम साधना का श्रेष्ठ आश्रम है।इसी तरह उन्होंने, समय आने पर विवाह भी किया। वर्ष 1963 के 18मई को जब आपका विवाह संपन्न हुआ,उस समय आपकी नव-परिणीता आदरणीया विजया जी (माँ विजया जी)अभी-अभी इंटर की परीक्षा दी थीं। भविष्य में दिव्य शक्तियों के स्वामी होने वाले सुंदर, सफल और योग्य पुरुष के लिए, निश्चय हीं, सुयोग्य कन्या होनी चाहिए। कहते हैं- जोड़ियाँ ऊपर बनायी जाती है। औरों के बारे में तो नहीं कह सकते, किंतु आपकी जोड़ी ‘शिव-पार्वती’ की जोड़ी सिद्ध हुई। माताजी बाल्य-काल से हीं आध्यात्मिक रुझान रखती थी।अस्तु दोनों के संगम की पृष्ठ-भूमि पहले से तैयार थी।सो नैसर्गिक रूप से दोनों ही अध्यात्म के पथ पर भी साथ-साथ बढ़े।ईश्वर के प्रति उनकी विपुल भक्ति ने निश्चय हीं प्रभु को अपनी ओर खींचा था। उन्हें बाल्य-काल से हीं अलौकिक अनुभूतियाँ होती थी।साधना के मार्ग में एक पथ-प्रदर्शक की आवश्यकता पड़ती है।एक महात्मा ने दोनों को दीक्षा भी दी तथा साधना का मार्ग बी बताया। किंतु कुछ हीं कालों में आपने यह अनुभव किया कि,यदा-कदा गुरु रूप में कोई ऐसा विलक्षण व्यक्तित्व आता है,और आप दोनों को अलौकिक स्थितियों में ले जाता है,जैसा कि,आपके लौकिक-गुरु नहीं कर सकते थे। बाद में आपने अनुभूत किया कि, लौकिक गुरु के रूप में स्वयं सद्ग़ुरु भगवान शंकर आकर साधना का मार्ग प्रशस्त करते चलते थे।कालांतर में,भगवान शिव स्वयं प्रकट होने लगे और आपने अध्यात्म की वह ऊँचाई पायी, जिसके लिए युगों-युगों तक,जनमों-जनम तक प्राणी भटकता फिरता है।महात्मा जी तथा माताजी ने केवल स्वयं हीं उस परम तत्त्व को नहीं प्राप्त किया,बल्कि उन्होंने जिज्ञासु पात्रों एवं जन-साधारण को भी प्रभु से सीधे जुड़ने का‘इस्सयोग’ के रूप में एक महान और सरल मार्ग प्रशस्त किया।इस साधना-पद्धति का आश्रय लेकर सामान्य साधक भी,सहज में हीं वह सहजावस्था प्राप्त करने लगता है,जिसके लिए बड़े-बड़े संत अपना जीवन खपाते रहे हैं। आप नें ‘इस्सयोग’ को ‘ न भूतों न भविष्यतिः आध्यात्मिक क्रांति’ इस्सयोग की एक मिनट की लयावस्था साधना 6 वर्षों के बाह्य पुजा पाठ के बराबर फत दायी होती है।आप ने घोषणा की इस्सयोग एक दिन दो तिहाई भु मण्डल पर छायेगा।इस्सयोग के समर्पित साधक साधिकायें हम घर घर पहुँचा चें कहा।इस्सयोग के संस्थापक व आध्यात्मिक कान्ति के जनक महात्मा सुशील कुमार कुमार जी के अवतरण महोत्सव भारत के विभिन्न राज्यों के अलावे विदेशों से बडी संख्या में श्रद्धालु जन अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए नई दिल्ली के पर्यावरण काम्पलेक्स स्थित शक्ति पिण्ड माँ मनोकामना देवी मन्दिर के परिसर में आ रहे है। आज ही के दिन माँ मनोकामना देवी मंदिर की स्थाई स्थापना दिवस भी है। खबरी लाल भी अपने सद्गगुरुदेव -माँ जी के युगल श्री चरणो में अपनी श्रद्धा समर्पण की अश्रु पूर्ण श्रद्वाजंली अर्पित करते है।