बलविन्दर बालम
ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत मौका है। कुदरत ने चौरासी लाख जून की जिंदगी को एक ख़ूबसूरत मौका केवल तो केवल एक वार ही देना है। दोबारा नहीं, बिल्कुल दोबारा नहीं। इस को हर हाल व्यर्थ में जाया नहीं करना चाहिए। इस ख़ूबसूरत मौके के बेहतरीन कीमती तोहफों की अनेकानेक ही दूख सुख की शाखाएं फलती फूलती रहती हैं तथा समय के साथ ही समाप्त होती रहती हैं। दुख सुख का सुमेल ही इस को चलाने के लिए निश्चित है क्योंकि इस शरीर अंदर अनेक अवस्थायें आती हैं। जैसे बचपन, जवानी, प्रौढ़ता, बुढ़ापा यह शारीरक क्रियाएं निश्चित हैं। अगर आप को जो मौके मिलते हैं जिन्हों में ख़ूबसूरती के अर्थ होते हैं उनको अपनाने के लिए ज़रूरत, मेहनत, लग्न, संघर्ष, समतोल सोच तथा उस परविरदिगार का आर्शीवाद होना भी अनिवार्य है। कुछ लोग इन मौकों को पाने के लिए निर्भीक, तथा संवेदनशील होकर पहल कर लेते हैं तथा कुछ लोग शर्मिंदगी या भय या अप्राप्तियों की वजह से मौका छोड़ देते हैं। जिस पर उनको सारी उम्र पछतावा रहता है क्योंकि मौकों में से प्राप्तियां पाना उम्र के तकाज़े पर निर्भर करता है। ढलती उम्र आप का साथ नहीं दे सकती यह कुदरत का नियम (नीयम) है क्योंकि समय बहुत बलवान है यह किसी के हाथ नहीं आता जो बीत गया वह वापस नहीं आ सकता, यह कुदरत की सच्चाई है। जिस पर कोई विज्ञान भी रोक नहीं लगा सकता। कुदरत के पास जो कुछ भी है मनुष्य उसे बदल नहीं सकता। उस को ख़ूबसूरत बनाने के लिए बढ़ौतरी अवश्य कर सकता है। इस मौके में स्वर्ग भी है और नरक भी। पतझड़ भी और बसंत भी है। उन्नति की गिरावट भी, शक्ति भक्ति और दुर्लबता भी है। उदासीनता तथा अशक्ति भी। सूर्य, चांद, सितारे, धरती इस मौके के संपूर्ण गवाह हैं। सूर्य चांद सितारे तथा धरती मौका नहीं दृश्य रूप में चिरंजीव हैं जो कभी मरते नहीं नष्ट नहीं होते परन्तु ज़िन्दगी एक मौका पा कर अदृश्य हो जाती है। प्रत्येक किस्म का साहित्य तथा प्रत्येक किस्म का विज्ञान (उपलब्धियां) इस मौके को, समय को कैद कर लेता है। साहित्य ही समय को, मौके को कैद कर लेता है। साहित्य ही समय को, मौके को कैद कर सकता है। शब्दों की मुट्ठि में बंद कर सता है तथा कर लेता है। विज्ञानक अविष्कार तथा खोज समय को मुट्ठी में बंद कर लते हैं परन्तु मुनष्य को ज़िन्दगी का मौका केवल एक बार ही मिलता है। इसके पीछे लग्न, शक्ति, भक्ति, संघर्ष, उधम, कर्मठता, धैर्य, निश्चय, सहृदयता, साकारात्मक सोच, तथा विवेकशीलता की आवश्यकता होती है। कई लोग मौके ढूंढ लेते हैं तथा कई लोगों को मौका ढूंढना नहीं आता। मौके की इबारत, ईबादत, मिलना कुदरत के ऊपर भी निर्भर करता है।ख़ूबसूरत मंज़िल हासिल करनी हो तो नींद नहीं आती, मेहनत मज़बूर करती है, मौका मचलता है। मंज़िल हासिल करनी हो तो हृदय में एक कंकर पारे की तरह चुभता रहता है। इस ख़ूबसूरत मौके में बहुत कुछ आप के ऊपर निर्भर करता है तथा बहुत कुछ कुदरत के ऊपर भी निर्भर करता है। हालात तथा घटनाओं की परिस्थियां भी मौके पर निर्भर करती हैं। संभल कर उठना तथा फिर उसी रफ्तार के कदमों में चलना, जिंदगी को भ्व्य बनाने के अर्थ मिलते हैं। कई बार मौका आपकी दहलीज पर खुद व खुद ही आ जाता है परंतु आप अपनी नालायकी आलस्य का भय या ना समझ या जुर्रत न होने की बजह से छोड़ देते हैं अलवत्ता इसकी अप्राप्ति सारी उम्र पैर में धंसे नोकदार तीखे कांटे की चीज़ की भांति चुभती रहती है। जिसमें लहू तो नहीं बहता परन्तु एक दर्द भी टीस चलती रहती है। दुनियां में जितने भी महान प्राप्तियों युक्त व्यक्ति हुए है उन्होने मौके को, समय का पूरा पूरा फायदा लेकर उच्च दर्जे के कीर्तिमान स्थापित किए तथा बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने मजज़बूरियां, तंगदस्ती, लाचारियों की वजह से ख़ूबसूरत मौके छोड़ दिए या छोड़ने पड़े। उन्होने मौके के रास्तों को अपनाया ही नहीं बल्कि वे मंज़िल से भी अधूरे रह गए यह नहीं कि उनके पास उच्चकोटि का दिमाग़ या विवेकशीलता नहीं थी यां उच्च विद्या नहीं थी बल्कि उन्होने केवल तो केवल जुर्रत तथा दलेरी का प्रयोग नहीं किया। सपना तथा भय मनुष्य को कमज़ोर बना देता है। जिस व्यक्ति में साकारात्मक भय है वह आगे बढ़ता जाएगा मगर जिसमें नाकारात्मक भय है वह बंदा कभी भी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच सकता क्यांेकि नाकारात्मक भय में सामना करने की जुर्रत नहीं होती। मंज़िल दिखती है परन्तु उसके कंटीले राहों से घबरा कर आगे नहीं जाना चाहते मगर जो व्यक्ति इस नाकारात्मक भय से सुचेत हो कर साकारात्मक भय अपना लेते हैं, भय का सदउपयोग करते हैं वह कंटीले राहों में कांटे एक तरफ करके अपना रास्ता बना लेते हैं क्योंकि कांटे एक तरफ करने के लिए बुद्धि, दिमाग, समय, निर्भकिता चाहिए। हाथ लहू लूहान भी हो सकते हैं परन्तु लोग मंज़िल पा लेते हैं। इस में समय अनिवार्य बांधना पड़ता है। जिस से सुख की, प्राप्तियों की फुनगियां फूटती हैं जिनके अंकुर से अनेकानेक बीज पैदा होते हैं।ज़िन्दगी का मौका केवल एक बार ही मिलता है। आप उम्र के तकाज़े में जो बन गए सो बन गए। कई मनुष्य प्राप्तियों की तलाश में रहते हैं तथा प्रौढ़ उम्र में जा कर समय को बांध लेते हैं अपनी समतल सोच से, सीखने और मानने की भावना से आगे बढ़ना शुरू करते हैं सीख सीख के, पढ़-पढ़ कर, उस्तादों की मदद से मंज़िल तक पहुंचते हैं। परन्तु प्रौढ़ उम्र में जा कर मंज़िल को पाना आसान नहीं होता। कोई विरला मनुष्य ही प्रौढ़ उम्र में उन्नति की मंज़िलें छूह सकता है। या यह कह लिया जाए कि समय उन के हक में तथा वह समय के हक में किस्मत का सहारा ले लेते है। इस मौके के अमीरी तथा गरीबी को दो पहलू है जिनके दुख सुख साझा होता है। उम्र के तकाज़े साझा होते हैं। कई व्यक्ति गरीबी से उठकर बुलंदी प्रतिष्ठा तथा उच्च् पद को हासिल कर लेते हैं। परन्तु कई अमीर व्यक्ति हालातों तथा घटनाआंे की आंधी मंे बरबाद होकर गरीबी की दल दल में धंस गए। पर सब मौके तथा समय का खेल है। ज़िन्दगी बहुत छोटी है जैसे सुबह सबेरे ख़ूबसूरत फूल की पत्ती की नोक के ऊपर खडी शबनम। आप क्या बनना चाहते है? बन सकते हो।परन्तु आप को अच्छी सच्ची दहृदयता वाली रहस्यी, शिवेनशीलता तथा उधम की ज़रूरत है। जिस तरह एक बीज बोने के बाद फूटते पौधे की माटी की, सूर्य की, पानी की, खाद्य इत्यादि की ज़रूरत होती है। प्रेरणा तथा उत्साह उन्न्ति का मूल स्त्रोत है। अगर यह दोनों ईमानदारी वाले मिल जाएं तो सुनिश्चित सर्वोत्तम कीर्तिमान पैदा किए जा सकते हैं। मां से लेकर भगवान तक प्रेरणा तथा उत्साह बल पूर्वक मिले तो मौके में बुलंदी आ जाती है।दोस्तों खुशी परमात्मा नहीं देता खुशी आपको ढूंढनी पड़ती है। घर से, बाहर से, गगन करती, दरिया, मानव, ईर्द-गिर्द से, रिश्तों का साझ से, कुदरती वातावरण सृजने से, प्यार से संगीत से इत्यादि से। परमात्मा का तो केवल आर्शीवाद सब के लिए होता है। यह ख़ूबसूरत तन ही आप का भगवान है, आप का पुत्र है, आप का मित्र है और कोई नहीं। सुबह सबेरे उठें शीशे (दर्पण) के सामने खड़े होकर इस तन को मन की गहराई से देखें ओर सोचें कि यह मौका केवल एक बार ही मिला है। फिर इस तन को पुत्र की भांति प्यार करें, लाडियां करें, इस से बातें करें, दैनिक कार्यों की शुरूआत इससे करें, इस से पूछें कि तूने क्या करना है? क्या खाना है? क्या पहनना है? इत्यादि यह ही आप का असली रब्ब, (भगवान) है, इससे ही समस्त मौके मिलते हैं। यह ही उन्नती सूत्रकार हैं। इस को बस में कर लिया तो उच्च दर्ज की सफलता कीर्तिशा आप के पैर चूमेंगी। मूल्यों का विकास परिवार ही होता है यह तो स्पष्ट है कि मूल्य द्वारा सब प्रकार की वस्तुएं, भावनाएं, विचार, गुण, किृया, पदार्थ, व्यक्ति समूह तथा तथ्यों आदि का मुल्यांकन किया जाता है। जीवन संयोगों का दूसरा नाम है हमारे जन्म तथा मृत्यु के बीच के काल समय ही जीवन कहलाता है जो कि परमात्मा द्वारा दिया गया वरदान है। उम्र को पाना एक पहल है तथा उस को जीना अलग पहलू है। उम्र बढ़ रही होती है परन्तु ज़िन्दगी घट रही होती है। उम्र तबतक बढ़ती है जब तक जीवन की दोड़ खत्म नहीं होती।जीवन एक प्रक्रिया है पदार्थ नहीं, जीवन का मतलब अस्तित्व की उस अवस्था से है जिसमें वस्तु या प्राणी के अन्दर चेष्टा, उन्नति, तथा बुद्धि के लक्षण दिखाई दें। ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत मौका है जो संवेदनशीलता की क्रियाओं के अस्तित्व को समझने की तलाश में सांसों की आखिरी डोर तक दम भरता हुआ अर्थी तक साथ देता है। ज़िन्दगी इतनी लम्बी नहीं कि हजार वर्ष जीना। ज़िन्दगी बहुत छोटी है। काम करने की उम्र तंदरूस्ती के साथ बिमारी रहित रह कर बंदा 80-85 वर्ष तक काम कर सकता है अलबत्ता भारी भरकम तथा तकलीफ रहित कार्य हो तो फिर जा कर सही नेतृत्व कर सकता है क्योंकि 80 वर्ष के बाद बहुत कम लोगों के पास ऊर्जा, सोच बचती है। दोस्तों ज़िन्दगी बहुत छोटी है। एक ख़ूबसूरत मौका है। इसको व्यर्थ ना जानें दें।