तनवीर जाफ़री
जिस साम्प्रदायिक व संकीर्ण विचारधारा ने ब्रिटिश दौर-ए-हुकूमत में अंग्रेज़ों की ख़ुशामद परस्ती में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। जिनके ‘आदर्श महापुरुष’ अंग्रेज़ों से मुआफ़ी मांगते फिरे यहां तक कि जिस विभाजनकारी विचारधारा के लोग राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की हत्या में शामिल रहे, उसी विचारधारा के नेताओं ने विगत एक दशक से देश को ‘कांग्रेस मुक्त’ बनाने का एक महाअभियान छेड़ रखा है। गांधी की हत्या को सही ठहराने,गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे को महिमामण्डित करने , देश के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू की चरित्र हत्या करने व उन्हें अपमानित करने, महात्मा गाँधी व भगत सिंह के तथा पंडित नेहरू व सुभाष चंद्र बोस एवं सरदार बल्लभ भाई पटेल व बाबा साहब भीम राव अंबेडकर के मध्य मतभेद के मनगढंत क़िस्से गढ़ने व इसे प्रचारित करने में इस दक्षिणपंथी विचारधारा ने अपनी पूरी ताक़त झोंक रखी है। विश्व में गांधी-नेहरू के क़द को छोटा करने के मक़सद से ही कांग्रेस के ही नेता सरदार पटेल की 182 मीटर की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा “स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी ” गुजरात राज्य की नर्मदा घाटी के केवड़िया इलाक़े में स्थापित की गयी। इतना ही नहीं बल्कि कांग्रेस के वर्तमान शीर्ष नेता सोनिया गांधी व राहुल गांधी को भी अपमानित करने व इन्हें भयभीत करने व विदेशी व बौना साबित करने तक के सभी प्रयास पूरी क्षमता के साथ किये जा रहे हैं। और इन दिनों कांग्रेस के विरुद्ध पार्टी के राम विरोधी,हिन्दू विरोधी और सनातन विरोधी होने का सबसे बड़ा प्रचार हथकंडा इन्हीं दक्षिणपंथियों द्वारा यह इस्तेमाल किया जा रहा है।
निश्चित रूप से गत एक दशक से भी लंबे समय से चलाई जा रही इस कांग्रेस विरोधी मुहिम का लाभ भी दक्षिणपंथियों को काफ़ी हद तक मिला। यहां तक कि दर्जनों ऐसे बड़े कांग्रेस नेता इसी ना उम्मीदी,सत्ता मोह व भय के चलते दक्षिणपंथी ख़ेमे में जा मिले जिन्हें देश ‘कांग्रेस मुक्त’ होते दिखाई देने लगा था। परन्तु शायद ही कभी किसी ने सोचा हो कि देश के सर्व सुविधा संपन्न एवं सर्वोच्च राजनैतिक घराने में परवरिश पाने वाले राहुल गांधी 7 सितंबर, 2022 को कन्याकुमारी से कश्मीर तक की लगभग 3,6oo o किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा पर पैदल ही निकल पड़ेंगे? और तेज़ धुप बारिश व कड़ाके की ठण्ड का सामना करते हुये देश के 12 राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुज़रने वाली 136 दिवसीय यह भारत जोड़ो यात्रा एक जन आंदोलन का रूप ले लेगी? ख़ासकर उस वर्तमान दौर में जबकि देश का मीडिया सत्ता के समक्ष षाष्टांग हो चुका हो। इस यात्रा का उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की कथित विभाजनकारी राजनीति के ख़िलाफ़ देश को एकजुट करना था। राहुल गांधी ने अपनी इस यात्रा को केंद्र की मूल्य वृद्धि, बेरोज़गारी, राजनीतिक केंद्रीकरण और विशेष रूप से “भय, कट्टरता” की राजनीति और “नफ़रत” के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए एक सशक्त माध्यम बनाया। इस यात्रा में कांग्रेस के नेताओं के अतिरिक्त भी दक्षिणपंथी नीतियों का विरोध करने वाले तमान प्रमुख लोग जगह जगह शामिल हुये। इसी यात्रा में राहुल गांधी ने एक प्रचलित वाक्य कांग्रेस को दिया – हम नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान खोल रहे हैं।
इसी यात्रा के बाद कांग्रेस के बढ़ते क़द की वजह से ही विपक्षी गठबंधन I. N. D. I. A अस्तित्व में आया जिसने सत्ता की नींदें उड़ा कर रख दीं। अब अपनी ज़मीन खिसकने के डर से सत्ता द्वारा प्रवर्तन निदेशालय,केंद्रीय जांच ब्यूरो व आयकर विभाग जैसी निष्पक्ष समझी जाने वाली सरकारी संस्थाओं का कथित रूप से दुरूपयोग किया जा रहा है। और इनके कथित ‘दुरूपयोग ‘ के बाद देश को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि कांग्रेस सहित पूरा का पूरा विपक्ष ही न केवल राम विरोधी है,हिन्दू विरोधी और सनातन विरोधी है बल्कि भ्रष्ट भी है। जबकि अपनी ‘परसाई’ का ढिंढोरा पीटने वाली इसी भाजपा में कांग्रेस सहित विभिन्न दलों के ऐसे अनेक नेता शामिल हो चुके हैं जो भ्रष्टाचार के आरोपी थे और ई डी व सी बी आई की संभावित कार्रवाई से भयभीत थे। इन विषम एवं विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस का पुनः अपने प्राचीन तेवरों में आना किसी राजनैतिक चमत्कार से कम नहीं।
भाजपा के साथ साथ I. N. D. I. A गठबंधन के अखिलेश यादव,ममता बनर्जी व अरविंद केजरीवाल जैसे नेता भले ही कांग्रेस की बढ़ती ताक़त से होने दूरगामी राजनैतिक स्वार्थवश चिंतित क्यों न हों परन्तु कांग्रेस ने I. N. D. I. A गठबंधन की गतिविधियों को राजस्थान,छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश व तेलंगाना जैसे राज्यों में हो रहे ताज़ातरीन विधान सभा चुनावों तक फ़िलहाल स्थगित रखने का जो सन्देश दिया है उससे स्पष्ट है कि कांग्रेस अब इन राज्यों में आने वाले परिणामों के बाद पार्टी अपने I. N. D. I. A सहयोगियों के साथ सीट बंटवारे पर चर्चा शुरू करेगी। प्राप्त समाचारों के अनुसार उत्तर प्रदेश में लगभग हाशिये पर जा चुकी कांग्रेस एक बड़ा खेल खेलने की तैयारी में है। संजय गांधी के सुपुत्र एवं भाजपा सांसद वरुण गांधी से गत 7 नवम्बर को केदारनाथ मंदिर के प्रांगण में मंदिर के पुजारी के घर एकांत में हुई संक्षिप्त गुप्त वार्ता के बाद इस चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है कि वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। यदि वरुण कांग्रेस में शामिल होते हैं तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अपेक्षकृत काफ़ी मज़बूत हो सकती है। हालांकि भाजपा ने शुरूआती दौर में वरुण गाँधी द्वारा दिये गये उनके कुछ विवादित बयानों के बाद उन्हें हिन्दू युवा नेता के रूप में प्रचारित करने की कोशिश ज़रूर की थी। परंतु वरुण भाजपा की उस उम्मीद पर इसलिये खरे नहीं उतर सके क्योंकि उनके डी एन में ही नेहरू गांधी परिवार का धर्मनिरपेक्षता का रक्त प्रवाहित हो रहा है न कि संघ की विचारधारा का। वैसे भी नेहरू-गांधी परिवार को इस हद तक अपमानित करने के बाद वरुण गांधी का भाजपा में और देर तक बने रहना भी स्वाभाविक प्रतीत नहीं होता।
इसी तरह कांग्रेस पार्टी,तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को लेकर भी कोई चौंकाने वाला क़दम उठा सकती है। ग़ौर तलब है कि इस समय उद्योगपति गौतम अडानी की कथित आर्थिक अनियमिताओं को लेकर जितना राहुल गांधी मुखरित हैं उतना किसी अन्य घटक का कोई नेता नहीं। हाँ दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल और आप सांसद संजय सिंह के बाद सांसद महुआ मोइत्रा ने ज़रूर इस विषय पर अपनी आवाज़ बुलंद की। इसके बाद राहुल की संसद की सदस्य्ता समाप्त करने से लेकर संजय सिंह का जेल जाना,अरविन्द केजरीवाल पर जेल जाने की तलवार लटकने से लेकर महुआ मोइत्रा की सांसदी छीनने के प्रयास तक,सब कुछ देश देख रहा है। साथ ही यह भी सर्वविदित है कि महुआ मोइत्रा के समर्थन में उनके साथ खड़े होने की जो भूमिका उनकी पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को अदा करनी चाहिये वह भूमिका राहुल गांधी ने अदा की। ख़बरों केअनुसार अडानी पर ममता की ख़ामोशी उनकी मजबूरी है क्योंकि अडानी बंगाल में विश्व के दूसरे सबसे बड़े कोल ब्लॉक को हासिल करने की कोशिश में हैं।वीरभूम ज़िले का देउचा पचामी कोयला ब्लॉक विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोल ब्लॉक है। इसे लेकर ममता के साथ अडानी व उनके पुत्र की भी मुलाक़ात होने की ख़बर आई थी। इसीलिये तृणमूल कांग्रोस न तो महुआ के समर्थन में सामने आई न ही उनका विरोध किया जबकि राहुल गांधी इस मुद्दे पर पूरी तरह महुआ मोइत्रा के साथ खड़े दिखाई दिये। तभी से इस चर्चा ने भी ज़ोर पकड़ लिया है कि क्या महुआ मोइत्रा कांग्रेस में शामिल होकर बंगाल में दशकों बाद कांग्रेस को एक आक्रामक व जुझारू नेता मिलने की संभावना है ? यदि ऐसा हुआ तो बंगाल में भी कांग्रेस की स्थिति पहले से काफ़ी बेहतर हो सकती है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की जीत के बाद राजस्थान,छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश व तेलंगाना आदि राज्यों में हो रहे ताज़ातरीन विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के बुलंद हौसले और संगठनात्मक मज़बूती के लिये उत्तर प्रदेश से लेकर बंगाल तक कांग्रेस द्वारा रचे जा रहे चक्रव्यूह से यह सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या कांग्रेस धमाकेदार वापसी की इबारत लिखने जा रही है ?