पिटाई करने वाले सांसदों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कब होगी ?

  • कानून बनाने वालों ने संसद में ही कानून हाथ में लिया

इंद्र वशिष्ठ

संसद की सुरक्षा में हुई गंभीर चूक ने दिल्ली पुलिस के सुरक्षा संबंधित दावों की तो धज्जियां उड़ा ही दी। अब देखना है कि पुलिस इस मामले में तफ्तीश के मूल सिद्धांत/ प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन करती हैं या नहीं।

दो युवकों ने लोकसभा में दर्शक दीर्घा से सदन में कूद कर और रंगीन गैस का छिड़काव कर धुआं फैला कर सनसनी फैला दी। कुछ सांसदों ने दोनों युवकों को दबोचा और उनकी जमकर पिटाई करने के बाद सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर दिया गया।

तानाशाही बंद करो-
इन युवकों ने सदन में तानाशाही नहीं चलने देंगे, काले कानून खत्म करो, लोकतंत्र बचाओ आदि नारे लगाए। कुछ सांसद जब इन निहत्थे युवकों को पीट रहे थे, तब इन युवकों ने कहा कि हम देश प्रेमी हैं, हमें मारो मत, हम प्रोटेस्ट कर रहे हैं।

सांसदों ने कानून हाथ में लिया-
इन युवकों ने जो किया, उसके लिए तो उन्हें कानून के अनुसार सज़ा मिलेगी ही। लेकिन इस मामले में पिटाई करने वाले सांसदों के आचरण ने संसद को शर्मसार कर दिया। कई सांसदों ने इन दोनों युवकों को पीट कर कानून को अपने हाथ में लेने का अपराध किया है। ऐसा करने वाले सांसद हनुमान बेनीवाल, मलूक नागर तो बड़ी बेशर्मी से पिटाई करने की बात मीडिया में बोले भी हैं। इनके बयान से ही साफ साबित हो जाता है कि उन्होंने भारतीय दंड संहिता के अनुसार पिटाई करने का अपराध किया है।

विशेषाधिकार की ढाल-
कानून तो किसी को भी किसी की पिटाई करने की इजाज़त नहीं देता है। फिर चाहे पिटाई करने वाले विशेषाधिकार प्राप्त सांसद ही क्यों न हो। ऐसे में इन सांसदों के ख़िलाफ़ भी तो मुकदमा दर्ज होना ही चाहिए। कानून तो बिना भेदभाव के लिए हरेक पर समान रूप से लागू होना चाहिए। लोकतंत्र के मंदिर में कानून बनाने वाले सांसदों द्वारा ही कानून अपने हाथ में लेना अफसोसजनक है। सांसदों को सदन के भीतर अपने बचाव के लिए विशेषाधिकार रुपी ढाल मिलती है। लेकिन विशेषाधिकार की यह ढाल उन्हें सदन में भी किसी को पीटने की/ अपराध करने की इजाज़त तो नहीं ही देती होगी।

लोकसभा अध्यक्ष कार्रवाई करें-
देश में अगर वाकई लोकतंत्र और संविधान/कानून का राज है तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को स्वयं आगे बढ़ कर कानून हाथ में लेने वाले, संसद की गरिमा को गिराने वाले इन सांसदों के ख़िलाफ़ भी एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस से कहना चाहिए।

पुलिस की डयूटी-
वैसे तो यह पुलिस का ही कर्तव्य है कि किसी भी अपराध की सूचना मिलने पर वह ईमानदारी से एफआईआर दर्ज करके तफ्तीश करे। लेकिन अफ़सोस पुलिस ऐसा करती दिखाई नहीं देती। दोनों युवकों की पिटाई की गई है पुलिस ने उनकी मेडिकल जांच तो कराई ही होगी। इन युवकों को जो चोटें लगी, वह कैसे लगी और किस ने उनको पीटा यह सब तफ्तीश में शामिल किया जाना चाहिए, वरना पुलिस की तफ्तीश पर ही सवालिया निशान लग जाएगा। तफ्तीश तो तभी सही, निष्पक्ष और पारदर्शी मानी जाएगी जब पिटाई करने वाले सांसदों के ख़िलाफ़ भी एफआईआर दर्ज की जाएगी।

दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा और आईपीएस अधिकारियों ने संविधान और कानून को ईमानदारी और बिना भेदभाव के लागू करने की जो शपथ ली थी, अब उस पर खरा उतर कर दिखाएं। अगर जनता किसी संदिग्ध अपराधी को पकड़ कर उसकी पिटाई कर देती है तो पुलिस जनता के ख़िलाफ़ तो तुरंत एफआईआर दर्ज कर देती है।

संसद के अंदर की घटना में सागर शर्मा (लखनऊ) और मनोरंजन(कर्नाटक ) को गिरफ्तार किया गया। मैसूर से लोकसभा सांसद प्रताप सिम्हा ने इनका संसद देखने का पास बनवाया था। संसद के बाहर की घटना में अमोल शिंदे( महाराष्ट्र) और नीलम(हिसार) को गिरफ़्तार किया गया है।

संसद की सुरक्षा में चूक का मामला ऐसे वक्त में आया है, जब आज ही के दिन यानी 13 दिसंबर 2001 को संसद भवन पर आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में नौ जवान शहीद हुए थे।

संसद की इस घटना ने 8 अप्रैल 1929 को शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेम्बली में बम फेंकने की घटना की याद ताजा कर दी।

असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह ने कहा था कि- बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है।

(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)