आर.के. सिन्हा
लोकसभा चुनाव का सारे देश में माहौल बन चुका है और इस दौरान एक बात पर राजनीति की गहरी समझ रखने वाले ज्ञानियों को गौर करना होगा कि कांग्रेस लगभग 330 सीटों पर ही क्यों चुनाव लड़ रही है। 543 सदस्यों वाली लोकसभा में सरकार बनाने का ख्वाब देखनी वाली कांग्रेस के इतने कम सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करने की क्या वजह है? क्या उसे कायदे के उम्मीदवार नहीं मिले ?
कांग्रेस ने 1999 के लोकसभा चुनाव में 529 उम्मीदवार उतारे थे। उसके बाद 1998 में 477,1999 में 453, 2004 में 417, 2009 में 440, 2014 में 464 और 2029 में 421 उम्मीद उतारे। इस बार कांग्रेस के उम्मीदवारों की तादाद में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में भारी गिरावट होने जा रही है। कांग्रेस के नेता लाख तर्क दें कि उनकी पार्टी क्यों कम सीटों पर उम्मीदवारों को उतार रही है, पर सच यही है कि सन 2014 के बाद देश में नरेन्द्र मोदी के उदय के साथ ही कांग्रेस का संध्याकाल शुरू हो गया था। बीते दसेक सालों के दौरान, कांग्रेस उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र वगैरह में तेजी से सिकुड़ी है। इन राज्यों में लोकसभा की कुल मिलाकर 40 फीसद के आसपास सीटें हैं।
जिस राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को कांग्रेस अपना शिखर नेता मानती है वे भी अपनी पार्टी का भाग्य नहीं बदल पा रहे हैं। 1989 से कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है। वहां उसके अंतिम मुख्यमंत्री वीर बाहदुर सिंह थे। यह वही उत्तर प्रदेश है जो कि कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था और नेहरू परिवार का निवास भी I आगामी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश 17 सीटों पर लड़ रही है। अगर अब भी कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने नेहरू-गांधी परिवार की गुलामी नहीं छोड़ी तो उनकी पार्टी जल्दी ही इतिहास के पन्नों में ही रह जाएगी।
राहुल और प्रियंका गांधी को जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। इनके आशीर्वाद से जेएनयू के टुकड़े –टुकड़े गैंग के नेता कन्हैया कुमार की कांग्रेस में एंट्री हुई थी। अब उसे कांग्रेस ने राजधानी की नॉर्थ ईस्ट सीट से अपना उम्मीदवार बना दिया है। यह वही कन्हैया कुमार हैं जो कहते रहे हैं कि भारतीय सेना के जवानों ने कश्मीर में बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य किए हैं। राहुल औप प्रियंका गांधी ने कभी बताया नहीं कि कन्हैया कुमार किसलिए और किस आधार पर सरहदों की रक्षा करने वाली भारतीय सेना पर आरोप लगाते रहे हैं? आप अगर देश विरोधी तत्वों का साथ दोगे तो फिर आपको चुनावों में जनता जवाब तो देगी ही।
कन्हैया कुमार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस कार्य समिति में जगह देकर संदेश दे दिया था कि उन्हें उन तत्वों से कोई परहेज नहीं हैं जो भारतीय सेना पर कश्मीर में बलात्कार करने के आरोप लगाते रहे हैं। बेशक, देश कन्हैया कुमार को कभी माफ नहीं करेगा क्योंकि उसने सेना पर मिथ्या आरोप लगाए। कन्हैया कुमार ने पिछला लोकसभा चुनाव बेगूसराय से लड़ा था और वे बुरी तरह से हारे थे। वे तब भाकपा में थे। उनके लिए टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्यों ने बेगूसराय में डेरा डाला हुआ था। ये सब सोशल मीडिया पर इस तरह का माहौल बना रहे थे कि मानो भारतीय सेना को बलात्कारी कहने वाला कन्हैया कुमार भाजपा के गिरिराज सिंह को हरा ही देगा।
कन्हैया कुमार को कांग्रेस कार्य समिति में जगह मिलना अप्रत्याशित है। यहकांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी और शक्तिशाली समिति है। कांग्रेस के अपने नियम और संविधान हैं, इसे लागू करने का अंतिम निर्णय कांग्रेस कार्य समिति ही करती है। कहने वाले तो कहते हैं कि इसके पास इतनी शक्तियां होती है कि वह पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति भी कर सकती है और पद से चलता भी कर सकती है। जाहिर है, कांग्रेस की इन तमाम हरकतों को देश की जनता देख रही है।
साल 2019 में जब जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाया गया तो कांग्रेस ने इसका संसद में जमकर विरोध किया था। हालांकि, आगे चलकर कांग्रेस का रुख एकदम बदला हुआ नजर आया। जब सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 हटाए जाने के केंद्र के फैसले को सही ठहराया तो कांग्रेस ने इसकी बहाली को लेकर कोई बात नहीं की। पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिंदबरम और वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रेस वार्ता की। इस दौरान, पी. चिदंबरम ने कहा, ‘हमने कभी भी अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करने की बात नहीं की। हमने उसे हटाने के तरीके का विरोध किया था।’ चिदंबरम ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट का 370 पर जो फैसला आया है, उसने कई महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान किया है लेकिन कई सवाल बाकी हैं। 370 हटाने का जो तरीका था, हम उसके खिलाफ थे। हमने सीडब्ल्यूसी में प्रस्ताव भी पास किया था।” मतलब जब कांग्रेस को जनता के मूड की भनक लगी तो उसने अपना लाइन चेंज कर ली।
खैर, राहुल गांधी की चाहत है कि वे नरेंद्र मोदी का स्थान ले लें I प्रियंका की भी इच्छा है कि वह दूसरी इंदिरा गांधी बने। पर ये दोनों भारत को अभी तक समझ ही नहीं पाए हैं। इसी कारण से आज कांग्रेस की स्थिति बेहद शर्मनाक हो गई है। अगर यह दोनों पार्टी में बरकरार रहते हैं तो कांग्रेस के अंतिम संस्कार की राख भी ढूढंने से नहीं मिलेगी। लगता है कि दोनों ने कांग्रेस की कपाल क्रिया करने का पूरी तरह मन बना लिया है। दोनों अपने मकसद की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। कांग्रेस में केन्द्रीय नेतृत्व लगातार कमजोर हो रहा है। वह पार्टी को कहीं विजय नहीं दिलवा पा रहा है। केन्द्रीय नेतृत्व तब ताकतवर होता है जब उसकी जनता के बीच में कोई साख होती है। लेकिन हैरानी होती है कि कांग्रेस में केन्द्रीय नेतृत्व यानी सोनिया गांधी और उनके बच्चों के खिलाफ विद्रोह क्यों नहीं होता है।
जिस पार्टी से पंडित नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार पटेल का संबंध रहा है, वह पार्टी अंतिम सांसें ले रही है। यह दुखद स्थिति है। कांग्रेस की हार के लिए गांधी परिवार के साथ-साथ पार्टी के कुछ दूसरे नेताओं को भी जिम्मेदारी लेनी होगी। कांग्रेस में बहुत सारे तथाकथित नेता हैं जिनका जनता से कोई संबंध तक नहीं है। ये लुटियन दिल्ली के बड़े विशाल सरकारी बंगलों में रहकर कागजी राजनीति करते हैं। इनमें से अधिकतर बड़े मालदार कमाऊ वकील हैं। वकालत से थोड़ा बहुत वक्त मिल जाता है, तो ये टाइम पास करने के लिये और खबरों में बने रहने के लिये सियासत भी करने लगते हैं। ये मानते हैं कि खबरिया चैनलों की डिबेट में आने मात्र से ही वे पार्टी की महान सेवा कर रहे हैं।
दरअसल कांग्रेस के लोकसभा से लेकर विधान सभा चुनावों में खराब होते प्रदर्शन के कारण उसे क्षेत्रिय दलों के आगे नतमस्तक होना पड़ रहा है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में कांग्रेस क्षेत्रिय दलों से कुछ सीटें हासिल करके लोकसभा का चुनाव लड़ रही है। इस बार के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी का वोट जिस नई दिल्ली लोकसभा सीट में है वहां पर उनका कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं होगा। आम आदमी पार्टी (आप) से सीटों के तालमेल के बाद कांग्रेस ने नई दिल्ली की सीट आप को दे दी। अब समझा जा सकता है कि कांग्रेस किस तरह से देश में हाशिये पर जा रही हैं।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)