गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजनीति के रंग निराले हैं। अब राजनेता धार्मिक प्रसंगों का उपयोग भी राजनीति में करने लगे है । ताज़ाघटना में दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी अरविन्द केजरीवाल की भरत बन गई हैं। वे अरविन्द केजरीवाल की कुर्सी पर ‘खड़ाऊ’ रख सरकार चलायेगी।आतिशी की इस घोषणा के बाद देश की राजधानी दिल्ली में ‘खड़ाऊ’ का जिक्र
खूब हो रहा है। दिल्ली में हर वर्ष कई राम लीलाए होती है और यह प्रसंग थोड़ा देर से आता है। लेकिन इस बार राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण इसकी गूंज और भी तेज सुनाई दे रही है।
दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभालने के बाद आतिशी पहली बार जब दिल्ली सचिवालय पहुंची, लेकिन वह अरविंद केजरीवाल की कुर्सी पर नहीं बैठीं। सीएम आतिशी सचिवालय अपनी एक कुर्सी लेकर पहुंची और वो उसी कुर्सी पर बैठीं लेकिन आतिशी ने जब सीएम की कुर्सी संभाली तो उनके बगल में एक और कुर्सी नजर आई। आतिशी ने कहा कि यह कुर्सी केजरीवाल की वापसी तक इसी कमरे में रहेगी।यह उनकी कुर्सी है। जिस तरह भरत जी ने खड़ाऊ रखकर सिंहासन संभाला था मैं भी सीएम की कुर्सी वैसी ही संभालूंगी। इस कुर्सी को केजरीवाल का इंतजार रहेगा। इस दौरान आतिशी ने कहा कि जिस तरह भरत जी ने खड़ाऊं रखकर सिंहासन संभाला उसी तरह मैं सीएम की कुर्सी संभालूंगी।आज मेरे मन में भरत की व्यथा है। भाजपा ने अरविंद केजरीवाल पर कीचड़ उछालने में कोई
बता दें कि आतिशी ने शनिवार को सीएम पद की शपथ ली थी। मंत्रिमंडल के साथ दिल्ली की 8वीं मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। सीएम आतिशी ने केजरीवाल सरकार में अपने पास मौजूद 13 विभागों को बरकरार रखा है ।17 सितंबर को केजरीवाल के इस्तीफे के बाद आतिशी सीएम बनी थी।
वैसे खड़ाऊँ की पहली बार नहीं कहा गया इससे पूर्व भी दिल्ली के एक मंत्री ने ऐसी बात कही थी । यह बात क्यों कही गई इसके अपने मायने हैं लेकिन सवाल ये भी है कि क्या अरविंद केजरीवाल दिल्ली के राजा राम हैं? जिस त्याग को दर्शाने की बात हो रही है उसको समझने से पहले राम के खड़ाऊ के भाव को भी समझना जरूरी है।
भरत ने श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास त्याग कर अयोध्या वापस लाने के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन जब वे नहीं मानें तो उन्होंने श्री राम की चरण पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर राजपाट का भार संभाल लिया। यह दिखाता है कि भरत के लिए श्री राम ही सर्वस्व थे। खड़ाऊ को सिंहासन पर रखकर भरत ने यह दिखाया कि वे राजपाट से अधिक अपने बड़े भाई श्री राम से प्रेम करते हैं। प्रभु श्री राम जब वनवास गए तब उनके भाई भरत की यह भक्ति और निष्ठा आज भी लोगों को प्रेरित करती है। उन्होंने अपने बड़े भाई के प्रति जो निष्ठा दिखाई, वह अनुकरणीय है। हिंदू धर्म में खड़ाऊ को पवित्र माना जाता है। इसके धार्मिक और सांस्कृतिक मायने भी हैं।
प्रभु श्री राम ने एक वचन निभाने के लिए 14 साल का वनवास स्वीकार किया। उनकी जिंदगी हम सभी के लिए मर्यादा और नैतिकता की एक मिसाल है। ठीक उसी प्रकार अरविंद केजरीवाल ने इस देश की राजनीति में मर्यादा और नैतिकता की एक मिसाल कायम की है।
आतिशी और उनके पहले सौरभ भारद्वाज की ओर से जो कहने की कोशिश हुई उससे इस बात को समझने में कोई मुश्किल नहीं आएगी कि आम आदमी पार्टी के भीतर क्या चल रहा है। अरविंद केजरीवाल के प्रति निष्ठा तो समझ आती है लेकिन सवाल ये है कि क्या अरविंद केजरीवाल दिल्ली के राजा राम हैं। आतिशी और दूसरे नेता यह तो जरूर बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल ने बहुत बड़ा त्याग किया है। दिल्ली की सीएम आतिशी का इस बात पर जोर रहा कि जब तक दोबारा से केजरीवाल सीएम बनकर नहीं आ जाते तब तक वह भरत की तरह खड़ाऊ रखकर सत्ता चलाएंगी।यह भावना पार्टी के भीतर तो ठीक है लेकिन असली परीक्षा तो जनता के सामने है। अरविंद केजरीवाल दोबारा सीएम बनेंगे या नहीं यह फैसला तो जनता को ही करना है। आतिशी के इस कदम पर विपक्ष की ओर से सवाल खड़े किए जा रहे हैं। रिमोट कंट्रोल वाले शासन की याद दिलाई जा रही है। भाजपा ने आतिशी को केजरीवाल की चापलूसी छोड़ दिल्ली के अटके काम पर ध्यान केन्द्रित करें। इन सबके बीच यह भी समझना जरूरी है कि खड़ाऊ का राजनीति से सीधा कोई वास्ता नहीं लेकिन यह एक महत्वपूर्ण प्रतीक है जिसका उपयोग राजनेता अपनी छवि बनाने और मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए भी करते हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जब दिल्ली के चुनाव होंगे और नतीजे सामने आएंगे तब अरविंद केजरीवाल वापस उस खड़ाऊ में पैर रख पाते हैं या नहीं?