अति का भला न बोलना अति का भला न चुप ,अति का भला न बरसना , अति की भली न धूप.

It is not good to speak too much, it is not good to remain silent, Too much rain is no good, too much sunshine is no good

संस्कृत में कहा गया है – अति सर्वत्र वर्जयते. भगवान बुद्ध ने भी माध्यम मार्ग अपनाने के लिए कहा है. अपने गांवों में सामान्य जन भी कहते हैं कि जो अंतकी करेगा उसके सिर पड़ेगी. गांव में एक किसान ने बाजरा बोया. बाजरे की रखवाली के लिए एक मचान बनाया और उसकी बेटी सारे दिन मचान पर रहकर बाजरे को खाने वाली चिड़ियों को उड़ाती रहती थी. एक दिन उस लडकी ने अपने पिता से कहा कि आजकल तो चिड़ियों ने अति की हुई है, एक तरफ से उड़ाती हूं दूसरी तरफ टूट पड़ती हैं. उसके पिता ने कहा कि बेटी तू चिंता न कर जो अति करेगा उसके सिर पड़ेगी.

कुछ दिन बाद एक बाज आ गया और रोज दो चार चिड़ियों को पकड़ने लगा और धीरे धीरे चिड़ियों का झुंड समाप्त होने लगा. लडकी ने अपने पिता से फिर कहा कि अब बाज ने अति कर दी है. रोज चिड़ियों को तेजी से कम कर दे रहा है.उसके बाप ने फिर उत्तर दिया कि बेटी तू फिक्र न कर , अपना काम कर बाज ने अति की है तो उसके सिर पड़ेगी. किसान ने कुछ बाजरे की पकी पकी बाली काट ली. उसके बाद वह ठूंठ सूखकर कड़ा हो गया. एक दिन बाज ने जैसे ही चिड़िया को पकड़ने के लिए झपट्टा मारा वह बाजरे के पौधे का ठूंठ बाज के पेट में घुस गया और बाज मर गया.

ये केवल उक्ति नहीं है ये नियति का यथार्थ है. जो अति करेगा उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा. अति चाहे किसी के निजी जीवन या व्यवहार में हो. या समाज में हो या धर्म में हो जो अति करेगा उसे भुगतना पड़ेगा. जो धर्म के नाम पर अति वाद फैला रहे हैं चाहे वे किसी धर्म के हों उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. ऐसी अनेक घटनाएं देखी होंगी जिनमें आम आदमी सज्जनता की जिंदगी जीने वाले अधिकतर अपनी सामान्य जिंदगी जीते हैं और लोगों को सताने वाले गुंडागर्दी करने वाले अपराधी कम ही अपनी सामान्य जिंदगी जी पाते हैं. वे दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं.

आज समाज में जो अतिवाद फैल रहा है , यह किसी के भी हित में नहीं है. न फैलाने वाले के हित में है और न अतिवाद के शिकार लोगों के हित में है.

बालेश्वर त्यागी पूर्व मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार की फेसबुक वॉल से