विनोद कुमार सिंह
दिल्लीवासियों का सम्बन्ध राम लीलाओं से काफी ही पुराना है। जिसका जीता जागता उदाहरण दिल्ली का ऐतिहासिक।रामलीला मैदान है।जिसके जुड़ी हुई कुछ किस्से आज भी सुनने को मिलती रहती है।पिछले दिनों दिल्ली व एन सी आर राम भक्तों व रामलीलाओं मंचन व जयश्री राम व हर हर महादेव के नारे से पुरा वातावरण गुंजायमान हो रहा था। दिल्ली व एन सी आर वाले शाम होते हीअपने परिवार के सदस्यो के संग रामलीला का आनंद लेने घर से निकल पड़ते थे।मुझे भी कुछ रामलीलाओं को अवलोकन का सुअवसर मिला।इस दौरान मुझे एक जिज्ञासु व दर्शक की पैनी नजर से रामायण के कई पात्रओ के बारे में बारीकी से जानने का अवसर मिला।रामलीलाओं स्थलों व मंचों के कई क्षण व दृश्य ऐसे आयें जिसने मुझे ना प्रभावित किया बल्कि कुछ सोचने को मजबूर कर दिया।इन में दो उल्लेखनीय पहलू है।रामलीला कर राम -रावण युद्ध का प्रसंग।आप को बता दें राम – रावण का युद्ध काफी ही शिक्षाप्रद व रोचक है।आज रामलीलाओं में मर चुका है रावण का शरीर,सुनसान है किले का परकोटा,चारो दिशाओं में उदासी पसरी है,किसी के घर में नही जल रहा दीया।विभीषण के घर छोड़ कर सागर के तट पर बैठ है विजय श्री राम।विभीषण को लंका का राज्य पाठ सौंपते हुए ताकि सुबह हो सके र्निविघ्न राज्याभिषेक,स्वयं राम लक्ष्मण से पुछते अपने सहयोगियों के कुशल क्षेम,चरणो में हनुमान बैठे।लक्ष्मण मन से क्षुब्द है।भ्राताश्री राम सीता माता को अशोक बाटिका मे क्यों नही लेने जाते है।
विभीषण का राज्याभिषेक हो गया है।लंका में राम प्रवेश कर एक भव्य भवन पहुंच गये है।हनुमान को अशोक वाटिका में संदेश देने भेजते है कि रावण मारा गया है और अब विभीषण लंकापति है।हनुमान का यह संदेश सुनकर माँसीता खामोश है,निहारती है उस रास्ते को।उनके मन में प्रश्न उठते है कि रावण का वध करते ही वनवासी राम,राजा राम बन गये क्या।लंका पहुंच कर वे क्यूं नही जानना चाहते है,एक वर्ष कहाँ रही सीता,कैसे रही उनकी सीता।मॉ सीता के नयनों से अविरल बहते हए अश्रुधार।ना’ राम भक्त हनुमान नही समझ पाते,ना रामायण के रचयिता बाल्मिकी कह नही पाते है।माँ सीता आज सोचती है कि अगर राम आते मै उन्हें यहाँ के परिचायिकाओं से,जिन्होने रावण के आदेश पर मुझे भयभीत तो किया,लेकिन नारी के पूर्ण गरिमा प्रदान की,वे रावण की अनुचरी थी लेकिन मेरे लिए माताओं के समान थी।अगर स्वयं राम आते यहाँ मै उन्हें इसे मिलवाते,यहाँ के अशोक के वृक्षों से जिन्होंने मुझे अपने विश्वास पर अड़े की आपर शक्ति देती रही,यहाँ की पुष्प व लताओं से जिन्होनें उनकी सीता कीआँसुओं को ओंस के कणों की तरह सहेज कर रखा।लेकिन वे अब तो वे राजा राम है कैसे आते अपनी सीता को लेने के लिए।देखते देखते कई पहर बीत गए,लंकापति विभीषण के नेतृत्व में माता सीता जी का श्रंगार की गई।भव्य पालकी मे बैठी हुई माँ सीता आज मन मन सोच रही है कि राजा जनक जी ने उन्हें इसी तरह से घर से विदा किया था।तभी वातावरण में स्वर गुंजता है कि सीता को मेरे पास पैदलआने दो। भुमि सुता माँ सीता जमीन पर कॉपती हुई चलते मन में ज्वलंत प्रशन उठते है कि मैंने स्वयंवर में जिसका वरण किया था क्या ये वही है यह पुरुष,जिसके प्रेम में अयोध्या का महल छोड़ कर उनके संग वन वन भटकी थी।हॉं रावण नें गोद मे उठाया था।मुझसे क्या था प्रणय निवेदन वह स्वयं में राजा था,चाहता तो बल पूवर्क ले जाता राजमहल में,लैकिन उसने मेरे स्त्रीत्व का अपमान कभी नही किया।रावण के विषय में सही जानकारी से आज बहुत लोग अपरिचित है।रावण कौन था,क्या रामायण का एक पात्र मात्र था आपके मन में भी कुछ ऐसे सवाल होंगे तो मै बता दूँ कि रावण एक महाज्ञानी,महा पराक्रमी और महाबलशाली था।रावण चारों वेदों का जानकार था।वह धरती पर मौजूद सबसे बुद्धिमान व्यक्तियों में से एक था।हालांकि उसके अहंकार के कारण उसका अंत हुआ।रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उसे यह वरदान था कि कोई भी देवी-देवता का उसका अंत नहीं सकता।यही कारण है कि रावण का वध करने के लिए भगवान विष्णु को मानव रूप में अवतार लेना पड़ा।भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम ने रावण की नाभि में तीर मारकर उसका अंत किया।रावण के अंत से पहले भगवान श्रीराम और रावण की सेना के बीच कई दिनों तक युद्ध चला।धर्म और अधर्म के बीच हुआ यह युद्ध कितने दिनों तक चला,इस बार में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और रावण की सेना के बीच 84 दिनों तक युद्ध लड़ा गया।युद्ध में सफलता के लिए स्वयं भगवान श्रीराम ने शक्ति की उपासना की थी।जिसके बाद लगातार 9दिनों तक युद्ध के बाद दसवें दिन रावण का अंत कर दिया।इसलिए हिन्दू धर्म में नौ दिनों तक शक्ति की उपासना की जाती है और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और रावण के बीच लगातार 8 दिनों सीधे युद्ध हुआ था।अश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को दोनों के बीच शुरू हुआ संग्राम दशमी को रावण वध के साथ समाप्त हुआ।रावण का अंत करने के बाद भगवान श्रीराम को वापस अयोध्या पहुंचने में करीब 20 दिन लगे थे।शास्त्रों के अनुसार रावण की सेना में करोड़ो लोग थे,बावजूद इसके भगवान श्रीराम और उनकी वानर सेना ने बहुत पराक्रम के साथ युद्ध किया और श्रीराम ने रावण का अंत कर दिया।सिर्फ रावण ही नहीं बल्कि उसकी सेना में ऐसे कई पराक्रमी योद्धा थे,जिन्हें किसी मनुष्य के लिए हराना असंभव था।इसलिए भगवान विष्णु के अवतार के साथ-साथ भगवान शिव और अन्य देवताओं ने भी अवतार लिए थें।श्रीराम-रावण के युद्ध में रावण के चार भाइयों कुम्भकर्ण,खर,दूषण और अहिरावण ने हिस्सा लिया था।इनमें से अहिरावण का अंत हनुमानजी ने किया था जबकि बाकी तीन भाइयों का अंत श्रीराम के हाथों हुआ।युद्ध में रावण के सात शूरवीर पुत्र भी उतरे थे।इनमें से मेघनाद, प्रहस्त और अतिकाय का अंत लक्ष्मणजी ने किया जबकि नरान्तक, देवान्तक और अक्षय कुमार का अंत हनुमान के हाथों हुआ।रावण के एक पुत्र त्रिशिरा का अंत श्रीराम के हाथों हुआ।आगे की कथा आप सभी स्वयं जानते है-स्वयं सीता को अग्नि परीक्षा तक देने पड़ी राम,सीता व लक्ष्मण अयोध्या लौटे,नगर वासियों नें दिवाली मनाई थी।आप सभी भी दिवाली मनाने की तैयारी में जुट गए होगें। मै उदास हूँ,कुछ सोचने को मजबुर हो गया हूँ दशहरे की रात से। देश की राजधानी में रामलीला मंचन व मंच से लेकर रावण को जलाने के जशन में समाज की जानी हस्तियों ने ना सिर्फ शिरकत की बल्कि अपने को गौरवान्वित महसुस कर रहें। आज जिसने भी जलाई है क्या उसमें से किसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुण थें क्या।चाहे वे केन्द्रीय मंत्री हो,मुख्य मंत्री हो या राजनीतिक दलों के राजनेता हो,समाजसेवी हो यहाँ तक कई संवैधानिक पदों पर आसीन माननीय-सम्मानीय हो या फिहस्तियाँ हो,कोई भी हो व्यक्ति हो या जिसने भी रावण दहन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया हो ‘ उनको लेकर मेरे मन में बार यह बार एक सबाल पूछ रहा है।यहाँ आपमें से कोई राम है क्या।मुझे तो यहाँ कोई भी राम नही मिला। वही दूसरी तरफ रामलीला आयोजक की व्यवस्था पर भी कई सवालिया निशान उठता है।रामलीला स्थलो की व्यवस्था,मंच के बाहर अव्यवस्थित पाकिंग,अस्थाई रूप से बनाई चारदीवारी पर पान मासला ‘ अन्य विज्ञापन सम्बन्धी विशालकाय पोस्टरों,रामलीला में आने जाने दर्शकों के मन जरूर दु्ष्प्रभाव सरकारी महकमे के आल अफसरों की उपस्थिति,दिल्ली पुलिस,आदि के साथ लाला जी का फोटो से व्यापार व रुतवा में स्वाभाविक रूप से प्रभाव पड़ता है।आयोजको का ध्यान रामलीला के सरकारी व सार्वजिक स्थान के लिए उपलब्ध कराई जाती है।जहाँ पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार,कई स्वायत संस्थानों को रियायती दरों पर बिजली पानी,सुरक्षा व्यवस्था,मैदान उपलब्ध कराई जाती है।आयोजको द्वारा रामलीला मंचन के लिए चंदे से बड़ी रकम उगाई की जाती है। जिसका कोई हिसाब किताब कोई आडिट रिपोर्ट होती है या नही । भगवान ही जाने।एक रामलीला मंच में आयोजकों के द्वारा अपने लिए शीश महल की शान शौकत उपलब्ध थीं हद तो तक हो जब – भगवान श्री राम की प्रतिमा-खुले मैदान में स्थापित किया गया।इतना ही नही – हिन्दु देवी देवताओं की प्रतिमा को जमीन पर कुछ रखी गई थी लाला जी व उनके परिवार व मित्र परिजनों की आलीशान महलों में शीसें अन्दर – खान पान की व्यवस्था,फोटो सुट ‘ प्राईवेट प्रचार प्रसार के लिए कथाकथित झोला छाप आई -माईक लेकर मीडिया कर्मियों का खास इंतजाम था।फोटो सूट आदि व्यवस्था की गई थी।जो कि साधारण व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों के साथ रामलीला देखने को आते है। सबसे पहले उन्हें यहाँ प्रवेश के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।जैसे तैसे वह पहुंचते है फिर आयोजकों के प्राईवेट सिक्युटी गार्ड जिसे आयोजको अपने मित्र व परिजनों की आव भगत – शान शौकत रखी गई है।वे आम जनता को प्रताड़ित करने से नही चुकते है।ऐसे में अपने स्वभाव के मुताबिक तीरक्षी नजर अगर आप को कोई राम दिखे तो हमे भी बतायेगा जरूर। एक बार और अब रामलीला की जगह लालाओं की लीला काफी हद तक हावी हो गई। रामलीला का बदलता स्वरूप समाज व संस्कृति नकुशान कर रही है।एक स्वस्थ्य समाज व हमारे सम्भयता व संस्कृति के लिए खतरे की घंटी है।