विनोद कुमार विक्की
साहित्य से सौंदर्य तक चैनल द्वारा आयोजित साहित्यिक परिचर्चा में शामिल होने के लिए अड़सठ वर्षीय दिलफेंक अकेला जी ने 499 रुपए का भुगतान कर आनलाइन टिकट की बुकिंग करा लीं। सैकड़ों मील दूर आयोजित कार्यक्रम में उनकी साहित्यिक सहभागिता के निर्णय पर परिवार, पड़ोसी से पंचायत तक सभी हतप्रभ और हैरान थे। धैर्यवान दिलफेंक जी जबरदस्त तो नहीं किंतु जबरदस्ती के साहित्यकार अवश्य है। जब उनकी रचनाओं को किसी भी ई-पत्रिका अथवा मुद्रित पत्र- पत्रिका ने प्रकाशित करने का जोखिम नहीं उठाया, तब उन्होंने भगवान के दिए हुए दौलत में से राशि को खर्च करते हुए साझा अथवा एकल संकलन निकालना प्रारंभ कर दिया। तत्पश्चात प्रत्येक छः माह पर लोकार्पण समारोह आयोजित करके शहर के लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकारों के बीच थोड़ी-थोड़ी शोहरत भी हासिल करने लगा। पुस्तक प्रकाशन की आस और ऑफर में विभिन्न प्रकाशकों ने थोड़ी-बहुत इज़्ज़त भी देनी प्रारंभ कर दी। आज उनके पास साहित्य का दिया हुआ सब-कुछ है, थोड़ी दौलत है, थोड़ा शोहरत है और थोड़ी इज़्ज़त भी।
दिलफेंक जी स्वयं को साहित्य जगत का आमिर खान मानते हैं, ना-ना बिल्कुल भी दिग्भ्रमित मत होईए, दरअसल आमिर खान से आशय रचनाओं की पूर्णता अथवा उत्कृष्टता से नहीं बल्कि किसी भी प्रकार के साहित्यिक आयोजनों में उनकी उपस्थिति से है। जीवन के अड़सठ वसंत झेल चुके दिलफेंक जी अपनी पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रम के अलावा आज तक कभी किसी अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग नहीं लिया था। आफलाइन कार्यक्रम तो छोड़िए, कभी किसी वर्चुअल गोष्ठी में भी साहित्य बांचन अथवा श्रवण में अपना बहुमूल्य समय नहीं गंवाया है, लेकिन पाँच सौ रुपए वाले साहित्यिक कार्यक्रम की टिकट और पाँच हजार की रेलवे टिकट बुक करा के उनके दिल्ली यात्रा एवं साहित्यिक अनुराग की खबर जैसे ही मार्केट में पहुंची, ई-पेपर के पत्रकार से यूट्यूबर रिपोर्टर तक सभी अपना मोबाइल लेकर उनके आवास पर पहुंच गए। आखिरकार उनके हृदय परिवर्तन एवं साहित्य साधना के संयुक्त राज से उस समय पर्दा उठ गया, जब इंटरव्यू के दौरान उन्होंने स्वीकार किया कि साहित्यिक परिचर्चा की बजाय आयोजकों द्वारा उनकी फेवरेट सेलिब्रिटी ‘बर्फ़ी बिनवेद’ को आमंत्रित किये जाने से प्रभावित होकर उन्होंने यह निर्णय लिया है। दिलफेंक बाबू को जितनी खुली हुई किताबें पसंद है, उतनी ही खुले विचारों वाली बर्फी बिनवेद।
साहित्य समाज का आईना होता है और जिस परम आदरणीय सेलिब्रिटी की तस्वीरें वो चादर के नीचे छिपा कर देखते थे, साहित्य से सौंदर्य तक चैनल ने साहित्य की आड़ में साक्षात दर्शन कराने का सौभाग्य प्रदान किया। आखिर स्वभिप्रमाणित साहित्यकार के रूप में उनकी भी यह जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होकर साहित्य से ज्यादा आयोजक एवं सौंदर्य को समृद्ध करने का पुनीत कार्य कर सकें।