प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन और रिसाइक्लिंग एक बड़ी चुनौती!

Management and recycling of plastic waste is a big challenge!

सुनील कुमार महला

प्लास्टिक हमारी धरती के पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र, जीव-जंतुओं, मनुष्यों सभी के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है। इंसान हो या पर्यावरण, समुद्री जीव हों या वनस्पतियां सभी की सेहत को प्लास्टिक ने बिगाड़ कर रख दिया है। वास्तव में प्लास्टिक हमारी धरती के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती ही कहा जा सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि सस्ता और टिकाऊ होने की वजह से प्लास्टिक का उपयोग आज हर कहीं पर बड़े पैमाने पर हो रहा है। आज स्थिति यह है कि आज प्लास्टिक ने हमारी नदियों, हमारे विभिन्न जल स्त्रोतों, समुद्र,थल व वायु सभी जगहों पर अपनी गहरी पैठ बना ली है। शहरों में तो कचरे के जो बड़े बड़े ढ़ेर नजर आते हैं, उसमें सबसे ज्यादा कचरा प्लास्टिक का ही होता है। आंकड़े बताते हैं कि 1950 में दुनिया सिर्फ 20 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन करती थी और अब प्लास्टिक का उत्पादन बढ़ कर 45 करोड़ टन से अधिक हो गया है। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार हर 30 सेकेंड में प्लास्टिक और कचरे से होने वाली बीमारियों के एक व्यक्ति की मौत हो जाती है। प्रतिष्ठित पत्रिका डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार हर दिन, दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में 2,000 से अधिक प्लास्टिक से भरे ट्रक फेंके जाते हैं। स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट इन फिगर्स 2025 के मुताबिक, भारत में प्रतिबंध के बावजूद 2022-23 में प्लास्टिक का कचरा रिकॉर्ड 41.4 लाख टन तक पहुंच गया। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि भारत में हर साल 34 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा निकलता है, जिसमें से अधिकतर बैग, रैपर और पैकेजिंग जैसी एक बार उपयोग होने वाले वस्तुओं से आता है। कचरे के प्रबंधन के लिए प्रतिबंधों और नियमों के बावजूद, प्लास्टिक हमारे बाजारों, नालियों और महासागरों में भरा पड़ा है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि विश्व पर्यावरण दिवस(5 जून 2025) की थीम इस बार ‘प्लास्टिक प्रदूषण को हराना’ रखी गई, लेकिन आज चाय के कप से लेकर पानी की बोतल तक, घर हो या आफिस हर जगह प्लास्टिक बिखरा पड़ा है। यहां तक कि जीवन का कोई भी पहलू आज प्लास्टिक से अछूता नहीं रहा है। आज हर जगह प्लास्टिक की बेतहाशा मौजूदगी है। कहना ग़लत नहीं होगा कि मां की कोख से लेकर,हमारी सांसों, हमारी प्रकृति, पर्यावरण, पेयजल व फसलों में घातक माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी एक गंभीर संकट है।सच यह है भी है कि आज अधिकांश निराश्रित गायों की मृत्यु का कारण प्लास्टिक का सेवन ही है। आज पानी, मिट्टी और हवा में माइक्रो प्लास्टिक की मौजूदगी हो चुकी है। आईयूसीएन के अनुसार, हर साल कम-से-कम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में जाता है और यह सतही जल से लेकर गहरे समुद्र में तलछट तक सभी समुद्री मलबे का लगभग 80% हिस्सा है।सच तो यह है कि माइक्रोप्लास्टिक आज एक बहुत बड़ी समस्या है, क्योंकि वे व्यापक रूप से पाए जाते हैं और पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। वास्तव में माइक्रो प्लास्टिक तो आज एक अदृश्य खतरा है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव सिर्फ़ पर्यावरण तक ही सीमित नहीं हैं। जैसे ही माइक्रोप्लास्टिक पानी में पहुँचता है, उसे मछली, मसल्स और दूसरे जानवर खा लेते हैं और गलती से उसे खाना समझ लेते हैं। ये जानवर हमारी प्लेटों में पहुँच जाते हैं और प्लास्टिक के कणों को मानव खाद्य श्रृंखला में ले आते हैं। एक चिंताजनक अध्ययन से पता चला है कि लोग प्रति सप्ताह पाँच ग्राम तक माइक्रोप्लास्टिक निगल लेते हैं, जो एक क्रेडिट कार्ड के बराबर वजन है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि कुछ समय पहले नमक और चीनी के विभिन्न सैंपल्स में भी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई थी। वास्तव में माइक्रो प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए हमें व्यक्तिगत पहल करनी होगी। मसलन, शून्य-अपशिष्ट, डिस्पोज़ेबल और खुद के बर्तनों का उपयोग करना, बोतलबंद पानी तथा प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग न करना आदि कुछ ऐसे कदम हैं जिन्हें प्रत्येक नागरिक माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये उठा सकता है। यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि आज माइक्रो प्लास्टिक हमारे जीवन का एक ऐसा हिस्सा बन चुका है, जिससे पूरी तरह बचना मुश्किल है।हालांकि, इसके गंभीर खतरों को देखते हुए हमें अपने जीवन में कुछ बदलाव करने की जरूरत है। मसलन, जैसा कि ऊपर बता चुका हूं कि हम प्लास्टिक का कम से कम उपयोग या शून्य उपयोग करें। बहरहाल, यह विडंबना ही कही जा सकती है कि आज हमें प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने में सफलता नहीं मिल पा रही हैं। वास्तव में देखा जाए तो इसके पीछे कई चुनौतियां हैं। प्लास्टिक का व्यापक उपयोग, सस्ते विकल्पों का अभाव आदि इस दिशा में गंभीर बाधाएं बने हुए हैं। प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन और रीसाइक्लिंग(पुनर्चक्रण) की व्यवस्था भी सरकार के सामने एक बड़ी व गंभीर चुनौती है। प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए, सबसे पहले प्लास्टिक के उपयोग को कम या बंद करना होगा। हमें यह चाहिए कि हमप्लास्टिक के रैप के बजाय पुन: प्रयोज्य सामग्री का उपयोग करें। प्लास्टिक के कंटेनर के बजाय धातु या कांच के कंटेनर का उपयोग किया जा सकता है, और प्लास्टिक की पानी की बोतलें और थैली के बजाय पुनः उपयोग योग्य बोतलों और बैग आदि का उपयोग किया जा सकता है। हमें यह चाहिए कि हम पुनर्चक्रण में योगदान करें। आज जरूरत इस बात की है कि हम प्लास्टिक प्रदूषण के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में दूसरों को शिक्षित करें और उन्हें प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने में अपना योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करें।एकल उपयोग प्लास्टिक को कम करने के साथ ही आज हमें स्थिर पैकेजिंग वाले उत्पाद चुनने की आवश्यकता है, ताकि प्लास्टिक प्रदूषण से बचा जा सके। हमें यह चाहिए कि हम बायोडिग्रेडेबल विकल्पों या प्राकृतिक विकल्पों का उपयोग सुनिश्चित करें। अंत में यही कहूंगा कि आज प्लास्टिक पर प्रतिबंध को गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है।