
अशोक भाटिया
जनगणना की मांग करने वाले दलों के लिए अब राहत की खबर है। केंद्र सरकार देश में जाति जनगणना का एलान तो पहले ही कर चुकी है। अब सरकार ने तारीखों का भी एलान कर दिया है। सूत्रों को मुताबिक, भारत में 1 अक्तूबर 2026 से जाति गणना के साथ जनगणना शुरू होगी। यह जनगणना देशभर में दो चरणों में कराई जाएगी। बता दें कि, जनगणना 1951 से प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर की जाती थी (2021 में कोरोना महामारी के कारण टली)। जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उन पर अमल करने के साथ-साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम होते हैं। वहीं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को भी अपडेट करने का काम बाकी है।
सूत्रों के मुताबिक, 16 जून 2025 को जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत अधिसूचना जारी होते ही यह प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो जाएगी। इसके बाद जनगणना से जुड़ी विभिन्न एजेंसियां सक्रिय हो जाएंगी। पहले चरण में स्टाफ की नियुक्ति, प्रशिक्षण, जनगणना फॉर्मेट तैयार करना और फील्ड वर्क की योजना बनाई जाएगी। खास बात यह है कि इस बार जनगणना और जातिगत जनगणना एक साथ की जाएगी।प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होगी। पहला चरण 1 फरवरी 2027 तक पूरा किया जाएगा, जबकि दूसरा और अंतिम चरण फरवरी 2027 के अंत तक संपन्न होगा। 1 मार्च 2027 की मध्यरात्रि को संदर्भ तिथि माना जाएगा, यानी उस समय देश की जनसंख्या और सामाजिक स्थिति का जो भी आंकड़ा होगा, वही रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। इस दिन के बाद से आंकड़े सार्वजनिक रूप से सामने आने लगेंगे। यह ऐतिहासिक कदम देश की सामाजिक संरचना को बेहतर ढंग से समझने और नीतिगत फैसलों के लिए मजबूत आधार प्रदान करेगा।
वहीं हिमालयी और विशेष भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और उत्तराखंड में यह जनगणना प्रक्रिया अन्य राज्यों से पहले, अक्टूबर 2026 तक पूरी कर ली जाएगी। वहां मौसम की कठिनाइयों और दुर्गम क्षेत्रों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है।जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3 के तहत, 1 मार्च 2027 को जनगणना की संदर्भ तिथि घोषित की जाएगी और संबंधित अधिसूचना 16 जून 2025 को राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी। इसके बाद जनगणना की आधिकारिक तैयारियां प्रारंभ हो जाएंगी।
बता दें कि इस बड़े फैसले की पृष्ठभूमि में अप्रैल में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव की ओर से की गई घोषणा थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति ने आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल करने की स्वीकृति दे दी है।उन्होंने कहा था, “कैबिनेट समिति ने आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का निर्णय लिया है। यह फैसला सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण तथा समग्र राष्ट्रीय प्रगति की दिशा में एक अहम कदम है।” उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि जनगणना पारदर्शी तरीके से कराई जाएगी।
देशभर में जातिगत गणना की मांग काफी समय से उठती रही थी । कांग्रेस, INDIA गठबंधन और विभिन्न क्षेत्रीय दलों ने बार-बार इसकी आवश्यकता को रेखांकित करती रही है। हाल ही में कांग्रेस शासित कर्नाटक सरकार ने राज्य स्तरीय जातिगत सर्वे कराया था, जिसे लेकर कुछ प्रमुख समुदायों वोक्कालिगा और लिंगायत ने यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि इस सर्वे में उनके साथ न्याय नहीं हुआ।
गौरतलब है कि भारत में यह जनगणना मूल रूप से अप्रैल 2020 में आयोजित की जानी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। अगर इसे तय समय पर किया गया होता, तो अंतिम रिपोर्ट 2021 तक सामने आ जाती।जनगणना 2027 सिर्फ जनसंख्या की गणना भर नहीं होगी, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। वंचित वर्गों की सही पहचान और उनके लिए योजनाओं की बेहतर दिशा तय हो सकेगी। आरक्षण व्यवस्था और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर तथ्यात्मक और अद्यतन आंकड़े उपलब्ध होंगे। नीतियों और योजनाओं का पुनर्गठन संभव होगा जो समावेशी विकास की दिशा में उपयोगी हो सकता है।
भारत में पिछली जनगणना वर्ष 2011 में की गई थी, जो दो चरणों में पूरी हुई थी। पहला चरण मकान सूचीकरण (HLO) और दूसरा चरण जनगणना (PE)। 2021 में अगली जनगणना प्रस्तावित थी, जिसकी सभी तैयारियां भी पूरी हो गई थीं, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा। यदि यह जनगणना समय पर होती, तो 2021 तक इसकी अंतिम रिपोर्ट सामने आ चुकी होती। गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक्स पर पोस्ट किया, “जनगणना 2021 के लिए सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। हालाँकि, पूरे देश में कोविड के प्रकोप के कारण जनगणना का काम स्थगित कर दिया गया था। कोविड ने शिक्षा सहित सभी क्षेत्रों को बाधित किया। जनगणना के लिए लगभग 30 लाख गणनाकर्ताओं की आवश्यकता है और उनमें से अधिकांश प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक हैं। कोविड के बाद जनगणना प्राथमिक शिक्षा को बाधित कर सकता था।” प्रवक्ता ने कहा कि जिन देशों ने महामारी के तुरंत बाद जनगणना की उन्हें जनगणना के आंकड़ों की कवरेज पर समस्याओं का सामना करना पड़ा।
केंद्र की प्रतिबद्धता दोहराते हुए प्रवक्ता ने कहा कि जनगणना प्रक्रिया अब तुरंत शुरू होगी और 1 मार्च, 2027 को संदर्भ तिथि के रूप में समाप्त होगी। पोस्ट में कहा गया है, ” जनगणना के संचालन के लिए बजट कभी भी बाधा नहीं रहा है क्योंकि सरकार द्वारा हमेशा धन का आवंटन सुनिश्चित किया जाता है।
गृह मंत्रालय बताया कि, ‘जातियों की गणना के साथ-साथ दो चरणों में जनसंख्या जनगणना-2027 आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। जनसंख्या जनगणना-2027 के लिए संदर्भ तिथि मार्च, 2027 के पहले दिन 00:00 बजे होगी। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों के गैर-समकालिक बर्फीले क्षेत्रों के लिए, संदर्भ तिथि अक्टूबर, 2026 के पहले दिन 00।00 बजे होगी। उपरोक्त संदर्भ तिथियों के साथ जनसंख्या जनगणना आयोजित करने के इरादे की अधिसूचना जनगणना अधिनियम 1948 की धारा 3 के प्रावधान के अनुसार 16।06।2025 को आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी।’
भारत में हर दस साल में जनगणना होती है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी। 1947 में आजादी मिलने के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी और आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी, जबकि लिंगानुपात 940 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष और साक्षरता दर 74।04 फीसदी था।
ज्ञात हो कि देश में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी। पहली बार हुई जनगणना में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे। इसके बाद हर दस साल पर जनगणना होती रही। 1931 तक की जनगणना में हर बार जातिवार आंकड़े भी जारी किए गए। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया गया। आजादी के बाद से हर बार की जनगणना में सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के ही जाति आधारित आंकड़े जारी किए। अन्य जातियों के जातिवार आंकड़े 1931 के बाद कभी प्रकाशित नहीं किए गए।
जातीय जनगणना का एक दूसरा पहलू भी है जिसे नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता । जाति जनगणना का मतलब ही है कि भविष्य में आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाएगा। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जाति जनगणना कराने की घोषणा होने के बाद ही डिमांड रख दी है कि जाति जनगणना का मतलब तभी पूरा होगा जब आरक्षण के 50 प्रतिशत वाले कैप को भी सरकार खत्म करे। ताकि पिछड़ों को आरक्षण 60, 70, 80 से 90 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सके। मंडलवादी पार्टियों की इन्हीं नीतियों के चलते ही देश 1990 से 2000 तक ऐसा अस्थिर हुआ कि एक मजबूत सरकार देश को नसीब नहीं हुई। उस एक दशक में भारत अपने बराबर के देशों जैसे चीन आदि से दशकों पीछे हो गया था। राजनीतिक अस्थिरता ऐसी रही कि देश भ्रष्टाचार और आतंकवाद के काले साए में समाया रहा। जाहिर है कि एक बार फिर वही कहानी दुहराए जाने का अंदेशा जताया जा रहा है। क्योंकि अब तो मंडलवादी पार्टियां और कांग्रेस दोनों ही इस मुद्दे पर एक हो गईं हैं। जाहिर है कि समस्या और गंभीर होने वाली है।
भारत में जाति एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। जनगणना में शामिल करने से जातिगत पहचान को और मजबूती मिलने की आशंका है। जाति जनगणना के बाद OBC, SC, और ST की सटीक आबादी और उनकी स्थिति का पता चलेगा। 1990 में केवल अगड़ों ने संघर्ष किया था। पर अब दलित-आदिवासी और ईबीसी जातियां भी आंदोलनकारी होंगी। बहुत सी ऐसी जातियां हैं जो बहुत पिछड़ी हैं पर वो संख्या बल में कमजोर हैं। उनके साथ कैसे न्याय होगा, यह विचारणीय है। जाहिर है कि पिछड़ी जातियों में ही खींचतान बढ़ेगी। लोग मरने मारने पर उतारू होंगे। उच्च जातियों में भी यह डर पैदा हो सकता है कि उनकी हिस्सेदारी कम होगी। जाहिर इसके चलते एक बार फिर अगड़ा बनाम पिछड़ा वर्ग का तनाव बढ़ेगा। जैसा कि 1990 में देखा गया था। 1990 में तनाव जल्दी ही शांत हो गया था। इसका कारण था कि लोगों को अपना संख्या बल नहीं पता था। इस बार संघर्ष होगा तो रुकने का नाम नहीं लेगा। X पर फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री लिखते हैं कि जाति जनगणना जातिवाद को संस्थागत करेगा और सामाजिक एकता को कमजोर करेगा। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों और सामाजिक तनाव इसका उदाहरण हैं।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार