
प्रियंका सौरभ
मैंने देखा था एक जोड़ा
हाथों में हाथ, आँखों में स्वप्न लिए
वो कहते थे – “हमसफ़र”
पर शायद किसी एक के लिए
ये सफर सिर्फ “अंत” था।
मेघालय की वादियों में
जहाँ झीलें चुपचाप सब सुनती हैं,
वहीं गूंजा था एक मौन चीत्कार
एक प्रेमी पति,
जो पत्नी के हृदय में नहीं,
उसके षड्यंत्र में जी रहा था।
राजा…
जिसे लगा था कि वह “राजकुमारी” ले आया है
असल में एक
बेवफाई की तलवार को गले लगाया था।
प्रीति अब सौदा बन चुकी है,
शादी अब स्क्रिप्ट है,
जहाँ प्रेमी मंच के पीछे
और पति, दर्शक दीर्घा में बैठा अंतिम दृश्य देखता है —
अपनी ही हत्या का।
सोनम!
तेरी मुस्कान में क्या सच में कोई मोती था?
या वह जहर था
जो तूने राजा के सपनों में घोल दिया?
तेरे “आई लव यू” में
वो “आई” कितना भारी था
कि “यू” को मारना पड़ा?
ये कैसा युग है?
जहाँ हनीमून प्लानिंग नहीं,
हत्या की प्लॉटिंग होती है
जहाँ पत्नी, प्रेमी को गाइड करती है –
“अब गिरा दो उसे घाटी से… कैमरा ऑफ है।”
नॉर्थ ईस्ट के बादलों ने
शायद पहली बार
किसी की चीख को नहीं बरसाया
बल्कि उसे निगल लिया —
जैसे समाज निगलता है सवालों को।
ये हत्या नहीं सिर्फ एक व्यक्ति की
बल्कि हर उस भरोसे की है
जो विवाह के सात फेरों में
सात जन्मों तक चलने का वादा करता है।
अब प्रेम…
लॉक स्क्रीन की डीपी तक सीमित है
और वफादारी…
एप इंस्टॉल करने जितनी अस्थायी।
कितना बदला है युग
जहाँ पहले
पत्नी पति के पीछे सती हो जाती थी
अब पति को स्वाहा करके
बॉयफ्रेंड के साथ बुलेट पर घूमती है।
कहते हैं —
रिश्ते भगवान बनाता है
लेकिन आजकल “रिपोर्टर” बनाता है
जो शव की तस्वीर खींच
“ब्रेकिन्ग न्यूज” लिखता है।
राजा तो चला गया
लेकिन सोनम के कारण
मेघालय बदनाम हुआ
पर्यटन पर ग्रहण लगा
और समाज ने फिर से
एक अपराध को “इवेंट” बना दिया।
ये कविता कोई अंत नहीं
ये शुरुआत है
हर उस चेतावनी की
जो हमें सिखाए —
कि शादी कार्ड से नहीं,
चरित्र से तय होनी चाहिए
और हनीमून पर जाने से पहले
दिल की जांच होनी चाहिए।