
देवेन्द्र ब्रह्मचारी
लंबे समय से दुनिया में युद्ध का माहौल बना हुआ है। रूस-यूक्रेन, इजरायल-हमास और अब इजरायल-ईरान के बीच विनाशकारी युद्ध के साथ-साथ परमाणु युद्ध की संभावनाओं ने मनुष्य जीवन के अस्तित्व पर संकट के बादल गहरा दिये हैं। देश और दुनिया का जीवन जहां हिंसा, युद्ध और आतंकवाद के सूली पर चढ़ा हुआ है, वहीं विकृतियां एवं विसंगतियां के कोहराम में जीवन मूल्य, आस्था और अहिंसा दम तोड़ रही है। इन विषम स्थितियों में प्रश्न है कि मानवता को बचाने के लिए कौन आगे आएगा? कौन मानवता के लिए त्राण बनेगा? कौन विध्वंस और विनाश से बचायेगा? इन संकटकालीन स्थितियों में एक रोशनी है भगवान महावीर। इन जटिल से जटिलतर होते हुए माहौल में भगवान महावीर के अहिंसा एवं शांति संदेश को देश और दुनिया में पहुंचाने के लिए महावीरायतन फाउंडेशन के तत्वावधान में ‘संवाद से समाधान’ एक परिचर्चा की शृंखला प्रारंभ की गयी है, जिसके अंतर्गत 23 जून 2025 को आर्थिक राजधानी मुंबई में एक अहिंसा का शंखनाद होने जा रहा है, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला मुख्य अतिथि तथा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फड़णवीस विशिष्ट अतिथि होंगे। जैन श्रद्धालु बड़ी संख्या में तीर्थंकर भगवान महावीर की शिक्षाओं से प्रेरित होकर समाज, राष्ट्र एवं दुनिया में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में कार्यरत होने के लिए संकल्पित होंगे।
आदि तीर्थंकर ऋषभ की परम्परा के ही अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर सिर्फ जैनियों के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के पूजनीय है। महावीर की शिक्षाओं की उपादेयता सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक है, दुनिया के तमाम लोगों ने इनके जीवन एवं विचारों से प्रेरणा ली है। सत्य, अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह ऐसे सिद्धान्त हैं, जो हमेशा स्वीकार्य रहेंगे और विश्व मानवता को प्रेरणा देते रहेंगे। महावीर का संपूर्ण जीवन मानवता के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। इसलिए महावीर का धर्म एवं दर्शन आज के हिंसा, युद्ध, आतंक एवं आर्थिक विषमता के दौर में ज्यादा जरूरी है। समय के आकाश पर आज अनगिनत प्रश्नों का कोलाहल है। महावीर ने जो उपदेश दिया हम उसे आचरण में क्यों नहीं उतार पाए? मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था और विश्वास कमजोर क्यों पड़ा? ये ऐसे प्रश्न हैं जो हमारे जीवन को जटिल और समस्याग्रस्त बना रहे हैं। मनुष्य जिन समस्याओं से और जिन जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है उन सबका समाधान महावीर के दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है।
भगवान महावीर के कालजयी सिद्धांत ‘जीयो और जीने दो’ तथा भारतीय मनीषा के मंत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के आलोक में समकालीन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय युद्ध, आतंकवाद एवं हिंसा की ज्वलंत समस्याओं के समाधान के साथ-साथ सामाजिक और मानवीय मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श-महामंथन का यह एक अनुष्ठान है, विमर्श-कुंभ है। जिससे युद्ध के माहौल में अयुद्ध, हिंसा नहीं अहिंसा, अमानवीयता नहीं मानवीयता का संदेश दिया जाएगा। हर व्यक्ति के दिमाग में एक समस्या है और हर व्यक्ति के दिमाग में एक समाधान है। एक समस्या को सब अपनी समस्या समझे और एक का समाधान सबके काम आए। समाधान के अभाव में बढ़ती हुई समस्या संक्रामक बीमारी का रूप न ले सके, इस दृष्टि से आज की समस्याओं का समाधान आज प्रस्तुत करने के ध्येय के साथ ‘संवाद से समाधान’ कार्यक्रमों की शंृखला प्रारंभ की गयी है। अस्तित्व को पहचानने, दूसरों के अस्तित्वों से जुड़ने, सामाजिक पहचान बनाने, अपने अस्तित्व को समाज, देश और राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाने के लिए यह विशिष्ट उपक्रम अस्तित्व में आया है। जिसके साथ देश और दुनिया की सकारात्मक और अहिंसात्मक शक्तियों को जोड़ा गया है।
समाज में नई मूल्यों की स्थापना कर उसे सुंदर शक्ल देने की जिम्मेदारी इस उपक्रम पर है। आम आदमी कोई बड़ी लकीर नहीं खींच सकता। वह निर्धारित नीतियों पर चल सकता है, पर कुछ नया करने का साहस उसमें नहीं होता है। इसी दृष्टि से यह आवश्यक प्रतीत होता है कि देश और दुनिया की सकारात्मक शक्तियां एकत्रित होकर सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और वैश्विक स्थितियों और मूल्यों के विषय में चिंतन करे और आने वाली पीढ़ी के लिए ठोस धरातल का निर्माण करे। इस दृष्टि से भगवान महावीर का दर्शन सर्वाधिक कारगर और उपयोगी है।
‘संवाद से समाधान’ का मुख्य उद्देश्य महावीर के संदेशों को देश और दुनिया में पहुंचाना एवं देश और दुनिया की जटिल समस्याओं से निपटने का प्रयास करना है। युगीन मनोरचना में अनुशासन के स्थान पर स्वच्छंदता, त्याग के स्थान पर भोगवाद, संयम के स्थान असंयम, अहिंसा के स्थान पर हिंसा अधिक सक्रिय है। ऐसी स्थितियों में सकारात्मक शक्तियां किस तरह से सामाजिक अनुशासन, अहिंसा, संयम में अपना योगदान दे सकती है? इन शक्तियों को विनयजीवी बनना होगा। वे महावीर मनीषा तक पहुंचकर नई दृष्टि प्राप्त करे। वे इस बात को समझें कि अक्षर के बिना भी अक्षय की साधना हो सकती है। शब्दों की सिद्धि के बिना शब्द भी व्यर्थ हो जाते हैं। देश की युवापीढ़ी को बुद्धि के साथ करुणा, अहिंसा एवं शांति की लोकयात्रा के लिए आगे बढ़ाना है।
युग की समस्याओं के लिए महावीर ही क्यों? भगवान महावीर में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और संयम के सभी तत्वों का समाहार है। महावीर ऐसा शब्द है जो अखण्ड व्यक्तित्व का प्रतीक है। ‘संवाद से समाधान’ के रूप में जो अभियान शुरू हो रहा है वह अखण्ड व्यक्तित्व के निर्माण की योजना है। वह अहिंसक और शांति प्रिय मनुष्य के निर्माण की योजना है। वह आध्यात्मिक और वैज्ञानिक व्यक्तित्व के निर्माण की योजना है। खण्डित व्यक्तित्व समस्याएं पैदा करता है। बुद्धि निर्माणकारी ही नहीं विध्वंसक भी है। बुद्धि के साथ नेगेटिव एटीच्यूड जुड़ने से खतरे ज्यादा बढ़ गये हैं। बुद्धि के साथ भावनात्मक विकास हो तो वह कामधेनु बन सकती है। आज समूची दुनिया में मानवीय एकता एवं चेतना के साथ खिलवाड़ करने वाली त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण परिस्थितियां सर्वत्र परिव्याप्त हैं-जिनमें आतंकवाद सबसे प्रमुख है। जातिवाद, अस्पृश्यता, सांप्रदायिकता, महंगाई, गरीबी, भिखमंगी, विलासिता, अमीरी, अनुशासनहीनता, पदलिप्सा, महत्वाकांक्षा, उत्पीड़न और चरित्रहीनता आदि अनेक परिस्थितियों से मानवता पीड़ित एवं प्रभावित है। उक्त समस्याएं किसी युग में अलग-अलग समय में प्रभावशाली रहीं होंगी, इस युग में इनका आक्रमण समग्रता से हो रहा है। आक्रमण जब समग्रता से होता है तो उसका समाधान भी समग्रता से ही खोजना पड़ता है। हिंसक परिस्थितियां जिस समय प्रबल हों, अहिंसा का मूल्य स्वयं बढ़ जाता है।
‘संवाद से समाधान’ एक ऐसा राष्ट्रीय मंच है जहां धर्म, समाज, शासन, शिक्षा और उद्योग जगत के विभिन्न आयामों से जुड़े विचारक व संत, संवाद के माध्यम से समाधान की खोज करते हैं। इसका उद्देश्य है संवाद के जरिये करुणा, अहिंसा, समरसता और नैतिकता के मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाना। यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी एवं अंतरराष्ट्रीय अभियान की शुरुआत है, जो भारत के विभिन्न राज्यों और विश्व के अनेक देशों में करुणा और शांति का संदेश लेकर पहुंचेगा। भविष्य की अजानी राहों में पांव रखते समय यदि हम महावीर की शिक्षाओं का आलोक साथ में रख पाये तो उस मार्ग में कहीं भी अवरोध नहीं आएगा।
महावीरायतन फाउंडेशन अपनी विविध मानव कल्याणकारी एवं अहिंसा-शांति की गतिविधियों के लिए प्रयासरत है। हिंसा, युद्ध एवं आतंकवाद के नियंत्रण के लिए महावीर के अहिंसा एवं समाज दर्शन को कारगर मानते हुए इस बहुआयामी आयोजन की परिकल्पना की गयी है। यह आयोजना ‘सच्चं लोयम्मि सारभूमं’ का उच्चारण है। किसी भी समाज में बिखराव की स्थिति होती है तो उसकी क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं हो सकता। उपयोग के लिए क्षमताओं को केन्द्रित करना जरूरी होता है। समाज का हर व्यक्ति अपने आप में एक शक्ति है। इस शक्ति को काम में लेने से पहले उसे संकल्पित और एकात्ममुख करना जरूरी है। जैन समाज आस्थाशील समाज है। आस्था के धागे में बंधा हुआ समाज कठिन से कठिन चढ़ाई के मार्ग पर भी आरोहण करने में सफल हो सकता है। समाज केवल धर्म के आधार पर नहीं चलता। उसे धार्मिक चेतना के साथ सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक चेतना की भी अपेक्षा रहती है। इस बहुमुखी चेतना को स्वर देने के लिए ही ‘संवाद से समाधान’ की योजना अस्तित्व में आयी है। लाखों लोगों के समाज में किसी कोने में कोई स्वर उभरे और वह वहीं खो जाये तो उस स्वर का कोई अर्थ नहीं रह जाता। एक स्वर लाखों लोगों का स्वर बने तो उसमें एक शक्ति पैदा होती है। ऐसी शक्ति जो सारे संसार को हिला सके, यह तभी हो सकता है जब एक स्वर लाखों लोगों तक पहुंच जाए, देश और दुनिया तक पहुंच जाए। इसी ध्येय से ‘संवाद से समाधान’ वर्तमान की एक ठोस उपलब्धि बनने की ओर अग्रसर है। यह समस्याग्रस्त दुनिया के लिए एक कल्पवृक्ष की भांति है। कल्पवृक्ष की छांव में रहने वाले लोग पूरी तरह से निश्चिंत रहते हैं।