प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप की बातचीत विदेश नीति की परिपक्वता की मिसाल

The conversation between Prime Minister Modi and Trump is an example of the maturity of foreign policy

अजय कुमार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई हालिया टेलीफोनिक बातचीत वैश्विक कूटनीति और भारत की विदेश नीति के लिहाज़ से एक अहम मोड़ साबित हुई है। लगभग 35 मिनट तक चली इस बातचीत में न सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा हुई, बल्कि भारत-पाकिस्तान तनाव, ऑपरेशन सिंदूर और भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा को लेकर भी बड़े स्तर पर रणनीतिक विमर्श सामने आया। हालांकि यह मुलाकात जी7 सम्मेलन के दौरान आमने-सामने होने वाली थी, लेकिन ट्रंप की अमेरिका वापसी के कारण दोनों नेताओं को फोन पर बात करनी पड़ी। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे दिलचस्प और चर्चित पहलू यह रहा कि ट्रंप के अमेरिका आने के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री मोदी ने विनम्रता पूर्वक ठुकरा दिया, और इसकी वजह सिर्फ राजनयिक व्यस्तता नहीं थी, बल्कि गहरी रणनीतिक सूझबूझ और राजनीतिक परिपक्वता भी इसके पीछे काम कर रही थी।

बातचीत की शुरुआत ट्रंप के उस अनुरोध से हुई जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया कि वे कनाडा से लौटते समय अमेरिका रुकते हुए जाएं और व्हाइट हाउस में उनसे मिलें। परंतु, पीएम मोदी ने यह न्योता यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि उन्हें अपनी पहले से तय क्रोएशिया यात्रा के लिए निकलना है। यह निर्णय सिर्फ औपचारिक कारणों से नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक बड़ा राजनीतिक संकेत छुपा हुआ था। दरअसल, उसी दिन ट्रंप के साथ पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर की लंच पर बैठक पहले से निर्धारित थी। ऐसे में पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा राजनीतिक रूप से भारत के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकती थी। एक ही दिन, एक ही जगह भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के फौजी प्रमुख का उपस्थित होना न केवल भारत की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर करता, बल्कि वैश्विक पटल पर गलत संदेश भी जाता।

इस बातचीत में ऑपरेशन सिंदूर विशेष चर्चा का विषय रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को विस्तार से बताया कि कैसे भारत ने 6-7 मई की रात पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि यह सैन्य कार्रवाई सटीक, नपी-तुली और गैर-भड़काऊ थी। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि भारत अब आतंकवाद को एक सीमित ‘प्रॉक्सी वॉर’ नहीं, बल्कि एक पूर्ण युद्ध के रूप में देखता है। मोदी ने बताया कि पाकिस्तान की गोली का जवाब भारत ने गोले से दिया है, और यह नीति भविष्य में भी जारी रहेगी।प्रधानमंत्री ने ट्रंप से यह भी कहा कि इस पूरे घटनाक्रम में कभी भी अमेरिका की ओर से कोई मध्यस्थता नहीं हुई, न ही भारत ने इसकी कोई मांग की। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भारत ने कभी मध्यस्थता स्वीकार नहीं की है और न भविष्य में करेगा। यह बात भारत की विदेश नीति की आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान को दर्शाती है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बाद में इस बातचीत की जानकारी साझा करते हुए बताया कि सैन्य कार्रवाई को रोकने की बात भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सीधे सैन्य चैनल के जरिए हुई थी, और वह भी पाकिस्तान के आग्रह पर।

इस वार्ता के दौरान पीएम मोदी ने ट्रंप को क्वाड (Quad) की अगली बैठक के लिए भारत आने का न्योता भी दिया। ट्रंप ने यह न्योता स्वीकार करते हुए कहा कि वे भारत आने को लेकर उत्सुक हैं। इसके अतिरिक्त दोनों नेताओं ने इजरायल-ईरान तनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति पर भी विचार साझा किए। खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड की भूमिका को लेकर दोनों की सोच में समानता दिखी, और इस पर भविष्य में मिलकर काम करने की बात कही गई। इस बातचीत में एक और महत्वपूर्ण पहलू अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वैंस का 9 मई की रात को पीएम मोदी को किया गया फोन रहा। वैंस ने चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान भारत पर बड़ा हमला कर सकता है। जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि अगर पाकिस्तान ऐसा करता है तो भारत उससे भी बड़ा और निर्णायक जवाब देगा। और ऐसा ही हुआ, 9-10 मई की रात भारत ने पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर जबरदस्त जवाब दिया, जिससे पाकिस्तान की सेना को भारी नुकसान पहुंचा और उसे भारत से सैन्य कार्रवाइयों को रोकने का आग्रह करना पड़ा।

इस पूरी कूटनीतिक कवायद में एक और रोचक बात सामने आई कि प्रधानमंत्री मोदी की क्रोएशिया यात्रा को प्राथमिकता देना सिर्फ एक तय कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था, बल्कि रणनीतिक रूप से सोचा-समझा निर्णय था। अगर मोदी अमेरिका जाते और उसी दिन व्हाइट हाउस में आसिम मुनीर भी मौजूद होते, तो यह दृश्य दुनिया को भारत की कमजोरी या कूटनीतिक भ्रम का संकेत दे सकता था। भारत की यह परिपक्वता बताती है कि अब हमारी विदेश नीति किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं चलती, बल्कि देशहित को सर्वोपरि रखते हुए निर्णय लिए जाते हैं।अमेरिकी मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ट्रंप ने शायद एक “ओवरस्मार्ट” चाल चली थी एक ओर पाकिस्तान के सेना प्रमुख को बुलाना, और दूसरी ओर मोदी को भी उसी दिन आमंत्रित करना। लेकिन भारत ने समय रहते इस चाल को समझ लिया और इससे खुद को अलग रखा। इस प्रकार की राजनीतिक सतर्कता और परिपक्वता भारत को वैश्विक मंच पर एक ठोस और भरोसेमंद ताकत के रूप में स्थापित करती है।

बातचीत के बाद ट्रंप ने भी इस बात को स्वीकार किया कि भारत की आतंकवाद विरोधी नीति न सिर्फ स्पष्ट है, बल्कि निर्णायक भी है। उन्होंने भारत की कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है। भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब वह हर आतंकी हरकत का जवाब अपनी शर्तों पर देगा और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की प्रतीक्षा नहीं करेगा।इस पूरे घटनाक्रम ने भारत की विदेश नीति के दो प्रमुख पहलू उजागर किए: एक, आतंकी घटनाओं को लेकर भारत की सख्त और स्पष्ट नीति; और दूसरा, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आत्मनिर्भर और निर्णायक रुख। ट्रंप के साथ यह बातचीत एक ओर भारत-अमेरिका संबंधों की गहराई को दर्शाती है, तो दूसरी ओर भारत की स्वायत्तता और कूटनीतिक सूझबूझ का प्रमाण भी देती है।

टेलीफोन पर हुई इस बातचीत से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अब किसी की मध्यस्थता या सहमति का मोहताज नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के मामलों में भारत पूरी तरह से अपने निर्णय खुद ले रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका में न रुकने का निर्णय एक तरह से राजनीतिक परिपक्वता, रणनीतिक सोच और राष्ट्रीय स्वाभिमान का बेहतरीन उदाहरण है। अंततः यह वार्ता केवल 35 मिनट की एक औपचारिक बातचीत नहीं थी, बल्कि यह एक संदेश था दुनिया को, पाकिस्तान को, और शायद अमेरिका को भी कि नया भारत अपने हितों के लिए हर मोर्चे पर सतर्क, संप्रभु और संकल्पित है। ऑपरेशन सिंदूर से लेकर अमेरिका में न रुकने तक, हर निर्णय में भारत की विदेश नीति की परिपक्वता और रणनीतिक सोच साफ तौर पर दिखाई देती है। यही कारण है कि अब दुनिया भारत की बात सिर्फ सुनती नहीं, उस पर गंभीरता से विचार भी करती है।