आतंकवाद पर चीन और पाकिस्तान के दोहरे पैमाने

China and Pakistan have double standards on terrorism

प्रमोद भार्गव

आतंकवाद के मसले पर चीन के किंगदाओ नगर में हुई षंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में एक बार फिर चोर-चोर मौसेरे भाई चीन और पाकिस्तान ने भारतीय हितों के परिप्रेक्ष्य में दोगलापन दिखाया है। इस बैठक में सदस्य देशों के रक्षा मंत्री उपस्थित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आतंकवाद के खात्मे के लिए किए जा रहे आवाहन ने वैश्विक स्तर पर ऐसा माहौल बनाने का काम किया है कि इस समस्या को जड़ से उखाड़ दिया जाए। लेकिन एससीओ की बैठक में जिस दस्तावेज को साझा हस्ताक्षर के लिए सामने लाया गया तब उसमें पहलगाम में हुए आतंकी हमले को षामिल नहीं किया गया। जबकि इस हमले में 26 भारतीय नागरिक आतंकवादियों ने मार दिए थे। इस दस्तावेज में बलूचिस्तान का नाम हैं। जबकि बलूचिस्तान के नागरिक पाकिस्तान के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं। अर्थात इस दस्तावेज को पढ़ने के बाद भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कड़ा रुख अपनाते हुए इस पर दस्तखत करने से साफ इंकार कर दिया। इस संगठन पर चीन का प्रभाव है और चीन ही इस बार संगठन का अध्यक्ष देश है। भारत ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले को न केवल पक्षपातपूर्ण माना, बल्कि इसे पाकिस्तान और उसके हितचिंतक चीन की हरकत माना। अतएव राजनाथ सिंह ने दस्तखत नहीं किए। इस संगठन के दस्तावेज की उपयोगता तभी है, जब बैठक में उपस्थित सभी सदस्य देश मुद्दों पर सहमत होकर हस्ताक्षर करने के साथ साझा बयान भी जारी करें। तब कहीं इस दस्तावेज पर सहमति बन पाती है।

इस संगठन में 10 देश परस्पर जुड़े हितों को मजबूत करने के लिए षामिल हैं। इन देशों में भारत, चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, बेलारूस और तजाकिस्तान षामिल हैं। 2001 में इस संगठन का गठन हुआ था। आरंभ में चीन और रूस समेत पांच देश इसमें षामिल थे। 2001 में उज्बेस्तिन, 2017 में भारत और पाकिसतान, 2022 में ईरान एवं 2024 में बेलारुस इस संगठन में भागीदार हुए। इन देशों की कुल जीडीपी में 30 फीसदी और दुनिया की आबादी में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यानी इस संगठन की इन देशों की अर्थव्यवस्था के लिए परस्पर भागीदारी जरूरी है। लेकिन जब राजनाथ सिंह ने दस्तावेज की इबारत को पक्षपात पूर्ण पाया तो उन्होंने खुले षब्दों में कहा, ‘भारत आतंकवाद पर दोहरे मापदंड मंजूर नहीं करेगा। आतंक को बढ़ावा देने वाले देशों की खुली निंदा होनी चाहिए। कुछ देशों ने सीमा पार आतंकवाद को न केवल अपनी नीति ही मान लिया है, बल्कि अपने देश में उन्हें संरक्षण भी देते हैं। बावजूद इस हकीकत को नकारते हैं। ऐसे दोहरे मापदंडों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। उन्हें अब समझना होगा कि आतंकवाद के अधिकेंद्र (एपीसेंटर) अब सुरक्षित नहीं रह गए हैं।‘ नए भारत के इस कड़े संदेश ने उपस्थित रक्षा मंत्रियों को हैरानी में डाल दिया। अतएव न तो कोई सहमति बन पाई और न ही संयुक्त बयान जारी हो पाया। इस परिणाम ने समूची दुनिया को संदेश दे दिया है कि अब भारत अपने हितों से समझौता करने के लिए कतई तैयार नहीं है।

दरअसल भारत चाहता था कि एससीओ पहलगाम हमले की निदां करे और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर स्पश्ट रुख अपनाए। लेकिन चीन की एक बार फिर दगा की दोगली नीति सामने आ गई। एक सदस्य देश ने इस पहलगाम मुद्दे को दस्तावेज में षामिल करने से असहमति जता दी। वस्तुतः राजनाथ सिंह ने कड़ा रुख अपना लिया और दस्तखत नहीं किए। इस साझा बयान पर हस्ताक्षर नहीं करने का बड़ा कारण दस्तावेज न तो निश्पक्ष था और न ही इसमें कोई पारदर्शिता थी। यह भी साफ नहीं किया कि आखिर इस अभिलेख को किन देशों ने तैयार किया है। यह दस्तावेज आतंकवाद से जुड़े तथ्यों के विपरीत था। भारत के जम्मू-कश्मीर प्रांत में 22 अप्रैल को पहलगाम में सैलानियों पर बड़ा हमला हुआ था। इसमें 26 निर्दोश लोग मारे गए थे। आतंकियों द्वारा किया यह हमला मानवता के लिए क्रूरता का चरम था। इसलिए भारत ने इस आतंकी हमले को दस्तावेज में षामिल करने की मांग भी की थी। परंतु इस मांग को नमंजुर कर दिया गया। अध्यक्षता कर रहे चीन का यह रुख पाकिस्तान के प्रति उदारता जताता है, जो सर्वथा पक्षपातपूर्ण है। जबकि बलूचिस्तान की आतंकी गतिविधियों से जुड़ी जफर एक्सप्रेस की घटना इसमें दर्ज थी। इस संगठन का लक्ष्य षामिल देशों की सुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ाने के साथ आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी और साइबर आपराध जैसे मसलों पर सटीक रणनीति बनाकर उस पर संयुक्त पहल करना भी है। लेकिन जिस तरह से पहलगाम हमले को नजरअंदाज किया गया उससे साफ है कि अध्यक्ष देश की नियत साफ नहीं है।

इस तरह का दोहरा चरित्र इसलिए खतरनाक है कि इसने क्षेत्रीय सहयोग से जुड़े मुद्दों पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया। जिसके चलते आतंकवाद की समस्या से निपटना जटिल होगा। क्योंकि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध लगातार आतंकी खेल, खेलता हुआ खून की इबारतें लिख रहा है। इस सच्चाई को समूची दुनिया भलीभांति जानती है। क्योंकि भारत आतंक से पिछले ढाई दशक से निरंतर लड़ाई लड़ रहा है। स्वयं चीन ने बीजिंग में कुछ वर्श पहले हुए ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के घोशणा पत्र में इस तथ्य को षामिल किया था कि कई बड़े आतंकवादी संगठन पाकिस्तान के सुरक्षित ठिकानों से अपनी गतिविधियां चलाते हैं। पहलगाम में किए निरंकुश हमले में भी पाकिस्तान से आए आतंकियों का हाथ था। बावजूद एससीओ की बैठक के संयुक्त बयान में पहलगाम को नजरअंज करना दोगलापन नहीं तो और क्या है ? एससीओ में आतंकवाद पर शिकंजा नहीं कसना इसलिए और चिंताजनक है, क्योंकि पाकिस्तान परमाणु षक्ति संपन्न देश है और वहां अनेक आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इन संगठनों में लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख हैं। अमेरिका पर आतंकी हमला करने वाले ओसामा बिन लादेन को ही पाकिस्तान ने षरण दी थी। उसका अंत अमेरिकी वायुसेना ने पाकिस्तान में घुसकर किया था। संयुक्त राश्ट्र द्वारा जारी सूची में बताया है कि पाक में 136 आतंकवादियों के ठिकाने हैं और यहां 22 आतंकवादी हथियारबंद संगठनों को पाक सेना संरक्षण दे रही है। वाइदवे इन आतंकियों के हाथ परमाणु हथियार लग जाते हैं तो ये मानवता के विरुद्ध कैसी तबाही मचाएंगे, यह कहना अनुमान से परे है। अतएव राजनाथ सिंह ने अभिलेख पर दस्तखत न करके दुनिया को यह संदश दे दिया है कि भारत आतंक के विरुद्ध लड़ाई लड़ता रहेगा।